राजधानी शिमला के अक्स में पुन: हवाई सेवा का आकाश खुल रहा है और इस बार नवरात्र के पुण्य में हिमाचल को यह सौगात मिल जाएगी। दिल्ली-शिमला की दूरी पाटता जब जहाज जुब्बड़-हट्टी एयरपोर्ट की विरानी तोड़ेगा, तो एक साथ पर्यटन आर्थिकी को भी पाने के लिए एक सुखद वातावरण मिल जाएगा। छब्बीस सितंबर को आ रही एलायंस एयर की फ्लाइट का अपना ही करिश्मा है, क्योंकि हिमाचल में एयर कनेक्टिविटी का नक्शा आज भी विविशताओं के खाके की तरह है। बहरहाल प्रसन्नता का विषय यह भी है कि राजधानी शिमला से दिल्ली का किराया न्यूनतम 2141 रुपए के स्तर पर आंका जा रहा है। यह दीगर है कि पर्वतीय क्षेत्रों के लिए हवाई यात्राओं का मजमून धीरे-धीरे इतना महंगा हो गया है कि पर्यटकों के लिए दिल्ली-धर्मशाला जैसी फ्लाइट, सिंगापुर के दौरे से भी दो या तीन गुना महंगी हो जाती है। इससे पहले उड़ान योजना के तहत हेलिटैक्सी की शुरुआत भी किराए की वजह से अपनी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाई है। धर्मशाला में पर्यटन मंत्रियों ने राष्ट्रीय खाके तैयार करते हुए भी हिमाचल की कनेक्टिविटी पर चिंता प्रकट की है। कांगड़ा एयरपोर्ट में नाइट लैंडिंग के लिए मामूली से उपकरण स्थापित न होना अपने आप में केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी कृष्ण रेड्डी की आंखों में खटका है, तो यह प्रश्र सूली बन कर हमें क्यों नहीं चुभ रहा। हवाई सेवाओं में अगर सुधार व निरंतरता आती है, तो पर्यटन की तासीर बदल जाएगी। ऐसी उम्मीद है कि शिमला-दिल्ली उड़ान के उपरांत शिमला-कुल्लु व शिमला-धर्मशाला उड़ाने भी शुरू हो सकती हैं। राज्य के भीतर हवाई यात्राओं का खाका यूं तो हेलिकाप्टर सेवा से जुड़ते रामपुर व मंडी के कारण सुदृढ़ हुआ है, लेकिन प्रस्तावित शिमला-किन्नौर व धर्मशाला-चंबा उड़ानें शुरू होती हैं, तो हिमाचल आने वालों की श्रेणी में भी बदलाव आएगा। यहां आवश्यक यह नहीं कि हिमाचल के भीतर हवाई उड़ानों का सूत्रपात कैसे हो रहा है, बल्कि सोचना यह होगा कि इसका नक्शा मुकम्मल कैसे होगा। हिमाचल की कनेक्टिविटी के तीन आयाम समझने व परिपूर्ण करने होंगे। यह प्रदेश केवल ऊना तक पहुंची ट्रेन के मार्फत आगे बढ़ सकता है, तो प्रमुख सडक़ों को जोडऩे का केंद्र बिंदु हमीरपुर की परिधि में ही स्थापित होता है। इसी तरह हवाई सेवाओं के प्रवेश के लिए गगल एयरपोर्ट को एक न एक दिन विस्तार देना होगा।
विडंबना यह है कि नागरिक उड्डयन एवं विमानन मंत्रालय के पास प्रदेश कांगड़ा हवाई अड्डे के विस्तार की फाइल को आगे बढ़ाने के बजाय इसके महत्त्व को ही कम कर रहा है। अगर गगल एयरपोर्ट को इसकी क्षमता व सफलता के आधार पर आगे बढ़ाया जाए, तो पूरा प्रदेश व क्षेत्रीय राज्यों के साथ जुडक़र हिमाचल अपनी उड्डयन क्षमता का दोहन कर पाएगा। जिस दिन कांगड़ा एयरपोर्ट पर बड़े विमान उतर गए, उसी दिन से हिमाचल में हवाई सेवाएं सस्ती व बड़े शहरों से सीधे कुल्लू, शिमला व अन्य क्षेत्रों से जुड़ पाएंगी। प्रदेश में कांगड़ा हवाई अड्डे को विस्तार देकर जाहू, सोलन व चंबा में भी हवाई पट्टियां विकसित करते हुए एक बड़ा नेटवर्क खड़ा कर सकते हैं। असली मसला सस्ती फ्लाइट और सीधे मुंबई, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, जयपुर व अहमदाबाद जैसे शहरों से जुडऩे का है। बेशक कांगड़ा एयरपोर्ट से स्पाइस जेड ने कई कनेक्टिंग फ्लाइट्स शुरू की हैं, मगर ये उच्च दरों पर ही उपलब्ध हैं। ऐसे में जब तक कांगड़ा एयरपोर्ट को इसकी विस्तार योजना के अनुरूप प्राथमिकता के आधार पर आगे नहीं बढ़ाया जाता, हिमाचल में सस्ती उड़ानों की परिकल्पना कभी पूरी नहीं होगी। जिस हवाई पट्टी पर आज भी आठ के करीब उड़ानें पहुंच रही हों, उसकी क्षमता, सफलता और उपयोगिता पर कब तक राजनीतिक ताले लगाए जाते रहेंगे। बेहतर हवाई उड़ानों से धर्मशाला, मनाली, शिमला के अलावा मंडी, सोलन व बीबीएन में कान्वेंशन टूरिज्म के कई शिलालेख लिखे जा सकते हैं।
By: Divyahimachal