घाटी में बंदूक

कश्मीर घाटी में एक बार फिर दहशतगर्द सक्रिय हो गए हैं। पिछले दो दिनों में अलग-अलग जगहों पर उन्होंने सात लोगों पर हमला किया। उनमें एक कश्मीरी पंडित, चार गैर-कश्मीरी और दो सुरक्षाकर्मी थे।

Update: 2022-04-06 04:13 GMT

Written by जनसत्ता: कश्मीर घाटी में एक बार फिर दहशतगर्द सक्रिय हो गए हैं। पिछले दो दिनों में अलग-अलग जगहों पर उन्होंने सात लोगों पर हमला किया। उनमें एक कश्मीरी पंडित, चार गैर-कश्मीरी और दो सुरक्षाकर्मी थे। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब उन्होंने गैर-कश्मीरी लोगों पर हमला किया। इसके पहले भी बिहार, पंजाब आदि राज्यों से वहां मजदूरी करने गए या रोजी-रोटी के दूसरे कामों में लगे लोगों पर हमले हुए। गैर-कश्मीरी लोगों पर हमले के पीछे उनका मकसद साफ है। वे उन्हें घाटी से बाहर भगाना चाहते हैं।

इसी तरह एक कश्मीरी पंडित पर हमले के पीछे भी उनका इरादा जाहिर है। जिस कश्मीरी पंडित पर अभी हमला किया गया, वह वहां पिछले तीस सालों से रह रहा था। दवा की दुकान चलाता था। कुछ महीने पहले भी इसी तरह एक दवा विक्रेता कश्मीरी पंडित को मार डाला गया था। हालांकि कहा जाता रहा है कि पलायन के बाद जो कश्मीरी पंडित घाटी में रह गए थे, उन्हें वहां के मुसलिम तंग नहीं करते, उनके साथ भाईचारा निभाते हैं। दहशतगर्द भी उन्हें घाटी से भगाने का प्रयास करते नहीं देखे गए। मगर अब उन पर हमले शुरू हो गए हैं, तो स्वाभाविक ही इसे लेकर कई तरह की चर्चा होने लगी है।

इस सवाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि क्या दहशतगर्दों ने एक बार फिर से कश्मीरी पंडितों और वहां रह रहे हिंदुओं के प्रति नजर टेढ़ी कर ली है। कुछ दिनों पहले कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन पर एक फिल्म आई थी, जिसमें उन पर हुए जुल्म की कहानी कही गई थी। उस फिल्म को लेकर लोगों में खासा रोष देखा गया। कई जगह उत्तेजना में हिंसक झड़पें भी हुर्इं। इस तरह कश्मीरी मुसलमानों के प्रति एक नकारात्मक माहौल भी बनता दिखा। पूछा जा रहा है कि क्या उसकी प्रतिक्रिया में अब घाटी के दहशतगर्द ऐसी हरकतें करने लगे हैं।

अगर ऐसा है, तो यह अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। इन घटनाओं के मद्देनजर सुरक्षाबलों से अतिरिक्त सावधानी की अपेक्षा की जाती है। सेना पर तो वे इस इरादे से हमले करते रहे हैं कि वे सरकार की सुरक्षा-व्यवस्था को चुनौती देना और अपनी मौजूदगी का एहसास कराना चाहते हैं। लेकिन अगर वहां रह रहे लोगों पर वे नफरत के साथ निशाना साधना शुरू करेंगे, तो घाटी का माहौल काफी बिगड़ सकता है। ध्यान रखने की जरूरत है कि जिस तरह पहले कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा देने में चूक हुई थी, वैसा इस बार न होने पाए।

हालांकि सरकार दावा करती रही है कि घाटी से आतंकी संगठनों का काफी हद तक सफाया हो चुका है। पिछले कुछ सालों में दहशतगर्दी में काफी कमी आई है। मगर हकीकत यह है कि आए दिन आतंकवादी सुरक्षाबलों को निशाना बनाने में कामयाब हो जाते हैं। जाहिर है, रिहाइशी इलाकों में उनकी मौजूदगी अभी बनी हुई है और नए आतंकियों की भर्ती भी नहीं रुकी है।

यानी कश्मीरी युवाओं को गुमराह होने से रोकने की कोशिशें कामयाब नहीं हो पा रही हैं और न स्थानीय लोगों को आतंकियों के खिलाफ खड़ा किया जा सका है। ऐसे में घाटी से आतंकवाद के सफाए के उपाय शायद ही कारगर होंगे। केवल बंदूक के बल पर इस समस्या पर काबू पाना कठिन बना रहेगा। इस मामले में नए सिरे से रणनीति बनाने और आतंकियों के निशाने पर आ गए लोगों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे।


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