हास्य-व्यंग्य: टमाटर के भाव किसी भी किस्म के लाकडाउन से मुक्त, नहीं चल रहा किसी का जोर
टमाटर के भाव किसी भी किस्म के लाकडाउन से मुक्त
आलोक पुराणिक चालू विश्वविद्यालय ने लाकडाउन विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया था। इसमें प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है: तरह-तरह के प्रतिबंध चल रहे हैं, पर टमाटर के भावों पर किसी का जोर नहीं चल रहा है। टमाटर के भाव किसी भी किस्म के लाकडाउन से मुक्त हैं। चढ़ रहे हैं, बढ़ रहे हैं और इसका फायदा किसानों को नहीं मिल रहा है। इस मुल्क में किसानों के नाम पर बहुत से लोगों को बहुत कुछ मिल जाता है। नोट वाले नोट ले जाते हैं, वोट वाले वोट ले जाते हैं। किसान को हर दो-तीन साल में यह खबर मिलती है कि टमाटर के भाव बढ़ गए, पर कमा कोई और गया।
सवाल है कि टमाटर के भाव बढ़ जाते हैं तो किसान को इसका फायदा क्यों नहीं मिलता? दरअसल किसान को फायदा मिलना शुरू हो जाएगा तो बीच के कई लोगों को घाटा हो जाएगा। सौ रुपये किलो के टमाटर में अस्सी रुपये बीच वाले खा लेते हैं, किसान को बीस रुपये भी नहीं मिलते। टमाटर का अर्थशास्त्र बीचवालों के हक में है। आलू और प्याज का भी यही हाल है। इस अर्थशास्त्र पर लाकडाउन नहीं हो पा रहा है। लाकडाउन कई प्रकार के होते हैं। एक लाकडाउन कोरोना की वजह से आता है। दूसरे किस्म का पराली की वजह से आता है। तीसरे किस्म का लाकडाउन भयंकर सर्दी की वजह से आ सकता है। लाकडाउन के आदी लोग फिर भयंकर गर्मी की वजह से भी लाकडाउन की मांग कर सकते हैं। और जो कोरोना वाले लाकडाउन में परम आनंदित हुए दफ्तर न जाकर, पेट्रोल-डीजल के पैसे बचाकर, वे इन दिनों प्रार्थना कर रहे हैं कि ओमिक्रोन को देखते हुए लाकडाउन की कृपा फिर बरस जाए।
इन दिनों दिल्ली में परालीवाला लाकडाउन चल रहा है। इस लाकडाउन से शराब की दुकानें न बंद होतीं, पर स्कूल-कालेज बंद हो जाते हैं। इससे हमें शराब के महत्व का पता लगता है। कोरोना जनित लाकडाउन में भी जब यह सवाल उठा था कि सबसे पहले कौन से संस्थान-प्रतिष्ठान खोले जाएं तो शराब की दुकानें सबसे पहली खोली गईं। शराब की दुकानों को न कोरोना वाले लाकडाउन में बंद किया जाता है और न ही पराली वाले लाकडाउन में बंद किया जाता है। जबकि स्कूल-कालेजों को बंद रखा जाता है।
लाकडाउन के इतने किस्म सामने आ गए हैं कि लाकडाउन पर कविता, उपन्यास और चुनाव तक हो सकते हैं। बहुत संभव है कि समाज के कई वर्गो, छात्रों आदि का समर्थन हासिल करने के लिए नेतागण अच्छा वाले लाकडाउन का वादा कर सकते हैं। यह भी वादा कर सकते हैं कि पराली, कोरोना हो या न हो, फिर भी लाकडाउन घोषित किया ही जाएगा।
तरह-तरह के लाकडाउन आ सकते हैं, पर टमाटर के भावों पर लाकडाउन फिलहाल संभव नहीं दिखता है। ऐसा कभी न देखा गया कि प्याज, आलू, टमाटर के मिडिल मैन समस्या में हों, समस्याएं किसानों के साथ ही आती हैं। खेती-किसानी के मिडिल मैन की गाड़ी का साइज और असली किसान की समस्याएं एक साथ लगातार बढ़ रही हैं। कुल मिलाकर किसान की गरीबी कइयों की अमीरी का सबब बन जाती है। गरीब किसान पर कविता लिखी जा सकती है, जिसे फाइव स्टार होटल में सुनाकर लाखों पीटे जा सकते हैं। भूख पर लिखी कविता से इतने कमाए जा सकते हैं कि कइयों की भूख मिटाई जा सके, पर ऐसा होता नहीं है। मिडिल मैन ऐसा होने न देंगे। हल्ला कटे, बवाल हो, फालतू के सवाल हों, बस यह सवाल न हो कि सौ रुपये किलो के टमाटर में किसान को अस्सी रुपये क्यों न मिलने चाहिए?
लाकडाउन कितनी ही तरह के आ जाएं, मिडिल मैन की कमाई और असली किसान की दुर्गति पर लाकडाउन होता नहीं दिखता है। टमाटर के भावों पर लाकडाउन होता नहीं दिखता है। इसमें अधिक से अधिक कमाई मिडिल मैन की तिजोरी में जा रही है, इस पर लाकडाउन होता नहीं दिखता। किसान को सौ में से अस्सी कब मिलेंगे, यह सवाल उतना ही जटिल है जितना कि क्रिप्टोकरेंसी असल में क्या है?