मतलब औरंगजेब का फरमान हुआ कि फलां हिंदू शिक्षक बहुत सोचता-बोलता-पढ़ाता है उससे खतरा है और उसको नौकरी से निकालो। बुलाओ उस मालकिन को और निकलवाओ संपादक को! बुलाओ उस गुरूकुल मालिक को और निकलवाओ उस कुलपति को!
क्या अंग्रेज, मुगल, औरगंजेब राज में ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें वे प्रवृत्तियां साक्ष्य लिए हुए हों जो इस सदी में सन् 2014 के बाद दिल्ली में बनी हिंदूशाही के 56 इंची मोदी राज की पहचान में वैश्विक चर्चा लिए हुए है! हां, हर समझदार, हर ज्ञानवान वैश्विक हिंदू अब वैश्विक जमात में यह सोचते हुए शर्मसार है कि हिंदूशाही के रूप में हम हिंदुओं को कैसी टुच्ची सत्ता प्राप्त हुई। सच्ची बात बताऊं मैं इस महीने हिंदू होने के गर्व में तब गदगद हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नासा के मंगल मिशन में भारतवंशी अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति मोहन पर नाज करते हुए कहा- आप भारतीय 'अद्भुत' हैं। आप, मेरी उप राष्ट्रपति, मेरे स्पीच राइटर सभी भारतीय मूल के हैं। भारतीय-अमेरिकी देश का भार उठा रहे हैं। गौरतलब है कि उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और राष्ट्रपति का भाषण लिखने वाले विनय रेड्डी सहित भारतीय मूल के कोई 18-20 लोग बाइडेन प्रशासन चलाते हुए हैं।
वह है सच्चा विश्व गुरू होना! और भारत के भीतर? वह हिंदूशाही, जिसके ग्रहण में 21 साल की एक्टिविस्ट लड़की दिशा रवि या स्वतंत्र मिजाजी अभिनेत्री 33 साला तापसी पन्नू या 55 साला विचारवान लिक्खाड़ प्रताप भानु मेहता के साथ वह टुच्चा व्यवहार, जिसकी खबर यदि औरंगजेब तक पहुंचे तो वह भी शर्मसार हो जाए यह सोचते हुए कि मेरे तख्त के मौजूदा उत्तराधिकारी का उफ ऐसा राज! मैं औरंगजेब का उदाहरण जान बूझकर इसलिए दे रहा हूं ताकि उन भक्त हिंदुओं के दिमाग पर यह हथौड़ा चले कि मुगलों ने भी हिंदू गुरूओं को गुरूकुल चलाने दिए। हिंदू धर्म-संस्कृति की ज्ञान गंगा को अवरूद्ध नहीं होने दिया। उनके हजार साला तलवार राज के बावजूद कलम और बुद्धि के सरंक्षक गुरूओं को पकड़-पकड़ कर उनसे कुरान का रट्टा नहीं लगवाया! उनकी रोजी-रोटी बंद नही करवाई। जबकि 21वीं सदी के आज के भारत की क्या हकीकत है? पिछले पौने सात साल की हकीकत का कटु सत्य है जो नरेंद्र मोदी ने अखबार मालकिन को बुला कर संपादक हटवाया। अपने कोतवालों, ईडी-सीबीआई-आय कर जैसी थानेदार संस्थाओं से बीस-तीस साल के लड़के-लड़कियों को जेल में डाला और कब्र में टांग लटकाए विचारवान मगर एक्टिविस्ट बूढ़ों को जेल में सड़वा रहे हैं तो कुलपति-प्रोफेसर को प्राइवेट विश्विद्यालय से भी नौकरी से हटवाते हुए!
एक तरफ अमेरिका की आजादी में हिंदू दिमाग ज्ञान-विज्ञान की गंगोत्री के बुद्धि बल से मंगल ग्रह पर रोवर उतरवाता हुआ! दुनिया के सर्वाधिक सभ्य, लोकतांत्रिक और नंबर एक महाशक्ति के संचालन में अद्भुत योगदान देता हुआ तो दूसरी तरफ दिल्ली तख्त की हिंदूशाही हर तरह से हिंदू के दिमाग को डराने, कुंद, मूर्ख, गुलाम, भक्त बनवाने में जुटी हुई। और छोटी-टुच्ची हरकतें करते हुए दुनिया के कोने-कोने में यह चर्चा करवे रही है कि भारत में लोकतंत्र नहीं आंशिक लोकतंत्र है और हिंदू ऐसे ही हैं!
