जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की शानदार विजय

जिस जम्मू-कश्मीर में वहां के राजनीतिक दल और दिल्ली में बैठे उनके पुराने आका कुछ अलग ही राग अलापते थे वहां

Update: 2020-12-23 13:19 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जिस जम्मू-कश्मीर में वहां के राजनीतिक दल और दिल्ली में बैठे उनके पुराने आका कुछ अलग ही राग अलापते थे वहां जिला विकास परिषद चुनावों में भाजपा का खड़े होना ही राष्ट्रवाद की मुख्यधारा में एक बड़ी सफलता है। सच बात तो यह है कि कश्मीर जैसे राज्य में चुनावी बयार का बहना भी एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया थी जिस पर लोगों ने मतदान के दौरान ही दमदार वोटिंग से अपना विश्वास व्यक्त किया। हालांकि इन चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों नेशनल कान्फ्रेंस व पीडीपी आदि के गुपकार गठबन्धन को विजय मिली है। इससे यही सन्देश जाता है कि इस राज्य के लोगों के दिल में लोकतन्त्र के लिए उतना ही सम्मान है जितना कि देश के अन्य राज्यों के लोगों के दिल में। भाजपा ने इन चुनावों में 50 से ज्यादा सीटें जीतकर अपने राष्ट्र प्रेम और विकास के एजैंडे की सही तस्वीर पेश करने के लिए प्रत्याशी मुकाबले में उतारे तो इन सबको हराने के लिए गुपकार संगठन, निर्दलीय और कांग्रेस सक्रिय हो गई वहीं दूसरी तरफ फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेेंस ऊपरी तौर पर चुनावों से दूर थी लेकिन उसने चहेते प्रत्याशियों को दिल खोलकर समर्थन दिया। गुपकार संगठन ने लगभग 100 सीटें जीती तो वहीं कांग्रेस लगभग 23 सीटों पर बढ़त कायम करने में सफल रही और निर्दलीय 70 सीटें जीतने में सफल रहे। कुल मिलाकर भाजपा ने सबसे बड़ा संदेश उस कश्मीर घाटी में ​िदया जहां उसे पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस तथा कांग्रेस देखना पसंद नहीं करते थे, वहां खोमोह और बांदीपोरा में भाजपा के प्रत्याशी जीत गए और उन्होंने जीत के साथ ही साथ कहा कि यहां के लोग प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों में यकीन रखते हैं। अगर हम यह कहें कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की यह शानदार ​विजय है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लोग सचमुच लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं, घाटी के लोगों ने यही संदेश पूरे भारत को ​दिया है।


राज्य का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद ये पहले चुनाव थे और इनमें औसत 51 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ। 28 नवम्बर से 19 दिसम्बर तक आठ चरणों में हुए इस पूरे मतदान में जम्मू व कश्मीर दोनों ही क्षेत्रों के लोगों ने भारी सर्दी के बीच अपने मताधिकार का प्रयोग करके यह दिखा दिया कि हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है। पूरे राज्य में कुल 20 जिले हैं और प्रत्येक जिले में विकास परिषद की 14 सीटें हैं। अतः चुनाव कुल 280 सीटों पर हुए थे।

विगत वर्ष 5 अगस्त को राज्य का पुनर्गठन होकर इसके दो केन्द्र शासित राज्यों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में बंट जाने के बाद इस राज्य की एकल विधानसभा का अस्तित्व भी समाप्त हो गया था। अतः जिला विकास परिषदों के चुनावों का विशेष महत्व हो गया था जो कि राज्य में पहली बार हुए थे। इन चुनावों में भाजपा का सामना करने के लिए राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का गठबन्धन बना जिसे गुपकार समूह कहा गया और उसने ये चुनाव साथ मिल कर लड़े जबकि कांग्रेस पार्टी ने भी चुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े किये। इन चुनावों की घोषणा भी गुपकार गठबन्धन के विभिन्न नेताओं के जेल से छूटने के बाद झटके में ही अचानक की गई जिसकी वजह से पहले डा. फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता ने इन्हें न लड़ने का बयान दिया। जबकि कांग्रेस ने चुनाव लड़ने की मंशा को जाहिर कर दिया था।

पीडीपी नेता श्रीमती महबूबा मुफ्ती ने भी शुरू में चुनावों के प्रति अरुचि दिखाई किन्तु बाद में उनके रुख में भी परिवर्तन आया। क्षेत्रीय पार्टियों के सभी नेता राज्य से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के विरुद्ध हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के दूसरे बड़े नेता उमर अब्दुल्ला ने तो जेल से रिहा होने के बाद घोषणा कर दी थी कि वह तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक कि राज्य का विशेष दर्जा बहाल नहीं हो जाता। इसके बावजूद उन्हीं की पार्टी ने डा. फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में गुपकार गठबन्धन बनाया और अंत में चुनाव लड़ने का फैसला किया। इससे यह तो साबित होता है कि इस गठबन्धन के नेताओं ने बदले हालात में जिला विकास परिषद के चुनावों को अपनी मांगों का पैमाना मान कर इन्हें लड़ा और संविधान में निष्ठा रखते हुए इनमें भाग लिया क्योंकि 5 अगस्त, 2019 के बाद नये स्वरूप में निखरे जम्मू-कश्मीर का जिला परिषद चुनाव चेहरा है।

जिला परिषदों को स्थानीय विकास करने के लिए सीधे केन्द्र से धन भेजा जायेगा और इसके चेयरमैन का दर्जा किसी राज्यमन्त्री के बराबर होगा। विकास का यह माडल इस राज्य के केन्द्र प्रशासित राज्य बनने के बाद ही लागू हुआ है। ये चुनाव शान्तिपूर्वक सम्पन्न हुए। बेशक छिट-पुट घटनाएं पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कीं जिनमें हमारे सशस्त्र बलों के जवानों की शहादत भी हुई मगर पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के लोगों ने सन्देश दे दिया कि उनकी भारत के संविधान में पूरी आस्था है जिसके तहत वे चुनावों में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। इसके साथ ही इस राज्य के दो हिस्सों जम्मू व कश्मीर को जिस साम्प्रदायिक नजर से देखने की कोशिश कुछ लोग करते हैं उन्हें भी इन चुनावों से भारी निराशा हो सकती है।

भाजपा ने लोकतंत्र की जमीन पर, लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपनी एक पहचान बनाई है और इरादे भी स्पष्ट कर दिए हैं। इससे राष्ट्रीय एकता को ही बल ​मिलेगा। राजनीति अलग चीज है और राष्ट्र में राजनीति का महत्व अगर लोकतांत्रिक आवरण के साथ चले तो सचमुच लोगों का विश्वास बढ़ता है और घाटी में यही सब कुछ हुआ है। जो लोकतांत्रिक ढांचे की आड़ लेकर आगे बढ़ रहे थे वह ​किसी भी दल के हों परन्तु बेनकाब जरूर हो गए हैं।

आज की तारीख में भाजपा के कश्मीर क्षेत्र में प्रवेश करने को देखा जाना चाहिए मगर इस सबसे ऊपर महत्वपूर्ण यह है कि जम्मू-कश्मीर में जनतन्त्र पूरे जोर-शोर से कामयाब हुआ है और आम आदमी के हाथ में सीधे सत्ता में भागीदारी करने का हथियार मुहैया हुआ है। पंचायती राज व्यवस्था का माडल निश्चित रूप से पूरे भारत में विशेष दर्जा देगा।


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