इंसानियत शर्मसार: अनकही पीड़ा और भय की दास्तान

दुर्व्यवहार के मामले में केंद्र के चौकीदार और संरक्षकों ने एक बार फिर मानवीय सोच के मोर्चे पर भरोसे के भाव को ही रीता कर दिया है।

Update: 2021-09-30 01:44 GMT

छत्तीसगढ़ के जशपुर के एक दिव्यांग केंद्र में एक नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना इंसानियत को शर्मसार करने वाली है। एक दिव्यांग बच्ची के साथ की गई यह बर्बरता इंसानी सोच के कुत्सित और विक्षिप्त चेहरे को सामने लाने वाली है। जिन कर्मचारियों पर मासूमों की सुरक्षा का जिम्मा था, उनका यह बर्बर व्यवहार सिहरन पैदा करता है।

गौरतलब है कि इस आवासीय दिव्यांग केंद्र में आधी रात के समय केंद्र के कर्मचारियों द्वारा दुष्कर्म करने और पांच अन्य मित्रों के साथ मिलकर बच्चियों से छेड़छाड़ करने का मामला सामने आया है। नशे में धुत्त दो कर्मचारियों ने पंद्रह साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की दरिंदगी की है।
इतना ही नहीं, नाबालिग दिव्यांग छात्राओं के कपड़े फाड़ने के बाद उनके साथ मारपीट कर परिसर में दौड़ाया गया। मूक व बधिर बेटियां अपनी जान और मान बचाने के लिए परिसर में इधर-उधर भागती रहीं। घटना के विषय में पूछताछ करते शिक्षकों के वीडियो में बच्चियां सांकेतिक भाषा में आरोपी के बारे में बता रही हैं।
मूक-बधिर बच्चियों की यह अनकही पीड़ा और भय, समाज में बेटियों के प्रति असुरक्षा और असंवेदनशीलता के भयावह हालात को बताता है। हाल में मनाए गए बेटी दिवस पर सोशल मीडिया से लेकर असल जिंदगी तक, हर ओर बेटियों की उपलब्धियों की बात हुई। लाडलियों के प्रति स्नेह, मान और मनुहार का भाव दिखा। दुखद है कि इन्हीं दिनों जिन बच्चियों को थोड़े ज्यादा स्नेह और संभाल की दरकार है, उनके साथ ऐसी ज्यादती की घटना भी हुई।
विकृत सोच से उपजे ऐसे असुरक्षा के हालात समग्र समाज को सोचने पर विवश करते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देश में हर दिन 351 बच्चे हिंसा और 130 बच्चे यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं। कोरोना संकट की वैश्विक आपदा में भी मासूम बच्चों के साथ शोषण की घटनाएं हुई हैं।
एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 में बच्चों के खिलाफ अपराध के एक लाख, 28 हजार 531 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 47, 659 बच्चे यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ का शिकार हुए हैं। समझना मुश्किल नहीं कि जब आम बच्चे भी बड़ी संख्या में यौन प्रताड़ना और शोषण का शिकार बन रहे हैं, तब मूक बधिर बच्चों की सुरक्षा और गरिमा बचाने की उम्मीद ही बेमानी है। अफसोस कि कानूनी कार्रवाई की लचरता ऐसे लोगों का दुस्साहस और बढ़ाती है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण वाकया पहली बार नहीं हुआ है। रक्षक के भक्षक बन बैठने की घटनाएं हमारे यहां आम हैं। घर के आंगन से लेकर स्कूल, अस्पताल और कल्याण केंद्र तक में महिलाओं-बेटियों के शोषण में ऐसे लोग लिप्त पाए जाते हैं, जिन पर उनकी सुरक्षा का दायित्व होता है।
बोलकर अपनी पीड़ा तक न कह सकने वाली दिव्यांग बच्चियां ही नहीं, अस्पताल के आईसीयू वार्ड में ऑपरेशन के बाद बेसुध महिला मरीज की मजबूरी का फायदा उठाकर पुरुष नर्स द्वारा उसके साथ अश्लील हरकतें करने का मामला भी हमारे ही समाज में हुआ है। दिव्यांगों के कल्याण के लिए बने केंद्रों में भी उनके साथ होने वाले व्यवहार को लेकर हर मोर्चे पर कथनी और करनी के अंतर की मानसिकता दिखती रही है।
हाल ही में पैरालंपिक खेलों में अविश्वनीय प्रदर्शन कर दिव्यांग खिलाड़ियों ने विश्व पटल पर देश का मान बढ़ाया है। पदक पाने वालों की सूची में बेटियां भी पीछे नहीं रहीं। ऐसे में बोल और सुन नहीं सकने वाले बच्चों के संरक्षण से संबंधित एक केंद्र में यौन शोषण और दुर्व्यवहार की स्थितियां बताती हैं कि दिव्यांगजन मन की मजबूती के बल पर देश का नाम रौशन कर सकते हैं, पर अपने परिवेश में लोगों की स्याह सोच उनके जीवन के लिए जोखिम बनी हुई है।
जहां रक्षक ही भक्षक बन जाएं, वहां आखिर किससे उम्मीद की जाए? बेटियों के लिए कोई सुरक्षित जगह बची भी है? मूक-बधिर बच्चियों के साथ हुए दुर्व्यवहार के मामले में केंद्र के चौकीदार और संरक्षकों ने एक बार फिर मानवीय सोच के मोर्चे पर भरोसे के भाव को ही रीता कर दिया है।

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