सुर्खियां : डिजिटल डिवाइड के बीच 5जी नेटवर्क, बुनियादी सुविधाओं के सामने बदलाव की वास्तविकता

पर फिलहाल ऐसा न होने की बात कही जा रही है। ऐसे में, 5जी पर आशावादी होने के साथ-साथ यथार्थवादी होने की भी जरूरत है।

Update: 2022-08-09 02:37 GMT

संकट और बुरी खबरों के सिलसिले के बीच ऐसी सुर्खियां हमेशा ही राहत देने वाली होती हैं, जो अच्छी खबरों के बारे में बताती हैं। पिछले दिनों इस तरह की जिस सुर्खी ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा, वह है पांचवीं पीढ़ी के वायरलेस या 5 जी का जल्दी ही देश में शुरुआत होना। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में कहा कि आगामी अक्तूबर तक देश में 5जी की शुरुआत होने की उम्मीद है।


'दूरसंचार का भारतीय बाजार पूरी दुनिया में सबसे वहनीय या किफायती है और मैं उम्मीद करता हूं कि 5जी के आने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहेगा', उन्होंने कहा। केंद्रीय मंत्री की यह टिप्पणी भरोसा जगाने वाली है। 5जी की सेवा शुरू हो जाने के बाद देश में 5जी मोबाइल का उत्पादन बढ़ाना जरूरी हो जाएगा। हालांकि इस दिशा में हमारे यहां पहले से ही काम हो रहा है। सिर्फ यही नहीं कि भारत दुनिया में मोबाइल फोन के बड़े उत्पादकों में से है, बल्कि हमारे यहां इनका जितना उत्पादन होता है, उनमें से 25-30 फीसदी हैंडसेट 5जी सेवाओं के अनुरूप हैं।


केंद्रीय मंत्री का यह भी कहना था कि 5जी की लागत चूंकि हर साल घट रही है, ऐसे में, उनकी यह उम्मीद अकारण नहीं है कि आने वाले समय में हमारे यहां अधिकांश मोबाइल फोन 5जी सेवाओं वाले होंगे। इस देश के सामान्य नागरिकों के लिए 5जी सेवा और उससे जुड़ी उत्सुकता-उत्तेजना का क्या मतलब है? पांचवीं पीढ़ी की वायरलेस सेवा वस्तुतः सेल्यूलर टेक्नोलॉजी का अद्यतन स्वरूप है। 5जी नेटवर्क के तहत स्रोत से मंजिल तक बड़ी मात्रा में डाटा ट्रांसफर संभव हो सकेगा, और इसमें स्पीड भी तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक होगी।

लेकिन एक ऐसे देश में, जहां सड़क पर ही तेज रफ्तार गाड़ियों में चलने वाले लोगों और फुटपाथ पर धीमे-धीमे चलने वाले लोगों-जिनके पास जीवन की बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं, के बीच बड़ा फर्क है, वहां 5जी सेवा के व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता है। '5जी तकनीक के क्षेत्र में मानवता की एक बड़ी छलांग है, एक दशक से भी पहले की उस छलांग से भी बड़ी, जब 3जी सेवा की शुरुआत हुई थी। 5जी सेवाओं का लाभ सिर्फ स्मार्टफोन को नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में उपकरणों को मिलने वाला है।

लाखों सेंसर्स और सिम कार्ड्स वाली मशीनों की सेवाएं 5जी नेटवर्क से प्रभावित होंगी। लेकिन वास्तविक तौर पर देखें, तो अगले दो से तीन साल तक देश के शहरों और नगरों की बहुसंख्यक आबादी के दैनंदिन जीवन पर 5जी सेवा का सीधे-सीधे कोई रूपांतरणकारी असर नहीं दिखने वाला है, ऐसे में, इस दौरान ग्रामीण जीवन के इससे प्रभावित होने का तो कोई सवाल ही नहीं है', नई दिल्ली स्थित एक तकनीकी विशेषज्ञ प्रशांतो राय कहते हैं।

