अमरिंदर सिंह का मानना है कि बिना राहुल गांधी के सह के प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) उनपर लगातार हमला नहीं कर सकते. सिद्धू राहुल गांधी को ही अपना नेता मानते हैं और उनकी नियुक्ति राहुल गांधी के कारण ही हुई है. अमरिंदर सिंह उन कुछ मुट्ठी भर कांग्रेसी नेताओं में शामिल हैं जिन्हें राहुल गांधी को नेता मानने में संकोच है. हो भी क्यों ना भला, अमरिंदर सिंह राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के स्कूल के ज़माने को दोस्त जो ठहरे. जिस तरह सिद्धू ने सिंह के नाक में दम कर रखा है और उनकी कुर्सी के पीछे हाथ धो कर पड़े हैं, अमरिंदर सिंह बेवजह ही राहुल गांधी पर शक नहीं कर रहे हैं.
ब्रिटेन में होते तो शैडो प्राइम मिनिस्टर कहलाते राहुल गांधी
रही बात जलियांवाला बाग की तो राहुल गांधी ने इसके नवीनीकरण के खिलाफ कल एक ट्वीट किया. "जलियांवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता. मैं एक शहीद का बेटा हूं. शहीदों का अपमान किसी क़ीमत पर सहन नहीं करूंगा. हम इस अभद्र क्रूरता के ख़िलाफ़ हैं." जो राहुल गांधी की समझदारी पर शक करते हैं वह यह जान लें कि राहुल गांधी इनदिनों काफी समझदार दिखने लगे हैं. उनका ट्विटर अकाउंट पिछले दिनों कुछ समय के लिए बंद हो गया था. उन्होंने और कांग्रेस पार्टी ने ट्विटर कंपनी पर नरेन्द्र मोदी सरकार के दबाव का आरोप लगाया था.
राहुल गांधी ने अब सबक सीख ली है कि रोज आग से खेलना बुद्धिमानी नहीं होती, जब बिना मोदी का नाम लिए ही उनपर निशाना साधा जा सकता है तो वैसे ही सही. अगर प्रमुख विपक्षी दल के प्रमुख नेता, ब्रिटेन में होते तो शैडो प्राइम मिनिस्टर कहलाते, ने प्रधानमंत्री की आलोचना की तो कोई ताज्जुब नहीं है. पिछले सात वर्षों से तो प्रतिदिन वह यही कर रहे हैं, भले ही उसका असर जनता पर पड़े या ना पड़े. अगर प्रमुख विपक्षी दल के प्रमुख नेता द्वारा सरकार की हर नीति और हर कार्य की आलोचना करना एक कर्तव्य है तो वह निभाना ही पड़ेगा, और राहुल गांधी इस कर्तव्य को भरपूर निभा रहे हैं.
क्या सच में राहुल गांधी शहीद के बेटे हैं?
पर ताज्जुब किसी और कारण से है. राहुल गांधी के कल के ट्विटर मेसेज को एक बार फिर से पढ़ें– "मैं शहीद का बेटा हूं" यह तो उन्होंने कह दिया, पर सवाल है कि क्या सचमुच राजीव गांधी ने देश के लिए शहादत दी थी और क्या उन्हें शहीद माना जा सकता है? तथ्य है कि राजीव गांधी की हत्या हुई थी. LTTE या तमिल टाइगर्स ने उनकी हत्या प्रतिशोध की भावना से की थी. राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में पड़ोसी देश श्रीलंका में शांति बहाल करने की जिम्मेदारी ली थी. भारतीय सेना जिसे IPKF (भारतीय शांति रक्षा सेना) के नाम से जाना गया, उसे श्रीलंका में शांति बहाल करने भेजा गया. शांति तो बहाल नहीं हुई पर जो तमिल टाइगर्स और श्रीलंका की सेना के बीच की लड़ाई थी वह तमिल टाइगर्स और भारतीय सेना के बीच की जंग बन गई.
जुलाई 1987 से मार्च 1990 के बीच भारतीय सेना तमिल टाइगर्स से लड़ती रही. 1100 से भी अधिक भारतीय सैनिक राजीव गांधी के गलत फैसले के कारण देश के लिए लड़ते हुए मारे गए, पर राजीव गांधी सरकार ने उन्हें शहीद घोषित नहीं किया. हो भी नहीं सकता था. भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय सेना के लिए शहीद शब्द के प्रयोग के खिलाफ है. देश के लिए लड़ते हुए अगर कोई सैनिक मारा जाता है तो उसे सरकारी फाइल में Battle Casulty करार दिया जाता है और उनके लिए वीरगति या सर्वोच्च बलिदान जैसे शब्दों का ही प्रयोग किया जाता है. राजीव गांधी की सरकार ने इसमें संसोधन करने की नहीं सोची ताकि सेना के जवानों को शहीद घोषित किया जा सके.
भारतीय सेना क्यों नहीं करती शहीद शब्द का प्रयोग
लगे हाथ इस बात की भी चर्चा कर लें कि क्यों भारतीय सेना या रक्षा मंत्रालय शहीद शब्द से दूरी बनाये रखती है. शहीद शब्द का प्रयोग अरबी भाषा में हुआ और जो लोग शिया और सुन्नी के लड़ाई में मारे गए उनके लिए शहीद शब्द का प्रयोग किया गया. ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के अनुसार शहीद वह होता है जो या तो धर्म के लिए मारा जाता है या फिर वह धर्म के लिए खुद की बलि दे देता है. इस लिहाज से भी राजीव गांधी को शहीद नहीं माना जा सकता.
पर राहुल गांधी को इस बातों से क्या लेना देना. उनकी नज़र तो वोट पर होती है, भाषा और शब्दों का सही चयन करने से वोट थोड़े ही ना मिलता है. भारत के लिए लड़ते हुए जो 1100 सैनिक श्रीलंका में मारे गए वह तो शहीद नहीं कहलाये, उन सैनिकों के बच्चों को शहीद का बेटा या शहीद की बेटी कहलाने का सौभाग्य भी नहीं मिला, पर राहुल गांधी ने खुद को शहीद का बेटा जरूर घोषित कर दिया!