मानवाधिकार: जल-जंगल-जमीन से जुड़ी विरासत और महत्वपूर्ण मानवीय प्रश्न
निष्ठा और जागरूकता के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा विश्व मानवाधिकार दिवस के दिन विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मानवाधिकार के संदर्भ में जिस तरह प्रकृति के विभिन्न घटकों का उल्लेख किया, उसकी चारों तरफ प्रशंसा हो रही है। आदिवासी समुदाय से आने वाली राष्ट्रपति मुर्मू जल-जंगल-जमीन के मसले, प्राकृतिक सौंदर्य और विरासत में प्राप्त प्रकृति की चीजों को बहुत करीब से महसूस करती हैं। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तारीफ करते हुए मानवाधिकार से संबंधित जिन महत्वपूर्ण प्रश्नों को सामने रखा, वह कोई प्रकृति से जुड़ा हुआ व्यक्ति ही प्रकट कर सकता है।
अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा कि मानवाधिकार हमारी प्रकृति के लिए बहुत अहम है। दुनिया के बदलाव के साथ जो चुनौतियां हैं, उसे देखते हुए मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन जरूरी है। मानवाधिकारों की अवधारणा जहां हमें हर इंसान को अपने से अलग नहीं मानने की प्रेरणा देती है, वहीं प्रकृति और पूरे परिवेश का सम्मान करने लिए भी प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि हमारे आसपास के जीव-जंतु और पेड़ अगर बोल सकने में सक्षम होते, तो वे हमें क्या बताते? हमारी नदियां मानव इतिहास के बारे में क्या कहतीं? और हमारे मवेशी मानवाधिकारों के विषय पर क्या कहते? आगे उन्होंने कहा कि हमने लंबे समय तक उनके अधिकारों को कुचला है और अब परिणाम हमारे सामने है। हमें फिर से यह सीखने की आवश्यकता है कि हम प्रकृति के साथ सम्मान का व्यवहार करें। यह न केवल हमारा नैतिक कर्तव्य है, बल्कि हमारे अपने अस्तित्व के लिए भी जरूरी है।
मानवाधिकारों के प्रश्न को प्रकृति के विभिन्न घटकों के साथ जोड़ना और उनके भीतर की संवेदना को महसूस करना राष्ट्रपति की अपनी संवेदना की एक अद्भुत मिसाल है। लगता है कि वह सिर्फ मनुष्य समाज ही नहीं, बल्कि आसपास के परिवेश एवं प्रकृति से जुड़ाव को महत्वपूर्ण मानती हैं। यदि ऐसा होता है, तो हम साथ-साथ जी सकेंगे और अपने जीवन को ज्यादा समृद्ध और सजग बनाकर सतत विकास की परंपरा से समाज के हर वर्ग को जोड़ सकेंगे।
आज जिस प्रकार समाज और परिवार में एकाकीपन बढ़े हैं, और लोग उपभोगवादी संस्कृति और बाजार के दबाव में सिकुड़े हुए संबंधों में जीने लगे हैं, तो प्रकृति के साथ सामंजस्य की बात पीछे छूट जाती है। ऐसे में मानवाधिकारों की बात करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू का यह कहना कि 'हमारे पर्यावरण', 'जलवायु संकट के मुद्दे' और 'संबंध' बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इसके पीछे एक बड़ा संदेश भी है, जिसे यदि भारत सहित पूरी दुनिया के लोग समझ लेते हैं, तो हमारे बीच बड़ा बदलाव होगा।
विश्व मानवाधिकार दिवस के ठीक एक दिन पूर्व संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने भी कहा कि मानवाधिकार मानव गरिमा की बुनियाद है, और शांतिपूर्ण, समावेशी, न्यायपूर्ण, समान और समृद्ध समाजों की आधारशिला भी। मानवाधिकार एकजुट करने वाली शक्ति है और एकजुटता की पुकार भी। एंटोनियो गुटेरस और राष्ट्रपति मुर्मू के विचारों को समझ कर यदि भारत एक गतिशील मानवाधिकार का पैरोकार बने, तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि विश्व पटल पर भारत की छवि कुछ और होगी।
विश्व मानवाधिकार दिवस पर महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू ने जो संदेश दिया है, उसका विस्तार कैसे हो, इस पर विचार किया जाना चाहिए। हम सार्वभौम मूल्यों के साथ तेजी से मानवाधिकारों का संवर्धन करें। प्रकृति के साथ उन्हीं का तादात्म्य बनता है, जो उदात्त भाव से प्रकृति से जुड़ते हैं। हर नागरिक के अपने उत्तरदायित्व हैं, जिसे जरूर निभाना चाहिए, तभी अच्छे परिणाम मिलेंगे और हम बेहतर भविष्य की आशा कर सकते हैं, वरना संदेश तो संदेश बनकर रह जाएंगे। आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी निष्ठा और जागरूकता के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें।
सोर्स: अमर उजाला