राय कहते हैं कि अगले दो-तीन साल में 4जी सेवा के उपभोक्ताओं के लिए सकारात्मक असर यही होगा कि आबादी के एक हिस्से के 5जी में शिफ्ट हो जाने से 4जी सेवाओं पर चल रहा दबाव खत्म हो जाएगा। वैसे तो 5जी नेटवर्क के तहत फास्ट गेमिंग के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाले वीडियोज को बड़ी संख्या में और तेजी से डाउनलोड करना संभव होगा, लेकिन राय का कहना है कि आम उपभोक्ता इसके लिए अभी की तुलना में ज्यादा कीमत अदा करना शायद ही चाहेगा।

गौर करने वाली बात है कि दूरसंचार कंपनियों को स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में 1.5 लाख करोड़ की भारी-भरकम राशि चुकाने के अलावा भी उपकरणों की खरीद में बहुत अधिक निवेश करना पड़ रहा है। पर अगर आम आदमी 5जी सेवाओं के लिए अधिक कीमत नहीं चुकाना चाहता, तो भारी निवेश करने वाली दूरसंचार कंपनियों की मदद कौन करेगा? श्री राय कहते हैं कि बड़ी कंपनियां, जिन्हें लॉजिस्टिक्स ट्रैकिंग और दूसरी सेवाओं के लिए 5जी सेवाओं की आवश्यकता है, वे दूरसंचार कंपनियों की मददगार साबित होंगी।

इस पृष्ठभूमि के तहत ही 5जी सेवाओं की शुरुआत का वास्तविक अर्थ समझ में आ सकता है। 5जी से होने जा रहे बदलाव की खुशी तो अपनी जगह पर है ही, लेकिन इसे यथार्थ के आईने में देखने की जरूरत है, जैसे इससे आने वाले दिनों में क्या-क्या बदलेगा, और 5जी के साथ किस प्रकार की चुनौतियां जुड़ी हुई हैं। यह अवसर देश में डिजिटल डिवाइड के कटु यथार्थ पर नजर दौड़ाने का अवसर होना चाहिए, तब तो और भी, जब हम देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं।

हाल ही में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के पांचवें चरण (एनएफएचएस 5, 2019-2021) की रिपोर्ट में देश में टेलीफोन और इंटरनेट तक पहुंच के बारे में जो बताया गया है, वह भी एक अलग कहानी कहता है। इसके मुताबिक, भारतीय अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से ऑनलाइन जुड़ना चाहते हैं। पर उपकरणों और कनेक्टिविटी तक सभी नागरिकों की पहुंच नहीं है। देश के आधे से भी कम परिवारों (48.8 फीसदी) के पास इंटरनेट है, ग्रामीण परिवारों की तुलना में शहरी परिवारों की इंटरनेट तक पहुंच ज्यादा है।

इस मामले में स्त्री और पुरुषों के बीच भी फर्क है। 15 से 49 के आयुवर्ग के 51 फीसदी पुरुषों, जबकि इसकी तुलना में मात्र एक तिहाई स्त्रियों की इंटरनेट तक पहुंच है। महिलाओं के बीच भी यह फर्क दिखता है। 51.8 फीसदी शहरी महिलाओं की तुलना में सिर्फ 24.6 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं की इंटरनेट तक पहुंच है। ऐसे ही, 50.3 प्रतिशत अविवाहित स्त्रियों की तुलना में महज 28.7 फीसदी विवाहित महिलाओं की इंटरनेट तक पहुंच है। ऐसे भीषण डिजिटल डिवाइड के बीच 5जी सेवाओं की शुरुआत कितनी महत्वपूर्ण है? जाहिर है, 5जी सेवा पर खुश होने वाले लोग ज्यादातर वे हैं, जो इसके लिए ज्यादा पैसा चुका सकते हैं।

तेज कनेक्टिविटी एक जटिल मुद्दा है। यह सच है कि इंटरनेट सामाजिक समावेशन का बेहद प्रभावी औजार है और ग्रामीण और सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव डालने की इसमें क्षमता है। 5जी सेवा इसमें और मददगार ही साबित हो सकती है। लेकिन अगर देश की बड़ी आबादी को 5जी का लाभ नहीं मिला, तो डिजिटल डिवाइड और घनीभूत ही होगा। अगर सुदूर ग्रामीण इलाकों के साथ पूरे देश को 5जी का लाभ मिला, तो व्यापक बदलाव संभव है। पर फिलहाल ऐसा न होने की बात कही जा रही है। ऐसे में, 5जी पर आशावादी होने के साथ-साथ यथार्थवादी होने की भी जरूरत है।

सोर्स: अमर उजाला

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