चुनौतियों के बीच उम्मीद
इंडोनेशिया के बाली में मंगलवार से शुरू हो रहे जी-20 देशों के 17वें शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार रात रवाना हो गए। यह सम्मेलन भारत के लिए खास इसलिए भी है
नवभारत टाइम्स: इंडोनेशिया के बाली में मंगलवार से शुरू हो रहे जी-20 देशों के 17वें शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार रात रवाना हो गए। यह सम्मेलन भारत के लिए खास इसलिए भी है कि इसमें जी-20 की अध्यक्षता उसे मिलने वाली है। यह अध्यक्षता एक साल के लिए ही है, लेकिन महत्वपूर्ण इस मायने में है कि दुनिया जब जबरदस्त चुनौतियों से घिरी है, तब भारत को यह जिम्मेदारी मिल रही है। बहरहाल, जी-20 की यह शिखर बैठक जिन परिस्थितियों में हो रही है, वे भी किसी मायने में सामान्य नहीं कही जा सकतीं। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। ऐसे में रूस की मौजूदगी में शिखर बैठक का माहौल कितना सामान्य और सौहार्दपूर्ण रह पाएगा, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि शिखर बैठक से पहले ही रूस ने साफ कर दिया कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन इसमें शिरकत नहीं करेंगे, न ही इस बैठक को वर्चुअली संबोधित करेंगे। उनकी जगह विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव रूस की नुमाइंदगी करेंगे। इसके बावजूद कई सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख रूस की मौजूदगी को लेकर इस कदर असहज महसूस कर रहे थे कि सभी नेताओं का ग्रुप फोटो लेने का पारंपरिक कार्यक्रम इस बार टाल दिया गया है।
देखना होगा कि सम्मेलन के आखिर में कोई साझा वक्तव्य भी जारी हो पाता है या नहीं। मगर इन सबके बीच शिखर बैठक के दौरान विभिन्न नेताओं के बीच होने वाली द्विपक्षीय बैठकों को बेहद अहम माना जा रहा है। खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात पर सबकी नजरें टिकी हैं। बतौर राष्ट्रपति बाइडन की यह शी से पहली ही आमने-सामने की मुलाकात है, लेकिन ताइवान को लेकर दोनों देशों के बीच हाल में बनी तनातनी के मद्देनजर इसकी अहमियत बढ़ गई है। इस बीच उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण तनाव का एक और बिंदु बन कर उभरे हैं। माना जा रहा है कि शी चिन फिंग के साथ मुलाकात में बाइडन यह मसला भी उठाएंगे।
उत्तर कोरिया इस साल 60 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें लॉन्च कर चुका है जो पिछले कुछ समय से हर साल किए जाने वाले औसत लॉन्च के दोगुने से भी ज्यादा है। अमेरिका का कहना है कि अगर उत्तर कोरिया का यही रवैया रहा तो उसे उस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाने का फैसला करना पड़ेगा। अगर ऐसा हुआ तो उस क्षेत्र में एक अलग तरह की होड़ शुरू हो सकती है, जो किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विभिन्न नेताओं से मिलेंगे, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी के साथ उनकी मुलाकात का कोई कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ है। फिर भी इस महत्वपूर्ण मंच पर जब दुनिया के प्रमुख नेता जुट रहे हैं तो उम्मीद इससे दूर खड़ी नहीं रह सकती। देखना होगा कि दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने का क्या हल इस दो दिवसीय बैठक से निकलता है।