राकेश टिकैत के आंसू से कैसे फिर जिंदा हो गया गाजीपुर का किसान आंदोलन

गाजीपुर और दिल्ली बॉर्डर पर जहां कल दो सौ किसान बमुश्किल दिखाई पड़ रहे थे

Update: 2021-01-30 12:56 GMT

गाजीपुर और दिल्ली बॉर्डर पर जहां कल दो सौ किसान बमुश्किल दिखाई पड़ रहे थे. वहां राकेश टिकैत के आंसुओं ने वापस किसानों को घर छोड़कर गाजीपुर बॉर्डर पर आने को मजबूर कर दिया. आलम यह हुआ कल देर रात से किसानों के आने का सिलसिला शुरू हुआ और आज दिन भर मेरठ, मुजफ्फरनगर, नोएडा ,गाजियाबाद जैसे जगहों से किसान भारी संख्या में गाजीपुर पहुंचने लगे हैं.


टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन की चिंगारी फिर जला दी है?
26 जनवरी को हुए हिंसा के बाद किसान नेता राकेश टिकैत पूरी तरह से डिफेंसिव दिख रहे थे. किसानों के हो रहे पलायन से उन्हें इल्म हो चुका था कि आंदोलन अब एक दिन भी चलने वाला नहीं है. इसलिए उन्होंने दिल्ली पुलिस का अपने खिलाफ नोटिस देखकर सरेंडर करने का मन बना लिया था. गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के समर्थक गौरव वालियान की मानें तो राकेश टिकैत सरेंडर करने के मूड में थे लेकिन बीजेपी के एक विधायक की अचानक उपस्थिती से सारा माहौल बदल गया. दरअसल राकेश टिकैत इस बात से बिफर गए कि बीजेपी का एक विधायक उनकी अनुपस्थिती में उनके समर्थक कुछ किसान, जो गाजीपुर बॉर्डर पर बचे थे उनके खिलाफ हिंसक वारदात कर सकते हैं. इसलिए राकेश टिकैत ने अचानक मन बदलकर लोगों से रुकने की अपील कर डाली.

इतना ही नहीं राकेश टिकैत ने पानी तक नहीं पीने का ऐलान कर डाला और टीवी और अन्य मीडिया के मार्फत जब ये समाचार किसानों के बीच पहुंचा तो उनके गांव और आस पास के पांचायत के किसान राकेश टिकैत के समर्थन में ट्रैक्टर और गाडियों से गाजीपुर बॉर्डर की तरफ कूच करने लगे. आज तड़के 1 बजे दिन में मंच पर उस घड़े को मीडिया के सामने प्रदर्शित किया गया जिसमें राकेश टिकैत के लिए गांवों से पीने के लिए पानी लाया गया था. फिर क्या था माहौल एक बार पूरी तरह बदलता हुआ नजर आया और हर टेंट में वापस किसान घुसते नजर आए. वहीं भारी संख्या में लोग किसान एकता जिंदाबाद के नारे लगाते हुए मंच के चारों तरफ भारतीय झंडा को लहराते हुए पहले की तरह दिखाई पड़ने लगे.

कैसे नरम पड़ता आंदोलन फिर से जाग उठा?
नौजवान किसान इस बात से आहत दिखे कि 62 दिनों तक शांतीपूर्ण चला आंदोलन बिना किसी निष्कर्ष के कैसे दम तोड़ सकता है. गाजियाबाद के भोपरा गांव से आई एक महिला सरला गौतम की मानें तो रात का न्यूज देखकर वो अपने आप को रोक नहीं सकीं और किसान परिवार की बेटी होने की वजह से राकेश टिकैत का समर्थन करने वो गाजीपुर और दिल्ली बॉडर पर पहुंच गई हैं.

नोएडा के बहलौलपुर गांव के अतुल यादव कहते हैं कि किसान आंदोलन दो महीने से चल रहा था और इसके साथ पूरे देश की आत्मीयता जुड़ चुकी थी. लेकिन एक सोची समझी साजिश के तहत गणतंत्र दिवस के दिन हिंसा फैलाया गया ताकि लोगों की भावना किसान आंदोलन के खिलाफ भड़के.

