पीएफ ब्याज दर में ऐतिहासिक कटौती! आखिर इसके पीछे क्या है सरकार की मंशा?
पीएफ ब्याज दर में ऐतिहासिक कटौती
प्रवीण कुमार।
केंद्र सरकार ने देश के पब्लिक और प्राइवेट सेक्टरों में काम करने वाले करीब 6 करोड़ कर्मचारियों को होली से पहले बड़ा झटका दिया है. कोरोना महामारी की वजह से पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे इन नौकरीपेशा लोगों के लिए सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ (Employees Provident Fund) की ब्याज दरों में बड़ी कटौती (8.50% से घटाकर 8.10%) करने का फैसला किया है. ब्याज की जो नई दरें लागू की गई हैं वह 40 साल के इतिहास में सबसे कम है.
साल 1977-78 में ईपीएफओ ने 8% का ब्याज दिया था. उसके बाद से यह 8.25% या उससे अधिक ही रही है. दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से वित्त मंत्रालय लगातार ईपीएफओ (EPFO) के ब्याउज दर को कम करने का दबाव बना रहा है. सरकार पर दबाव है कि इसे 8% से नीचे लाया जाए. ऐसे में यूपी समेत पांच राज्यों में चुनाव संपन्न होते ही होली के त्यौहार से ठीक पहले वेतनभोगियों को दिया गया यह झटका कितना बड़ा है इसे समझना बहुत जरूरी है.
ब्याज दर में इस कटौती से कितना नुकसान?
जब कभी किसी स्कीम में सरकार ब्याज दर घटाती है तो आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि लोग उस स्कीम से पैसा निकाल कर दूसरी स्कीमों में लगाने पर विचार करने लगते हैं. लेकिन चूंकि अभी भी सबसे अधिक ब्याज दर ईपीएफ में ही मिलता है, और अगर यहां भी ब्याज दर इसी तरह से घटाने का सिलसिला शुरू हो गया तो लोगों के पास क्या विकल्प होगा? ऐसे में सबसे पहले इस बात को समझना जरूरी है कि पीएफ ब्याज दर में इस बदलाव से कितना कम ब्याज मिलेगा.
इसे एक उदाहरण से इस प्रकार से समझ सकते हैं- मान लीजिए आपके पीएफ खाते में 31 मार्च 2022 तक कुल 5 लाख रुपए जमा हैं. ऐसे में 8.50% की दर से गणना करें तो आपको 5 लाख पर 42,500 रुपए ब्याज के रूप में मिलते. लेकिन अब जबकि ब्याज दर को घटाकर 8.10% कर दिया गया तो ऐसे में आपको 40,500 रुपए ही ब्याज मिलेगा. कहने का मतलब यह कि .40% की कटौती से 5 लाख की जमा रकम पर सीधे-सीधे 2000 रुपये का नुकसान आपको होने जा रहा है.
आपदाकाल की लाठी को तोड़ना ठीक नहीं
ईपीएफ देश के वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए सबसे लाभदायक निवेशों में से एक है. यह कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा एवं स्थिरता प्रदान करता है. कोरोना महामारी के दौर में जब लोगों की नौकरियां चली गई थी, लोग भीषण आर्थिक संकट में फंस गए थे तब पीएफ खाते में जमा धन उसकी लाठी बनकर खड़ी हो गई थी और लोग इसी लाठी के सहारे जीवन के सबसे बुरे दौर से खुद को बाहर निकाला था. तब के ईपीएफओ डाटा के मुताबिक, 1 अप्रैल 2020 से 12 मई 2021 तक 3.50 करोड़ कर्मचारियों ने अपने पीएफ खाते से करीब 1.25 लाख करोड़ रुपए की निकासी की थी.
ईपीएफओ में करीब-करीब 6 करोड़ ग्राहक हैं. इनमें से आधे से ज्यादा लोगों ने कोरोना महामारी के बुरे दौर में पैसे की निकासी की थी. लिहाजा सरकार इस लाठी को और मजबूत करने की बजाय कमजोर कर रही है. आखिर सरकार अगर इस पैसे से कारोबार कर कमा रही है तो उसके लाभ से पीएफ खाताधारकों को वंचित करना कितना न्यायोचित होगा.
क्या कहता है ब्याज दर के घटने-बढ़ने का इतिहास
आजाद भारत में पहली बार 1952 में ईपीएफ पर 3% ब्याज दिए जाने की शुरुआत हुई थी. उसके बाद से इसमें बढ़ोत्तरी होती गई. पहली बार 1972 में यह 6% के ऊपर पहुंची थी. 1984 में यह पहली बार 10% के ऊपर पहुंची. लेकिन पीएफ खाताधारकों के लिए सबसे अच्छा वक्त 1989 से 1999 तक का था. इस दौरान पीएफ खाते में जमा रकम पर 12% ब्याज मिलता था. इसके बाद से ब्याज दर में गिरावट आनी शुरू हो गई. 1999 के बाद ब्याज दर कभी भी 10% के करीब भी नहीं पहुंची. 2001 के बाद से यह 9.50% के नीचे ही रही है. पिछले सात सालों के आंकड़ों की बात करें जब से केंद्र में भाजपा की सरकार आई है, यह 8.80% या उससे कम ही रही है.
ब्याज दर कटौती के पीछे असल मंशा क्या है?
किसी भी सरकार के लिए राजस्व जुटाने का सबसे आसान तरीका यही होता है कि कर्मचारियों की जेब को ढीला किया जाए और आज सरकार वही कर रही है. साल 2016 में हुई नोटबंदी, फिर जीएसटी और उसके बाद कोरोना महामारी के लंबे संकट से भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई. भारत की बात करें तो यहां सरकार लोगों की तमाम बचत योजनाओं पर ब्याज दर में लगातार कटौती कर रही है.
इसके पीछे मंशा यही है कि लोग पैसे को खर्च करें. बैंक में जमा न करें. कोरोना महामारी के दौर में लोगों ने जिस तरह की परेशानियों को झेला है, लोग संकट के वक्त के लिए बचत को बैंक में रखना चाहते हैं. उसे खर्च नहीं करना चाहते हैं. सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि लोग अगर खर्च नहीं करेंगे तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा संकट खड़ा कर देगी. उसे अपने राजस्व की भी चिंता सता रही है. शायद इसीलिए सरकार ने पीएफ के ब्याज पर भी टैक्स प्रावधान को लागू किया है.
बहरहाल, इस बात से कोई इनकार नहीं कि पीएफ ब्याज दर घटाने-बढ़ाने का फैसला निश्चित रूप से सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़े होते हैं. इसकी एक निर्धारित अवधि होती है, चुनाव से इसका कोई लेना-देना नहीं होता है. लेकिन जिस तरह से यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होते ही सरकार ने पीएफ ब्याज दर में कटौती का फैसला किया है, लोग इस बात को कहने से चूक नहीं रहे हैं कि यह भाजपा की चुनावी जीत का 'रिटर्न गिफ्ट' है.
विपक्षी दल भी इसको लेकर हमलावर हो गए हैं. कोई सोच सकता है, कोरोना महामारी के बीच जहां देश के 84 फीसदी लोगों की आय घटी है, चुनावी जीत के आधार पर 6 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारियों की बचत पर ब्याज दर में कटौती करना सरकार का सही कदम है? पेट्रोल डीजल की मूल्यवृद्धि हो, रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि हो या फिर पीएफ ब्याज दर में कटौती का मुद्दा, ये सब अगर चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद जनता पर लाद दिए जाते हैं तो सरकार की नीयत पर सवाल तो खड़े होंगे ही.