हां, नरेंद्र मोदी यह नहीं बूझ सकते कि उन्होंने सात सालों में अमेरिका के राष्ट्रपति, वहां की संसद, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री वहां की संसद, जर्मनी-फ्रांस याकि यूरोपीय संघ के सभी देशों के राष्ट्रपति-चांसलर-प्रधानमंत्रियों और ऑस्ट्रेलिया-जापान याकि दुनिया के सभ्य-लोकतंत्रवादियों-बुद्धिमना नस्लों के बीच अपने आपको क्या बना डाला है। विदेश मंत्री जयशंकर कितनी ही मेहनत करें, नरेंद्र मोदी को कितना ही गुमराह करें उन्हें अगली जी-20 बैठक या इन नेताओं से बातचीत में वह मान-सम्मान, वह इज्जत नहीं मिलनी है, जो शुरुआत के दो-तीन सालों में झलकती थी। यही अपने लिए, भारत के भविष्य, सामरिक रणनीति, देशहित की कसौटियों में सर्वाधिक चिंताजनक बात है। जिस पर मैंने कल लिखा भी था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने को पुतिन, शी जिनफिंग जैसे उन नेताओं की कैटेगरी वाला राष्ट्रीय नेता बना लिया है, जिससे लंदन, वाशिंगटन, मेलबर्न, पेरिस, ब्रसेल्स में पब्लिक-मीडिया परसेप्शन में भारत तेजी से रूस, चीन, उत्तर कोरिया, तुर्की जैसे देश की इमेज पाता जा रहा है! जबकि अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया सब चीन, रूस की चिंता में भारत को आगे बढ़ाना अपने- राष्ट्र हित में, विश्व हित में जरूरी मानते हैं। इसलिए यह तो तय है कि ये सब नेता नरेंद्र मोदी से बात कर 'अद्भुत भारतीयों' व भारत को सामरिक साझेदार माने रहेंगे लेकिन बावजूद इसके पश्चिम के इन नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर वह भाव होगा ही नहीं जो कभी डॉ. मनमोहन सिंह का था और शुरुआत के सालों में नरेंद्र मोदी पर भी ओबामा, ओलांदे, कैमरन, एबे में था।
हां, दिमाग झनझना जाएगा यह सोचते हुए कि डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के दस सालों में लंदन, वाशिंगटन, पेरिस, बर्लिन, मेलबर्न, टोक्यो याकि लोकतांत्रिक समाजों और उसके नेतृत्व के बीच क्या मान-सम्मान पाया हुआ था जबकि इन देशों, इनके नेताओं के बीच पिछले सात सालों में नरेंद्र मोदी क्रमश: क्या इमेज बना बैठे हैं और कैसा मान-सम्मान रह गया है!
ऐसा क्यों? जवाब आप ही सोचिए! सोचिए कि अमेरिकी संसद की बनवाई 'फ्रीडम हाउस' संस्था ने और स्वीडन की संस्था वी-डेम ने भारत में लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति को खराब या पाकिस्तान व बांग्लादेश से भी गई गुजरी करार दिया है तो आखिर क्यों? क्या वह उस अमेरिका का भारत विरोध है, जहां का राष्ट्रपति भारतीयों को 'अद्भुत' बताता है, जहां की संसद में भारतीय मूल के लोग प्रशंसनीय हैं? तब क्यों 'फ्रीडम हाउस' का रिकार्ड मोदीशाही के लोकतंत्र को कोसते हुए है? क्या अमेरिका झूठा है, स्वीडन झूठा है, वे तमाम वैश्विक संस्थाएं क्या झूठी हैं, जो मीडिया, मानवाधिकार, न्यायपालिका, जनअधिकारों आदि को जांचने, रिपोर्ट करने के लिए बनी हैं और जिनकी रपटों में भारत में लोकतंत्र घटता हुआ या खत्म होता हुआ है! मतलब दुनिया की नजर में नरेंद्र मोदी अब पुतिन होते हुए हैं तो दिल्ली सल्तनत औरंगजेबी होती हुई!
