दुशांबे में भारत-पाकिस्तान के बीच बैठक के लिए बेशक औपचारिक गुजारिश न की गई हो, लेकिन मेरा मानना है कि बैठक होगी और दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंधों की वापसी जैसे कदमों की घोषणा भी की जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि इस्लामाबाद और नई दिल्ली में भारत और पाकिस्तान के उच्चायुक्त लौट आएंगे। सवाल यह है कि दोनों देशों के बीच भावी संबंध कैसे रहेंगे और सबसे महत्वपूर्ण व जटिल कश्मीर मुद्दे को कैसे सुलझाया जाएगा। जब से नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम की घोषणा हुई है, तब से मैं भारत और खासकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया जानना चाहती थी।
पर विभिन्न चुनाव प्रचारों, किसान आंदोलन और महामारी में व्यस्त होने के कारण उन्होंने पाकिस्तान पर कोई टिप्पणी नहीं की। लेकिन पाकिस्तान की तरफ से पहले सैन्य प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और फिर प्रधानमंत्री इमरान ने दोनों देशों के रिश्तों पर टिप्पणी की। जनरल बाजवा ने विगत फरवरी में यह कहकर लोगों को चौंका दिया था कि अब समय आ गया है कि पाकिस्तान भारत समेत सभी दिशाओं में शांति का हाथ बढ़ाए। उन्होंने दोनों देशों से लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर मुद्दे को सुलझाने का भी आह्वान किया। पिछले हफ्ते उन्होंने फिर यह कहा कि हम मानते हैं कि यह अतीत को भूलकर आगे बढ़ने का समय है। हालांकि इस पर भारत सरकार या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई।
एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत को बेहतर संबंधों की दिशा में पहला कदम बढ़ाने के लिए कहा था, 'मध्य एशिया के साथ ज्यादा व्यापार और कनेक्टिविटी बढ़ने से भारत को भी फायदा होगा। कश्मीर का मुद्दा ही हमें पीछे धकेलता है। हम पूरी कोशिश करेंगे, पर इस दिशा में भारत को कदम उठाना होगा। जब तक वे नहीं चाहेंगे, हम आगे नहीं बढ़ सकते।' पाकिस्तान के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देने के दो मौके आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी को मिले। इमरान खान के कोरोना संक्रमित होने पर नरेंद्र मोदी ने जब शुभकामनाएं भेजीं, तो यह सुर्खियां बनीं। वैसे तो कई वैश्विक नेताओं ने इमरान खान को शुभकामनाएं भेजी थीं, पर मोदी की शुभकामनाओं से पूरा पाकिस्तान उत्साहित था।
उसके कुछ दिनों बाद पाकिस्तान दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी ने पाक प्रधानमंत्री इमरान खान को एक पत्र भेजा। एक बार फिर यह खबर सुर्खियों में रही, जिसमें मोदी ने स्पष्ट कहा था कि भारत पाकिस्तान के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते चाहता है, लेकिन इसके लिए जरूरी यह है कि माहौल विश्वास भरा और आतंक से रहित हो। अब अगला अवसर दुशांबे में होगा और सबकी निगाहें दोनों देशों के विदेश मंत्रियों पर लगी रहेंगी कि वे आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की दिशा में कोई नई घोषणा करते हैं या नहीं।