बढ़ता खतरा
देश में कोरोना संक्रमण के सामान्य मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है। हालांकि सक्रिय मामलों का आंकड़ा अब भी अस्सी हजार के करीब बना हुआ है। इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता कि हमें कोरोना से मुक्ति मिल गई है।
देश में कोरोना संक्रमण के सामान्य मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है। हालांकि सक्रिय मामलों का आंकड़ा अब भी अस्सी हजार के करीब बना हुआ है। इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता कि हमें कोरोना से मुक्ति मिल गई है। बल्कि अब तो विषाणु के एक और नए रूप ओमीक्रान के बढ़ते मामलों ने एक बार नींद उड़ा दी है। ओमीक्रान के रोजाना बढ़ते मामले उन दिनों की याद ताजा कर रहे हैं जब पिछले साल देश में इसी तरह कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने लगे थे। ज्यादा चिंता की बात इसलिए भी है कि विषाणु का यह नया रूप कोरोना के पिछले रूपों के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलने वाला बताया जा रहा है।
महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि यह डेल्टा जैसे रूप की तुलना में तीन से पांच गुना ज्यादा तेजी से फैलने वाला विषाणु है। जाहिर है, जैसे-जैसे इसका दायरा बढ़ेगा, संक्रमितों की संख्या भी तेजी से बढ़ेगी। यह आशंका तो व्यक्त की ही जा रही है कि जनवरी के मध्य तक ओमीक्रान के करीब डेढ़ लाख मामले रोजाना आ सकते हैं। बताया जा रहा है कि अगर जरा भी ढिलाई या लापरवाही बरती तो यह विषाणु कहर बरपाने में देर नहीं लगाने वाला।
ओमीक्रान चिंता का कारण इसलिए भी बन गया है कि अब तक इसके ज्यादातर मामले महाराष्ट्र और दिल्ली में मिले हैं। हालांकि कर्नाटक, तेलंगाना और गुजरात में भी मामले कम नहीं हैं। जिन राज्यों में अभी यह आंकड़ा बीस से कम है, उन्हें भी इसे मामूली मान कर नहीं चलना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना विषाणु के डेल्टा स्वरूप ने भी इसी तरह लोगों को चपेट में लिया था।
डेल्टा स्वरूप ब्रिटेन से भारत में आया था। भारत में ओमीक्रान के अब तक जितने मामले सामने आए हैं उनमें से ज्यादातर लोग दूसरे देशों से भारत में आए हैं। इसलिए हवाई अड्डों पर गहन जांच में जरा भी कोताही नए संकट को जन्म दे सकती है। संकट अब यह भी है कि दूसरी लहर के बाद देश के लगभग सभी हिस्सों में गतिविधियां सामान्य हो चली हैं। बाजारों में पहले की तरह भीड़ अब सामान्य बात है। ऐसे में ओमीक्रान का खतरा डेल्टा के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ा नजर आ रहा है।
भारत ने पिछले पौने दो साल में महामारी का भयानक मंजर देखा है। इस साल अप्रैल-मई के दौरान महामारी की दूसरी लहर ने जो कहर बरपाया, उससे सबक लेने की जरूरत है। लेकिन देखने में यही आ रहा है कि हम अब भी लापरवाह बने हुए हैं। कोरोना से बचाव के लिए जरूरी उपायों को छोड़ दिया है। सार्वजनिक स्थानों पर मास्क नहीं लगाने वालों की तादाद खतरे को और बढ़ा रही है। आने वाले महीनों में पांच राज्यों में चुनाव भी हैं।चुनाव सभाओं और रैलियों में जिस तरह से भीड़ उमड़ रही है, उसे देख कर तो लगता है कि न तो राजनीतिक दलों को ही महामारी की तीसरी लहर को लेकर कोई जिम्मेदारी और समझ का भाव है न ही लोगों को कोई चिंता है। कहने को केंद्र सरकार ने ओमीक्रान के खतरे से निपटने के लिए राज्यों को सख्त निर्देश दिए हैं। कई राज्यों ने क्रिसमस और नव वर्ष के जश्न जैसे आयोजनों पर पाबंदी भी लगा दी है। लेकिन अब तक का अनुभव यही बताता है कि लोग लापरवाही बरतने से बाज नहीं आते। ओमीक्रान से बचाव के लिए जनसामान्य को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।