कितनी शुद्ध हो हवा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एयर क्वॉलिटी गाइडलाइंस में बदलाव लाते हुए हवा की शुद्धता के मानकों को और सख्त बना दिया है।

Update: 2021-09-24 02:05 GMT

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी एयर क्वॉलिटी गाइडलाइंस में बदलाव लाते हुए हवा की शुद्धता के मानकों को और सख्त बना दिया है। डब्ल्यूएचओ के पुराने मानक 2005 में तय हुए थे। निश्चित रूप से इन 16 वर्षों में दुनिया ने काफी बदलाव देखे, लेकिन जहां तक डब्ल्यूएचओ के मानकों को लागू किए जाने का सवाल है, तो उस मोर्चे पर हालात संतोषजनक नहीं रहे। खुद डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में दुनिया की 90 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही थी, जो इसके 2005 के मानकों के मुताबिक हानिकारक थी।

ऐसे में यह सवाल पूछा जा सकता है कि जब पिछले मानक ही ढंग से लागू नहीं हो पाए हैं तो उन्हें अच्छी तरह लागू करने के बजाय मौजूदा मानकों को और कड़ा बनाने का भला क्या मतलब? क्या इससे यह खतरा नहीं है कि कुछ देश इतना पीछे छूट जाएं कि उनमें इन मानकों को लागू करने का संकल्प ही कमजोर पड़ने लगे? ऐसी आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन यह समझना होगा कि पर्यावरण की लगातार बिगड़ती दशा एक ऐसी चुनौती बन गई है, जिससे पूरी ताकत से निपटने के सवाल पर किसी भी तरह के किंतु-परंतु के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। चाहे जैसे भी हो, पर्यावरण को बेहतर बनाने वाले कदम हमें उठाने ही होंगे।
डब्ल्एचओ द्वारा एयर क्वॉलिटी गाइडलाइंस में किए गए ताजा बदलाव भी कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन इनसे सभी देशों को यह संदेश जरूर जाएगा कि हवा में प्रदूषण कम करने के लिए सख्त कदम उठाना उनके लिए कितना जरूरी हो गया है। आज भी दुनिया में हर साल करीब 70 लाख मौतें खराब हवा में सांस लेने की वजह से हो रही हैं। मगर सवाल सिर्फ इन मौतों का या इस वजह से होने वाली बीमारियों का नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने हवा में जिन पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे खतरनाक अवयवों को कम करने का आग्रह नए मानकों के जरिए किया है, उनका मुख्य स्रोत कोयला, पेट्रोल जैसे खनिज ईंधन का उपयोग है। इन ईंधनों के उपयोग में कमी से से जहां हवा का प्रदूषण कम होगा, वहीं जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर भी राहत मिलेगी।
यानी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते विनाशकारी गतिविधियों का जो चक्र घूमना शुरू हो चुका है, उसकी गति भी कुछ नियंत्रित हो सकती है। मगर यह सब निर्भर करता है इस बात पर कि डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों को विभिन्न देश कितनी गंभीरता से लेते हैं। भारत भी उन देशों की सूची में है, जो इन सिफारिशों को लागू करने में बहुत पीछे है। ऐसे में इन मानकों को रातोंरात लागू करने की खुशफहमी पालने के बजाय हमें अपने मानकों को जल्द से जल्द लागू करने और उन्हें बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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