नब्ज पर कितना हाथ

सुधारने की जिद्द में सुक्खू सरकार ने अपनी व्यापक शक्तियां और नजरिया तो चुन लिया, लेकिन पूरी पंक्तियां लिखने की इबारत अभी बाकी है।

Update: 2022-12-18 12:54 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सुधारने की जिद्द में सुक्खू सरकार ने अपनी व्यापक शक्तियां और नजरिया तो चुन लिया, लेकिन पूरी पंक्तियां लिखने की इबारत अभी बाकी है। सुखविंद्र सुक्खू ने शपथ ग्रहण समारोह में अपनी देह भाषा में सदाशयता, मेल मिलाप और सभी को साथ मिलाकर आगे बढ़ाने की कोशिश की, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की ऊर्जा और ताकत का प्रदर्शन भी किया। आरंभिक फैसलों ने सरकार और सरकार के शिखर के रूप में सुखविंद्र सुक्खू को जरूर देखा होगा, लेकिन परीक्षाओं का यह दौर-कत्र्तव्यों की एक लंबी फेहरिस्त भी बना रहा है। पिछली सरकार के अंतिम निर्देशों की पड़ताल के साथ-साथ पूरे हिमाचल, हिमाचल की व्यवस्था, विभागीय अस्वस्थता और सियासी जखीरा बने तमाम ट्रांसफर आर्डर की तफतीश करनी होगी। हिमाचल हमेशा सत्ता को अवसर देकर खुद को निहारता है यानी कांग्रेस को वह इन्हीं निहारते संकल्पों में सफल होते देखना चाहता है। अनाथ बच्चों की जिम्मेदारी के लिए जिस तरह राजेश धर्माणी की समीति सामने आई है, उसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए अलग-अलग समीतियों का त्वरित गठन होना चाहिए ताकि पता लगाया जाए कि शिक्षण व चिकित्सा संस्थानों के कुशल संचालन के लिए कहां-कहां रिक्तियां भरी जानी हंै।

प्रदेश की आर्थिक खुशहाली के लिए क्षेत्रवार अध्ययन के लिए समीति चाहिए, तो सरकार की फिजूलखर्ची घटाने के लिए भी इस तर्ज पर गंभीर पारदर्शी प्रयास होने चाहिएं। यह दीगर है कि मुख्यमंत्री ने सर्वप्रथम राजनीतिक सलाहकार के रूप में सुनील शर्मा, मीडिया सलाहकार नरेश चौहान और गोकुल बुटेल को आईटी का मुख्य सलाहकार बनाकर अपने आसपास ऐसा आभामंडल बनाना शुरू किया है। यह सही दिशा हो सकती है बशर्ते मुख्यमंत्री सलाहकारों का एक पूरा बोर्ड बनाएं और जिसके तहत हिमाचल के प्रमुख विषय संबोधित हों तथा समग्रता के साथ नीतियां, प्राथमिकताएं व परियोजनाएं आकार ले सकें। बहरहाल राजनीतिक चेहरे ही सलाहकारों के टोले में प्रवेश कर रहे हैं, जबकि हिमाचल के परिप्रेक्ष्य में कई प्रतिष्ठित व दक्ष हस्तियां रही हैं जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में हैसियत बनाई है। अत: ऐसे गैरराजनीतिक चेहरे अगर पहचाने जाते हैं, तो सरकार की आत्मा निर्लिप्त व ज्यादा पारदर्शी हो जाएगी। ये लोग विभिन्न निगम-बोर्डों के सदस्य बनने की पात्रता के अलावा मुख्यमंत्री के सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी हो सकते हैं, इसी तरह हर मंत्री भी अपने दायित्व की ईमानदारी व पूर्णता के लिए ऐसे ही सलाहकार समीति से विभिन्न कार्यों का उन्नयन कर सकते हैं। मंदिरों की आय का सदुपयोग और आय बढ़ाने के लिए अगर मंदिर विकास बोर्ड या प्राधिकरण का गठन किया जाए, तो प्रदेश स्तर बड़े कार्य तथा मंदिर आर्थिकी का विकास होगा।
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