मैं औरंगजेब को बार-बार इसलिए ला रहा हूं क्योंकि उसकी सत्ता धर्मांधता की वह पहचान लिए हुए थी, जिसकी चाहना में भक्त हिंदू इन दिनों चौबीसों घंटे ये व्हाट्सअप करते है कि देखो-देखो हिंदुओं इस्लाम कैसा जुल्मी! यह सुनो और नारे लगाओ नरेंद्र मोदी की जय! नरेंद्र मोदी को जिताओ नहीं तो गुलाम हो जाएंगे। वे मंदिर बनवा रहे हैं, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया इसलिए वे महान, इकलौते रक्षक! ऐसे ही कभी मुसलमान औरंगजेब के लिए कहते थे क्योंकि उसने मस्जिदें बनवाई, मंदिर तोड़े, दक्खन जीता। उसने दारूल-इस्लाम का विस्तार किया! तथ्य है पूरे दक्षिण एशिया का मुसलमान औरंगजेब को नंबर एक प्रतापी बादशाह मान कर पूजता है और वैसी ही चाहना आज उन हिंदू लंगूरी भक्तों की है जो मोदीशाही से इस्लाम का प्रतिरोध मानते हैं! हिंदुओं का गौरव हुआ मानते हैं! इनकी खोपड़ी नहीं सोच पाती कि औरंगजेब के बाद मुगल राज कैसे छिन्न-भिन्न हुआ था? और सबसे बड़ी बात क्या हम हिंदुओं की चाहना औरगंजेबी राज व इस्लामी चाल, चेहरे, चरित्र वाली धर्मांधता में जीवन जीने की है?
बात फैल रही है, मैं भटक रहा हूं लेकिन संक्षेप में जानें कि इस्लाम से दुनिया त्रस्त है। अमेरिका, यूरोप त्रस्त हैं। हर दूसरा धर्म, सभ्यता इस चिंता में है कि कट्टरपंथी इस्लाम से कैसे पार पाया जाए? लेकिन इस चिंता में क्या ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका ने अपना 'अच्छापन' छोड़ा? क्या लोकतंत्र को खतरा समझा? अपने मीडिया, अपनी न्यायपालिका, अपने मानवाधिकारों, अपनी दिशा रवि, अपनी तापसी पन्नू, अपने प्रताप भानु मेहता, अपने विचारमना-बुद्धिमना मानस, सेकुलर मानस से क्या खतरा महसूस किया? गांठ बांधें इस तथ्य को कि कट्टरपंथी इस्लाम के जंगलीपन की चुनौती में डोनाल्ड ट्रंप (हां, न मीडिया को गुलाम बनाया और न संस्थाएं बरबाद कीं) जंगली और टुच्चे नहीं बने और न कैमरन, मर्केल, मैक्रों ने ये टुच्ची हरकतें कीं, जो विरोधी पार्टियों, देश के आधे ईसाईयों को देशद्रोही, दुश्मन करार दे कर यह गृह युद्ध बनवाया कि जो साथ है वहीं देशभक्त बाकी पप्पू, गद्दार और टुकड़े-टुकड़े गैंग!
उफ! कितना कूड़ा-करकट, टुच्चापन भरा हुआ है मौजूदा हिंदूशाही की इस विद्रूप राज कला में! यों मेरी थ्योरी पुरानी हो गई है कि हिंदुओं को राज करना नहीं आता है। और गुलामी क्योंकि कण-कण में व्याप्त है इसलिए भारत की हाकिमशाही में हिंदू की बुद्धि स्वंतत्रता से वैसे खुल नहीं सकती जैसे अमेरिका के खुले आकाश में पंख फैला कर उड़ने से संभव है। बावजूद एक-एक कर दिन-प्रतिदिन टुच्चेपन की हरकतों का दिल्ली दरबार में जो क्रम बना है वह इतना शर्मनाक है कि जब मोदी का राज खत्म होगा और मौजूदा हिंदूशाही जिन अंतिम परिणामों के साथ बिखरेगी तब हम हिंदुओं को डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी उपलब्ध नहीं होगा! पर ऐसा सोचना लंदन, वाशिंगटन में बैठे वैश्विक समझदार उन हिंदुओं के संदर्भ में है जो दुनिया के सत्य में जीते हैं। उनके विपरित भारत में, अपने कुएं में रहने वाले हम हिंदुओं के सोचने की सीमा है। वे तो जैसे रामजी चाहेंगे वैसे जीते रहेंगे! इनके कुएं में टुच्ची हरकते अश्वमेघ यज्ञ, विश्वकीर्ति है,विश्व गुरूता है। क्या नहीं?