बेगैरत इमरान खान की छुट्टी

इमरान खान ने पाकिस्तान की पूरी संसद को अपने देश की सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद 9 अप्रैल के पूरे दिन जिस तरह अपने मुल्क की संसद को अपने घमंड के आगे गिरवीं बनाये रखा और खुद को मुल्क के संविधान से ऊपर समझने की खता की उससे पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री की हैसियत किसी सड़क छाप ‘मवाली’ के रूप में स्थापित हो गई है।

Update: 2022-04-10 04:13 GMT

आदित्य चोपड़ा: इमरान खान ने पाकिस्तान की पूरी संसद को अपने देश की सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद 9 अप्रैल के पूरे दिन जिस तरह अपने मुल्क की संसद को अपने घमंड के आगे गिरवीं बनाये रखा और खुद को मुल्क के संविधान से ऊपर समझने की खता की उससे पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री की हैसियत किसी सड़क छाप 'मवाली' के रूप में स्थापित हो गई है। ठीक रात के पौने 12 बजे जिस तरह इसकी राष्ट्रीय एसेम्बली के अध्यक्ष ने भरे इजलास में अपने पद से इस्तीफा देकर अपनी वफादारी बजाय संविधान के साथ दिखाने के इमरान खान और उसकी पार्टी 'तहरीके इंसाफ' के साथ दिखाई उससे भी पूरी दुनिया मे यही सन्देश गया कि पाकिस्तान एेसा मुल्क है जहां लोकतन्त्र के नाम पर केवल 'ठगी' का धंधा होता है। इमरान ने अपनी हुकूमत के आखिरी दिनों मे यह भी सिद्ध कर दिया कि वह खुद अपने ही देश का संविधान तोड़ने वाला इसकी 74 साल की तवारीख पहला का पहला वजीरे आजम था। हालांकि इमरान सरकार के खिलाफ सदन के अध्यक्ष की कुर्सी पर रात्रि पौने 12 बजे बाद अध्यक्ष तालिका के वरिष्ठ सांसद के बैठने के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराया गया जिसमे इमरान खान का हारना तयशुदा था मगर इमरान खान और उसके कारिन्दों ने पौने 12 बजे तक पूरी कोशिश की कि किसी तरह सदन मे मतदान न हो सके। मगर आखीर में इमरान खान की हुकूमत से रवानगी उसी तरह हुई है जिस तरहकिसी 'आवारा'को मुहल्ले में बद- अमनी फैलाने के जुर्म मे इलाके के सयाने बुजुर्ग दर–बदर कर देते हैं। लेकिन इसके लिए पाकिस्तान का अपना इतिहास भी जिम्मेदार है। जिसकी सजा इशकी अवाम को भुगतनी पड़ रही है। इमरान खान जाते–जाते भी पाकिस्तानी सियासी इदारों को मटियामेट करके जाना चाहता था परन्तु इस मुल्क के विभिन्न संवैधानिक संस्थानों विशेषकर न्यायपालिका ने इस बार जिस तरह उठ कर संविधान का शासन लागू करने का इऱादा जाहिर किया उसके आगे इमरान खान की एक भी न चल पाई। अतः समय आ गया है कि खुद पाकिस्तानी अवाम यह सोचे कि आज 74 साल बाद मुहम्मद अली जिन्ना के 'इस्लामी रियासत' के झांसे में आने के बाद जिस तरह रमजान मुबारक के बरकत के महीने में बजाय 'जकात' पाने के 'महसूल'अदा कर रही है उसकी कैफियत यह है कि इस मुल्क में सरेआम सबसे बड़ी अदालत के हुक्म को पैरों तले रौंदने की साजिश किसी और ने नहीं बल्कि खुद इसी अवाम द्वारा मुन्तखिब किया हुआ आला हुक्कमरान इमरान खान ने की और डंके की चोट पर की वजीरे आजम के औहदे पर विराजमान इस शख्स ने पूरी दुनिया के सामने यह राज फाश कर दिया है कि पाकिस्तान 'खूनी दल- दल की जमीन' पर तामीर की गई एसी इमारत है जिसमें आइनी (संवैधानिक) और इंसानी हुकूकों की बदहवासियां कैद हैं। क्या कयामत है कि इसकी संसद का इजलास आला अदालत के हुक्म पर ही बुलाया जाता है और फिर उसी में उसके हुक्म को तार–तार करते हुए पूरे जम्हूरी निजाम का 'मर्सिया' पढ दिया जाता है। सितमगिरी की इन्तेहा यह है कि जिस हुकूमत के सरपराह इमरान खान के खिलाफ संसद में बैठी हुई विपक्षी पार्टियां अविश्वास प्रस्ताव संसद मे अपने बहुमत होने के बाजाब्ता यकीन पर लाती हैं उसकी मुखालफत में अपनी हुकूमत की तरफ से बचाव करने के लिए इमरान खान ही खुद संसद मे नहीं आते और इस काम में अपने उन कारकुनों को लगाते हैं जिनकी हैसियत पाकिस्तान की सियासत मे 'प्यादों' से ज्यादा नहीं आंकी जाती। जम्हूरी दस्तूरों में बादशाही निजाम कायम करने का क्या नायाब तरीका निकाला 'बेगैरत' इमरान खान ने कि संसद के इजलास में ही अक्लियत( अल्पमत) में आने के बावजूद लोगों के वोटों से चुने हुए अरकानों( सांसदों) की मौजूदगी में ही इसकी कार्यवाही चलाने वाले मुकादम( अध्यक्ष) अपनी हरकतों से एेलान करते लग रहे हैं कि 'खल्क खुदा का , मुल्क बादशाह का' लेकिन आखिरकार इमरान की छुट्टी कर दी गई है । अब अपने किये का फल उन्हें भुगतना होगा ।

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