बढ़ती आबादी से कैसे सधेगा संतुलन : जनसंख्या विस्फोट के बीच बढ़ते खाद्य संकट से उबरने के उपाय खोजने होंगे
पूरे यूरोप और दुनिया के कई देशों ने 'जनसंख्या विस्फोट' की स्थिति से बचने के लिए उचित उपाय करना शुरू कर दिया।
जनसंख्या बढ़ोतरी और खाद्योत्पादन की चिंता साथ-साथ चलती है। आज 15 नवंबर को जब संयुक्त राष्ट्र की गणना के मुताबिक, दुनिया की जनसंख्या आठ अरब हो रही है, तो माल्थस के बहुचर्चित सिद्धांत की अनुगूंज सुनाई पड़ रही है। जनसंख्या और खाद्योत्पादन के संबंधों का जो दर्शन कभी माल्थस ने दिया था, वह लगभग सवा 200 वर्ष बाद यथार्थ रूप लेता प्रतीत हो रहा है। एक शताब्दी से अधिक समय तक कठोर आलोचनाओं का दंश और व्यंग्य बाण झेलते माल्थस का सिद्धांत अब दुनिया के सामने सीना ताने खड़ा है।
थॉमस रॉबर्ट माल्थस (1766-1834) कभी अपने देश, इंग्लैंड की जनसंख्या वृद्धि से चिंतित थे। वर्ष 1798 में उन्होंने, 'जनसंख्या का सिद्धांत' विषयक एक निबंध लिखा। उन्होंने 1803 में अपने निष्कर्षों को फिर से संशोधित किया। माल्थस को पूर्वाभास था कि उस समय इंग्लैंड एक आपदा की ओर बढ़ रहा है और, इसलिए, वह चाहते थे कि शासक उस अत्यंत महत्वपूर्ण समस्या से परिचित हों। माल्थुसियन सिद्धांत है क्या? यह बहुत दिलचस्प है, क्योंकि यह भोजन और बढ़ती मानव आबादी के बीच संबंधों के महत्व को रेखांकित करता है।
एक वाक्य में कहें तो यह है : 'घातीय जनसंख्या वृद्धि और अंकगणितीय खाद्य आपूर्ति वृद्धि का सिद्धांत।' माल्थस के अपने शब्दों में : 'प्राकृतिक रूप में मानव खाद्य का उत्पादन धीमे अंकगणितीय अनुपात में बढ़ता है और जनसंख्या एक त्वरित ज्यामितीय अनुपात में बढ़ती है, जब तक कि उसे रोका न जाए।' माल्थस की चेतावनी थी कि जनसंख्या में निरंतर वृद्धि उस स्तर पर पहुंच जाएगी, जहां खाद्य आपूर्ति आबादी को पोषित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी। माना जाता है कि मानव आबादी हर 25 साल में दोगुनी हो जाती है।
जनसंख्या की वृद्धि भोजन की अबाध उपलब्धि का ही परिणाम है तथा खाद्य उत्पादन ह्रासमान प्रतिफल के नियम (लॉ ऑफ डिमिनिशिंग रिटर्न) के अधीन है। इन दो पहलुओं के आधार पर माल्थस ने अनुमान लगाया कि मानव आबादी खाद्य आपूर्ति से आगे निकल जाएगी। क्या होगा यदि किसी देश की मानव संख्या खाद्य उत्पादन के स्तर से अधिक हो जाए? माल्थस का तर्क है कि बहुत से लोग भोजन की अनुपलब्धता से मरेंगे। जनसंख्या वृद्धि पर एक ठोस राष्ट्रीय नीति बनाकर तथा उसको कानूनी रूप देकर उसका कठोरता से अनुपालन नहीं किया गया तो, जनसंख्या नियंत्रण का प्राकृतिक रूप उभर कर सामने आएगा, जो बहुत ही भयावह होगा।
माल्थस का मानना था कि जो सकारात्मक या प्राकृतिक नियंत्रण जनसंख्या-खाद्योत्पादन असंतुलन को पुनः संतुलन में ला देंगे, वे हैं अकाल, बीमारी और युद्ध। 19 वीं और 20 वीं सदी में माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की व्यापक रूप से आलोचना की गई। आलोचना का हॉटस्पॉट रहा यूरोप, जहां खाद्योत्पादन की दर जनसंख्या वृद्धि से निरंतर आगे रही। जिन देशों को अर्थशास्त्री बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में 'तीसरी दुनिया' कहकर संबोधित करते रहे, उसके कई देश कृषि की नई तकनीकों के आगमन से खाद्योत्पादन में 'प्रथम दुनिया' के समकक्ष आ गए।
भारत उनमें से एक रहा है। माल्थस की आलोचना इसलिए भी की जाती है कि उन्होंने सामाजिक-आर्थिक विकास के नए क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया, जैसे कृषि योग्य भूमि का विस्तार, आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, परिवहन और संचार के साधन, देशों के बीच खुला व्यापार, आदि जो अकाल और भुखमरी जैसी किसी भी स्थिति से बचने में सहायक होंगे। माल्थुसियन सिद्धांत बढ़ती जन्म दर को जनसंख्या वृद्धि का एकमात्र कारण मानता है। वास्तविकता का दूसरा पक्ष यह है कि घटती मृत्यु दर और लोगों के जीवन काल में वृद्धि भी जनसंख्या के आकार के प्रमुख कारण हैं।
माल्थस ने यह नहीं सोचा था कि चिकित्सा विज्ञान में शानदार उपलब्धियों से घातक बीमारियों का इलाज और नियंत्रण हो सकता है और लोगों के जीवन काल में काफी वृद्धि हो सकती है, जिससे जनसंख्या वृद्धि की तीव्र दर बढ़ सकती है। हालांकि उनका सिद्धांत इंग्लैंड के लिए अपनी वैधता सिद्ध नहीं कर पाया, लेकिन सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के बदलने के कारण इस पर ध्यान केंद्रित किया गया और इसने लोगों को अपने भविष्य के बारे में पर्याप्त जागरूक किया।
सिद्धांत के मूल तत्व आज भी जीवित हैं। वास्तव में, इस सिद्धांत की एक सार्वभौमिक अपील है। यह सिद्धांत केवल एक जैव-भौतिक इकाई के रूप में दृष्टिगोचर नहीं होता। यह अपने आप में एक घटना है। और, कुल मिलाकर, यह घटना चल रही है, यद्यपि धीमी गति से। एशिया और अफ्रीका के कई देश पहले से ही एक गंभीर वास्तविकता का सामना कर रहे हैं, जिसकी माल्थस ने 18वीं शताब्दी के अंत में भविष्यवाणी की थी। और इस वर्ष तो श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा भारत के कई अन्य पड़ोसी देशों ने माल्थस सिद्धांत के उसकी संपूर्णता में दर्शन कर लिए हैं।
यदि आज की दुनिया में संपूर्ण यूरोप और अधिकांश पश्चिमी देशों को अधिक जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक कष्टों की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है, तो इसका श्रेय भी माल्थस को जाता है। माल्थस ने अपने देश को अति-जनसंख्या के परिणामों के बारे में आगाह किया और पूरे यूरोप और दुनिया के कई देशों ने 'जनसंख्या विस्फोट' की स्थिति से बचने के लिए उचित उपाय करना शुरू कर दिया।
सोर्स: अमर उजाला