बढ़ता गतिरोध

इस बार जब से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ है, कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा जब लोकसभा और राज्यसभा हंगामे की भेंट न चढ़ी हो। हफ्ते भर से ज्यादा हो चुका है लेकिन संसद के दोनों सदनों में शायद ही कोई सार्थक काम हुआ हो।

Update: 2022-07-28 04:58 GMT

Written by जनसत्ता: इस बार जब से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ है, कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा जब लोकसभा और राज्यसभा हंगामे की भेंट न चढ़ी हो। हफ्ते भर से ज्यादा हो चुका है लेकिन संसद के दोनों सदनों में शायद ही कोई सार्थक काम हुआ हो। जैसा कि देखने-पढ़ने को मिल रहा है, सुबह कार्यवाही शुरू होते ही सत्तापक्ष और विपक्ष में टकराव शुरू हो जाता है और सदन में अप्रिय स्थिति बन जाती है।

इसके बाद सदन स्थगित कर दिए जाते हैं। यह बेहद चिंताजनक तो है ही, शर्मनाक भी कम नहीं है। सवाल है कि अगर जरूरी मुद्दों पर चर्चा को लेकर ही गतिरोध बना रहेगा तो सदन चल कैसे पाएंगे? यह स्थिति गंभीर इसलिए भी है कि सदनों की कार्यवाही बाधित रहने से जनहित से जुड़े वे तात्कालिक मुद्दे पीछे छूट जाते हैं जो बेहद संवेदनशील होते हैं और जिन पर चर्चा होनी चाहिए। इस तरह के हंगामे की आड़ में सरकार गंभीर मुद्दों पर चर्चा से बच भले ले, लेकिन जनता में अच्छा संदेश कतई नहीं जाता।

हालांकि सदनों में जिस तरह से हंगामा चल रहा है, उस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऐसे संकेत पहले से ही मिल रहे थे कि इस बार महंगाई और जीएसटी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने में विपक्ष कोई कसर नहीं छोड़ेगा। पहले दिन से विपक्ष दोनों सदनों में महंगाई पर चर्चा कराने की मांग कर रहा है। महंगाई और जीएसटी दोनों सीधे तौर पर जनता से जुड़े मुद्दे हैं। महंगाई पहले ही आसमान छू रही है। अठारह जुलाई को कई चीजों खासतौर से आटा, मुरमुरे, गुड़, दूध, दही और लस्सी जैसी चीजों पर जीएसटी लग जाने से महंगाई और बढ़ गई है।

ऐसे में लोगों की मुश्किलें तो बढ़ ही गई हैं, नाराजगी भी कम नहीं है। इसलिए इस वक्त विपक्ष के लिए यह महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। वैसे भी विपक्ष का यह कर्तव्य है कि वह सरकार से सवाल से पूछे। इसीलिए विपक्ष बार-बार मांग कर रहा है कि सारी चीजें छोड़ कर सरकार पहले इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा करवाए। लेकिन सदन के अध्यक्ष और सभापति नियमों का हवाला देते हुए काम करने की बात कर रहे हैं। जाहिर है, ऐसे में वही स्थिति बननी है जो सदनों में प्राय: पहले भी देखने को मिलती रही है। महंगाई पर चर्चा की मांग कर रहे चार विपक्षी सांसदों को लोकसभा से पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। अब राज्यसभा से उन्नीस सांसद शुक्रवार तक के लिए सदन से निलंबित कर दिए गए। महंगाई के मुद्दे से ज्यादा बड़ा मुद्दा सासंदों के निलंबन का बन गया है।

जब भी संसद शुरू सत्र होता है तो सदन के अध्यक्ष सर्वदलीय बैठक बुलाते हैं और सभी दलों से सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने में सहयोग की उम्मीद करते हैं। पर व्यवहार में ऐसा देखने में आता नहीं है। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं जब राज्यसभा से इतने सांसदों का निलंबन किया गया। पहले भी सदनों में ऐसी कार्रवाइयां होती रही हैं। सदन के अध्यक्ष यह कहते रहे हैं कि वे महंगाई पर चर्चा करवाने के लिए राजी हैं, पर नियमों के तहत। मगर हैरानी की बात यह कि इसका रास्ता नहीं निकल पा रहा। ऐसा भी नहीं कि विपक्ष सदनों के कामकाज की नियमावली नहीं जानता। फिर यह गतिरोध क्यों बना हुआ है? सदन की रोजाना की कार्यवाही पर लाखों रुपए खर्च होते हैं। यह पैसा भी जनता का है। ऐसे में अगर रोजाना सदन ठप रहें तो क्या यह जनता के पैसे बर्बादी नहीं है?


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