सवाल यह नहीं है कि वरुण गांधी ने जो मांग की है वह जायज है या नहीं. सवाल है कि सत्तारूढ़ दल के सांसद द्वारा सार्वजनिक रूप से सरकार और पार्टी के खिलाफ जाना कितना उचित है. माना कि वरुण गांधी के रगों में गांधी-नेहरु परिवार का खून ही दौड़ रहा है, पर वरुण और उनकी मां मेनका गांधी स्वेक्षा से बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी ने दोनों को उचित मान और सम्मान भी दिया था. हालांकि बीजेपी एक ही परिवार के दो सदस्यों को चुनाव में टिकट देने के विरुद्ध है, पर 2009 से मेनका और वरुण को बीजेपी लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारती रही है, वरुण गांधी को 2013 में बीजेपी ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया और 2014 में मेनका गांधी को नरेन्द्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री.
ये बातें वरुण गांधी को शक के दायरे में खड़ी करती हैं
यह अलग बात है कि मेनका अब मंत्री नहीं हैं. शायद उन्हें उम्मीद थी कि उनकी जगह वरुण को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, नहीं तो कम से कम पार्टी में ही उन्हें फिर से महासचिव नियुक्त किया जाएगा. पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. केंद्रीय मंत्रीमंडल में फेरबदल और विस्तार हुआ और पार्टी में भी कुछ नियुक्तियां की गयीं, पर वरुण गांधी का नंबर नहीं आया. किसान आन्दोलन लगभग पिछले 10 महीनों से चल रहा है. अब तक चुप रहने के बाद वरुण गांधी का किसानों में समर्थन में बात करना और चिट्ठी लिखना जबकि उन्हें ना तो सरकार में ना ही पार्टी में कोई मौका मिला, वरुण गांधी को शक के दायरे में खड़ा करता है.
लोकसभा चुनाव का डर सता रहा है वरुण गांधी को
वरुण गांधी को शायद अभी से अगले लोकसभा चुनाव के जीत की चिंता सता रही है. पीलीभीत, नेपाल और उत्तराखंड से जुदा उत्तर प्रदेश का बॉर्डर का इलाका है जहां घने जंगल हैं, जंगली जानवर हैं और वहां के अधिकतर लोग कृषि से जुड़े हैं. लाजमी है कि वरुण गांधी को लगता है कि अगर किसान आन्दोलन और भी लम्बा खिंचा तो उसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है. अभी तक पीलीभीत से मेनका गांधी 6 बार और वरुण गांधी 2 बार सांसद चुने गए हैं. पिछले 32 वर्षों से यहां मेनका या वरुण 27 सालों से सांसद रहे हैं. सिर्फ एक बार 1991 में मेनका गांधी बीजेपी के प्रत्याशी के हाथों पराजित हुई थीं. वह एक बार जनता दल से, दो बार निर्दलीय और दो बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं, जबकि 2009 और 2019 में वरुण गांधी बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते हैं.
प्रियंका गांधी से काफी लगाव है वरुण गांधी को
लोकसभा चुनाव अभी लगभग ढाई साल दूर है. उससे पहले अगले वर्ष की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाला हैं. बीजेपी को वरुण गांधी से उम्मीद रही होगी कि वह अपनी पूरी ताकत बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने में झोंक देंगे. पर वरुण गांधी के तेवर को देखते हुए ऐसा लगता है कि उनकी मंशा कुछ और ही है. वरुण गांधी को शुरू से ही अपनी दीदी प्रियंका गांधी से काफी लगाव रहा है. आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस पार्टी की प्रदेश में बागडोर प्रियंका गांधी के हाथों में है.
इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी को मेनका गांधी से शिकायत थी, जिसके कारण 1982 में मेनका को, जबकि वरुण लगभग दो साल के ही थे, इंदिरा गांधी ने अपने घर से निकाल दिया था. बाद में एक इंटरव्यू में मेनका गांधी ने सोनिया गांधी पर उनके खिलाफ इंदिरा गांधी को भड़काने का आरोप लगाया था. पर इस कड़वाहट का असर वरुण गांधी पर नहीं दिखता है. पूर्व में उन्होंने ताई सोनिया गांधी और बड़े भैय्या राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव में प्राचर करने से मना कर दिया था. यह कहना तो कठिन है कि वरुण गांधी जानबूझ कर किसानों के हक़ में इसलिए बयानबाज़ी कर रहे हैं ताकि उन्हें अनुशासन भंग करने के आरोप में पार्टी से निकाल दिया जाये और उनकी लोकसभा सीट बची रहे, पर इतना तय है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और पूरा कांग्रेस पार्टी दिल खोल कर उनका घर की पार्टी में स्वागत करने को तैयार बैठी है.
देश की 95 फीसदी बांसुरी पीलीभीत में बनती है
हां, पीलीभीत अपनी बांसुरी उत्पादन के लिए मशहूर है. देश की लगभग 95 प्रतिशत बांसुरी पीलीभीत में ही बनती है, भले ही बांस असम से आता है. वरुण जो धुन अपनी बांसुरी से इनदिनों बजा रहे हैं वह बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पार्टी को भा रही है. बीजेपी ने फिलहाल कान में रुई डाल रखी है और वरुण गांधी की अनदेखी कर रही है. देखना होगा कि वरुण की बांसुरी कब तक बीजेपी में इसी तरह बज पाएगी.