ग्रेट चैंपियन सिंधु
भारतीय बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु ने रविवार को तोक्यो ओलिंपिक में भारत को सिर्फ एक मेडल ही नहीं दिलाया बल्कि उन्होंने देशवासियों, खेलप्रेमियों और खिलाड़ियों के सामने प्रेरणादायक मिसाल भी पेश की।
भारतीय बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु ने रविवार को तोक्यो ओलिंपिक में भारत को सिर्फ एक मेडल ही नहीं दिलाया बल्कि उन्होंने देशवासियों, खेलप्रेमियों और खिलाड़ियों के सामने प्रेरणादायक मिसाल भी पेश की। सिंधु के इस कांस्य पदक के साथ इस ओलिंपिक में भारत के दो मेडल हो गए हैं। रियो में इतने ही मेडल मिले थे। युवा बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन को मेडल मिलना तय है। इसलिए हम अभी ही रियो से बेहतर स्थिति में हैं। यही नहीं, हॉकी में महिला और पुरुष टीमें दोनों ही सेमीफाइनल में हैं। जेवलिन में नीरज चोपड़ा से उम्मीदें हैं, लेकिन सिंधु खेल की दुनिया में जिस मकाम पर हैं, उस तक बहुत कम भारतीय पहुंचे हैं। उन्होंने रियो में सिल्वर जीता था। इस बार गोल्ड पर उनकी नजर थी, लेकिन शनिवार को सेमीफाइनल में वह वर्ल्ड नंबर वन चीनी खिलाड़ी ताइजु यिंग से पराजित हो गईं । इस हार ने उन्हें निराश कर दिया, लेकिन 24 घंटे के अंदर इस निराशा से उबरते हुए उन्होंने रविवार को चीन की ही शटलर बिंग जियाओ के खिलाफ जिस तरह का प्रदर्शन किया, वह अद्भुत था।
ध्यान रहे कि जियाओ के खिलाफ उनका रेकॉर्ड कोई अच्छा नहीं था। उनके साथ हुए पिछले नौ मुकाबलों में से छह सिंधु के खिलाफ गए थे। शायद इसीलिए इस जीत के बाद सिंधु ने कहा, 'मैं सातवें आसमान पर हूं।' सिंधु तमाम प्रतिकूलताओं और उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए तोक्यो पहुंची थीं। 2019 का वर्ल्ड चैंपियनशिप खिताब जीतने के बाद से उनके प्रदर्शन में भी गिरावट आई थी। इस साल जनवरी में योनेक्स थाईलैंड ओपन टूर्नामेंट से वह पहले ही दौर में बाहर हो गईं। इसके ठीक बाद हुए टोयोटा थाईलैंड ओपन में भी वह क्वॉर्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ सकीं। वर्ल्ड टूर फाइनल्स में वह नॉकआउट फेज में नहीं पहुंच सकीं। मार्च में स्विस ओपन के फाइनल तक तो पहुंचीं, लेकिन वहां करारी शिकस्त मिली। जाहिर है, इन सबका असर उनके मनोबल पर पड़ा होगा। मगर इन सबको पीछे छोड़ते हुए सिंधु देश की सबसे महान महिला ओलिंपियन बनीं। उनकी यह जीत कई युवाओं को खेल की दुनिया में महान ऊंचाइयों तक पहुंचने की प्रेरणा देगी। हालांकि, सिंधु जैसे चैंपियन तैयार करने हैं तो हमें खेल के लिए सुविधाएं और खर्च बढ़ाने के साथ देश में स्पोर्ट्स कल्चर भी लाना होगा। नीति आयोग की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय खेल प्राधिकरण 26 खेलों में 1676 युवा खिलाड़ियों को ओलिंपिक और दूसरी अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के लिए तैयार कर रहा था। इनमें से प्रति खिलाड़ी सालाना खर्च सिर्फ 12,000 रुपये था। वहीं, भारत का खेल पर प्रति व्यक्ति खर्च सिर्फ तीन पैसे है, जबकि चीन का 6.10 रुपये। नीति आयोग ने 2016 में 20 सूत्री योजना के तहत 2024 ओलिंपिक में 50 मेडल जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी तय किया था। इस ओलिंपिक में हमारी जो हालत है, उसे देखते हुए तो यह मुश्किल ही लग रहा है।