मेरठ के डंकाताली से आए गौरव वालियान जो वकालत की पढ़ाई कर वकालत के साथ साथ किसानी का पेशा भी करते हैं कहते हैं कि किसान शांतीप्रिय लोग होते हैं और हमारी आजादी की धरोहर लाल किले पर जब कोई और झंडा फहरता हुआ दिखाया गया तो ग्लानी में आकर किसान अपने घरों को लौटने लगे. लेकिन राकेश टिकैत को रोता देख हम लोगों से रहा नहीं गया इसलिए हम पूरी ताकत से गाजीपुर दिल्ली बॉर्डर पर वापस लौट आए हैं.

किसान फिर से आरपार के मूड में
दरअसल, यहां पर मौजूद ज्यादातर किसान कृषि बिल के तीनों प्रावधान से पूरी तरह खफा हैं. उनसे बात करने पर ये साफ ज़ाहिर होता है कि तीनों प्रावधान को वापस लेने पर ही वो राजी होंगे. इस बिल के प्रारूप को लेकर उनमें पूरी तरह से नाराजगी है और इसे वो साधारण किसान के खिलाफ करार देते हैं.

बुलंदशहर के रतन सिंह का कहना है कि ओपन मार्केट में बेचने का इनका फरमान बेहद खोखला है. अगर ऐसा ही है तो एमएसपी की गारंटी सरकार हमें क्यूं नहीं देती है?

रतन सिंह के मुताबिक 86 फीसदी किसान 10 बीघे और उससे कम वाले हैं इसलिए उनकी औकात कम होने की वजह से अपने माल को कहीं भी ले जाने में वो समर्थ भला कैसे हो सकते हैं?

वहीं प्रभजोत जो अब किसानी कर अपना गुजारा करते हैं वो सामाचार देखकर बरेली से गाजीपुर दिल्ली बॉर्डर पहुंचने का दावा कर रहे हैं. प्रभजोत सीआरपीएफ से रिटायर होने के बाद किसानी पेशा अपनाए हैं लेकिन सरकार के भंडारण नीति, और कंट्रेक्ट फार्मिंग के खिलाफ उनकी गहरी नाराजगी है.

भारत की तरफ से खेलने का दावा करने वाले प्रभजोत कहते हैं कि पूरी जिंदगी देश की सेवा की लेकिन अब उनसे राष्ट्रवादी होने का प्रमाण कुछ लोग मांग रहे हैं तो उनसे क्या कहा जा सकता है. बॉर्डर पर जवान और खेतों में किसान ही हैं जो खून पसीने की ताकत से देश के लिए मेहनत करते हैं लेकिन आज उनकी सुनने को सरकार बिल्कुल तैयार नहीं है.

दरअसल, प्रभजोत सहित सुबोध चौधरी और कई किसान इस बात से खफा दिखते हैं कि कानून को जबर्दस्ती थोप कर 80 फीसदी छोटे किसानों के साथ अन्याय किया जा रहा है. उनका कहना है कि आगे चलकर कई छोटे किसान बड़े पूंजीपतियों के गुलाम होने पर मजबूर होंगे और इससे सामाजिक व्यवस्था गांव से लेकर कस्बों तक की छिन्न भिन्न हो जाएगी.

मोदी नगर से आए सुबोध चौधरी के मुताबिक सरकार डेढ़ साल कानून को बहाल करने से पीछे इस वजह से हट रही है कि आंदोलन का असर उसे समझ में आ चुका है. सुबोध चौधरी आगे कहते हैं कि आने वाले छह राज्यों के चुनाव में इसका असर उल्टा पड़ सकता है इसलिए सरकार कानून वापस लेने की बजाय उसे बहाल नहीं करने की बात कह रही है.

लेकिन यह पूछे जाने पर कि आंदोलन देश विरोध का रास्ता कैसे अख्तियार कर लिया तो गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद कई किसान इस बात को सिरे से खारिज एक स्वर में करते हैं. उनका कहना है कि 62 दिनों से शांतीपूर्ण आंदोलन करने वाला किसान गणतंत्र दिवस के दिन उग्र कदापि नहीं हो सकता है. इसलिए हम सरकार से अपील करते हैं कि देश की पुलिस और धरोहर पर हमला करने वालों को सरकार बेनकाब करे और मेहनतकश किसान के साथ न्याय करे.


Tags:    

Similar News

-->