कोविड डेथ सर्टिफीकेट के लिए गाइड लाइंस

केन्द्र सरकार ने कोरोना से होने वाली मौतों को लेकर डेथ सर्टि​फीकेट से जुड़ी गाइड लाइन्स जारी कर दी है।

Update: 2021-09-14 03:15 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: केन्द्र सरकार ने कोरोना से होने वाली मौतों को लेकर डेथ सर्टि​फीकेट से जुड़ी गाइड लाइन्स जारी कर दी है। गाइड लाइंस में कहा गया है कि कोविड की पुष्टि होने के बाद अगर अस्पतलों से छुट्टी भी हो जाये तो भी टैस्ट के 30 दिनों के भीतर अस्पताल से बाहर मौतें होने पर कोविड डेथ माना जायेगा। आरटीपीसीआर टेस्ट या एंटीजन टैस्ट या फिर क्लीनिकल तरीके से छानबीन का पता चलता है तो कोविड माना जायेगा। आईसीएएमआर के अध्ययन से पाया गया है कि 95 फीसदी मौतें कोविड टेस्ट पॉजिटिव आने के 25 दिनों के भीतर हुई हैं। सरकार द्वारा दिशा-निर्देश जारी करने से उन लोगों को राहत मिलेगी जिनके परिवार के सदस्यों की मौत को कोरोना से हुई मौत नहीं माना जा रहा है। इससे आंकड़ों में पारदर्शिता भी आयेगी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया था कि डेथ सर्टिफीकेट जारी करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाये। साथ ही आदेश दिया था कि कोविड से मरने वाले के परिजनों को मुआवजा देने के लिए छह हफ्ते के भीतर नेशनल डिजास्ट मैनेजमेंट अथारिटी गाइड लाइंस तैयार करे।जहां तक कोरोना से होने वाली मौत पर परिजन को चार लाख रुपए मुआवजा दिए जाने का मुद्दा काफी जटिल है। आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अन्तर्गत प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, भूकम्प आदि से होने वाली मौत पर मुआवजा देने का नियम है। केन्द्र ने कोरोना को भी राष्ट्रीय आपदा घोषित किया है। केन्द्र सरकार ने कोरोना मौतों पर मुआवजा देने से इन्कार किया है। उसका तर्क है कि यदि एक बीमारी से हुई मौत पर मुआवजा दिया गया और दूसरी पर नहीं तो यह गलत होगा। केन्द्र का कहना है कि यदि प्रत्येक कोरोना मरीज की मौत पर राज्य सरकार चार-चार लाख रुपए मुआवजा देगी तो उस पर वित्तीय भार पड़ेगा जो उसके सामर्थ्य के बाहर होगा और ऐसा करने से उसका फंड खर्च हो जाएगा और कोरोना से लड़ाई प्रभावित होगी।वैसे भी कोरोना के कारण राज्य सरकारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है और करों की वसूली भी कम होने से उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है। कोरोना से देशभर में मरने वालों की संख्या साढ़े चार लाख के करीब हो चुकी है और इन सबको मुआवजा देना संभव नहीं हो सकता। केन्द्र सरकार ने कोविड-19 की रोकथाम और उसके प्रबंधन के लिए कई वित्तीय और गैर वित्तीय पहल की है, जिसमें विस्तृत वैक्सीनेशन प्रोग्राम भी शामिल हैं। कोविड-19 गुणात्मक रूप से अन्य 12 विशिष्ट आपदाओं से अलग है, क्योंकि यह लम्बे समय तक चलने वाली महामारी है, जबकि दूसरी विशिष्ट आपदायें एक बार वाली और अल्पावधि वाली आपदायें हैं। राज्यों में इतना वित्तीय सामर्थ्य नहीं कि वे अनुग्रह राशि का भुगतान कर सकें। 2021-22 के बजट में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया फंड के लिए 6100 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया गया है और राज्य आपदा फंड्स की मदद के लिए 12,400 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इसमें आपदा से संबंधित पूरा खर्चा शामिल है। अगर सभी को मुआवजा देने का फैसला ​िकया जाता है तो इसका खर्चा 18-20 हजार करोड़ बैठेगा। ऐसे में अनुग्रह राशि कैसे दी जा सकती है।संपादकीय :गुजरात को नया मुख्यमंत्री1965 का शहीदी सितम्बर !दिल्ली का दरिया हो जानाएन.डी.ए. में बेटियां... फख्र की बातअर्थव्यवस्था के संकेत अच्छेेहमारी संसद की गरिमाअब सवाल यह है कि जिन परिवारों ने कमाई करने वाले सदस्यों को खोया है, ​िजन बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों ही खो दिये हैं या फिर अन्य अभिभावक खोये हैं, उनके लिए तो कई राज्य सरकारों ने मुआवजा घोषित किया है। अब यह राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह ऐसे परिवारों की आर्थिक सहायता करे जो पूरी तरह से असहाय हो चुके हैं। सरकार अगले बजट में राहत के लिए अलग से बजटीय प्रावधान कर सकती है, जैसा कि उसने वैक्सीनेशन के लिए किया है। केन्द्र और राज्य सरकारें जिम्मेदारी को आपस में बांट सकती हैं और अन्य बजटीय व्यय से इस मद के लिए फिर से आवंटन कर सकती हैं। कोरोना ने अमीर हो या गरीब किसी को नहीं छोड़ा है। जो परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न है, वे परिजन को खोने की पीड़ा सह लेंगे लेकिन जो परिवार पूरी तरह से असहाय हो चुके हैं मुआवजे की जरूरत तो उन्हें है। अब यह राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण का दायित्व है कि वह अनुग्रह राशि देने के लिए दिशा-निर्देश बनाये। असहाय हुए परिवारों को संभालना समाज का भी दायित्व है। स्वयंसेवी संगठन ऐसे परिवारों की पहचान कर उनकी मदद कर सकते हैं। यह काम सरकार और समाज के सहयोग से ही संभव होगा। आइये कोरोना से पीड़ित परिवारों की देखभाल करें। ऐसे परिवारों की पहचान डेथ सर्टिफीकेट से की जा सकती है।


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