अगर जनमत की कद्र होती!

जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों के नतीजे को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश।

Update: 2020-12-28 16:37 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों के नतीजे को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश। इसे अपनी जीत बताया। उसके दावे का आधार था कि उसे सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। जबकि जिन पार्टियों ने गठबंधन के आधार पर चुनाव लड़ा, उनकी सीटों को अलग- अलग बताना कहीं से उचित नहीं है। हकीकत यह है कि कश्मीर घाटी में भारतीय जनता पार्टी और उसकी सहयोगी अपनी पार्टी की करारी शिकस्त हुई। जम्मू क्षेत्र में भी अगर पिछले लोक सभा या विधान सभा चुनावों से तुलना करें, तो भाजपा का प्रदर्शन फीका रहा। इसीलिए कई विश्लेषकों ने इन नतीजों को 2019 के अगस्त में जम्मू-कश्मीर के स्वरूप में किए गए परिवर्तन को जनता की ठोकर कहा है। बहरहाल, यह साफ है कि भाजपा अपने नैरेटिव के अलावा किसी की बात नहीं सुनती। इसलिए ऐसे तर्कों का कोई मतलब नहीं है। आज लोकतंत्र या जनादेश वही है, जो भाजपा नेतृत्व बताता है। इसलिए इन चुनावों से राज्य में संवाद या समन्वय की कोई खिड़की नहीं खुलेगी, हालांकि अगर ईमानदारी से प्रयास हो तो इसकी संभावना इससे बनी है।


लेकिन अगर राजनीतिक विरोधियों को गैंग कहा जाता हो, तो आखिर संवाद कैसे होगा। चुनाव में सात पार्टियों वाला गुपकार गठबंधन 110 सीटों के साथ सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरा। 75 सीटें जीत कर भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई। गठबंधन की पार्टियों के प्रदर्शन को अलग अलग देखें, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले नंबर पर आई। अपेक्षा के मुताबिक भाजपा को सफलता जम्मू इलाके में मिली। कश्मीर में महज तीन सीटें ही वह जीत पाई। पार्टी घाटी में किसी भी डीडीसी पर अपना नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाई, जबकी जम्मू में उसने छह डीडीसी अपने अधीन कर लिए। गुपकार गठबंधन ने नौ परिषदों में बहुमत हासिल कर लिया, जो सभी कश्मीर में हैं। कांग्रेस के समर्थन से वह तीन और परिषदों में बहुमत हासिल करने की स्थिति में है। कांग्रेस पहले गुपकार गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन देश में बने मीडिया माहौल के बीच वह इससे हट गई थी। यहां यह गौरतलब है कि गठबंधन के लिए बेहद प्रतिकूल स्थितियां थीं। उसकी लगभग सभी पार्टियों के नेताओं को लंबे समय तक अस्थायी जेलों में बंद रखा गया। उसके चुनाव प्रचार में बाधा डाले जाने की खबरें आईं। इसके बावजूद कश्मीर में गठबंधन का भाजपा को पीछे कर देना इस बात का संकेत है कि जनता के बीच इन पार्टियों की लोकप्रियता बरकरार है।


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