खाड़ी देशों की गलती

पहले कई खाड़ी देशों और फिर ओआईसी ने बीजेपी प्रवक्ताओं के बयान को लेकर एक ही दिन जिस तरह की तीखी प्रतिक्रिया जताई है

Update: 2022-06-07 04:18 GMT

नवभारत टाइम्स; पहले कई खाड़ी देशों और फिर ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस) ने बीजेपी प्रवक्ताओं के बयान को लेकर एक ही दिन जिस तरह की तीखी प्रतिक्रिया जताई है, उसे किसी भी रूप में सामान्य नहीं कहा जा सकता। रविवार को सबसे पहले कतर ने न केवल भारतीय राजदूत को बुलाकर उनके सामने आपत्ति दर्ज कराई बल्कि एक पार्टी के नेताओं के निजी बयानों पर भारत सरकार से माफी की भी मांग की। इसके बाद कुवैत, ईरान और सऊदी अरब ने वक्तव्य जारी कर इन बयानों की निंदा की और फिर 57 देशों के संगठन ओआईसी ने 'भारत में मुस्लिमों के व्यवस्थित उत्पीड़न' पर भी चिंता जताई। इनमें सबसे ज्यादा गंभीर मामला निश्चित रूप से कतर का था, क्योंकि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू उस दिन कतर में ही थे। वहां एक तरफ वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकात, बातचीत चल रही थी तो दूसरी तरफ यह अप्रिय घटनाक्रम चल रहा था। कतर के डेप्युटी अमीर के साथ उपराष्ट्रपति के लंच का कार्यक्रम भी आखिरी पलों में रद्द कर दिया गया। इन तमाम देशों से लगभग एक साथ आईं एक जैसी लगती ये प्रतिक्रियाएं महज संयोग हैं या परदे के पीछे किसी भारत विरोधी लॉबी के प्रयासों की भी इसमें कोई भूमिका है यह तो तत्काल स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ये सामान्य राजनयिक व्यवहार का हिस्सा नहीं हैं।

ये प्रतिक्रियाएं अस्वाभाविक रूप से अतिरंजित हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी प्रवक्ताओं के बयान बेहद आपत्तिजनक और निंदनीय थे। लेकिन उन बयानों को भारत सरकार से जोड़ना मुनासिब नहीं है। यह बात पहले ही स्पष्ट की जा चुकी थी कि सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी भी उनके बयानों से सहमत नहीं है। वे उनके व्यक्तिगत विचार थे, जो पार्टी के घोषित स्टैंड से अलग थे। इसलिए दोनों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी पार्टी की ओर से की गई। बहरहाल, कारण चाहे जो भी हो, इन खाड़ी देशों और ओआईसी का यह रुख न केवल भारत से इन देशों के रिश्तों को बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए इसे हलके में नहीं लिया जा सकता। राजनयिक स्तर पर इन देशों के साथ ज्यादा सक्रिय रूप में एंगेज होने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भारत सरकार के रुख या भारत में हो रही घटनाओं को लेकर किसी तरह की गलतफहमी इन देशों में जड़ न जमा सके। इसके साथ ही घरेलू स्तर पर सत्तारूढ़ दल और संघ परिवार से जुड़े संगठनों को भी यह ताकीद करने की जरूरत है कि उनके 'फ्रिंज एलीमेंट' मनमाना व्यवहार करते हुए पार्टी और सरकार की परेशानी न बढ़ाएं। यह समझना होगा कि इनके किए-धरे की भारी कीमत आखिरकार देश और समाज को ही चुकानी पड़ती है।


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