किसानों की बेहतरी के लिए काम कर रही सरकार, दुष्प्रचार के शिकार बने कृषि सुधार के उपाय
दुष्प्रचार के शिकार बने कृषि सुधार के उपाय
रमेश कुमार दुबे। दिल्ली की सीमाओं से उठकर पंजाब की रेल पटरियों पर पहुंचा किसान आंदोलन करीब एक सप्ताह तक रेल रोको अभियान के बाद समाप्त हो गया, लेकिन किसानों के नाम पर भविष्य में नए साल में इसी तरह के आंदोलन फिर देखने को मिल सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने के बावजूद किसानों के मुद्दे जस के तस बने हुए हैं। वैसे तो कृषि प्रधान देश भारत में खेती-किसानी कभी भी मुनाफे का सौदा नहीं रही, लेकिन एक बड़ी आबादी का भरण-पोषण करने में वह सक्षम थी। खेती-किसानी की बदहाली 1991 में शुरू हुई। नई आर्थिक नीतियों के बाद इसमें तेजी आई।
इसका कारण यह रहा कि बाजारवादी अर्थव्यवस्था का रथ महानगरों और राजमार्गो से आगे बढ़कर गांव की पगडंडी तक पहुंचा ही नहीं। इसी वजह से खेती-किसानी में सबसे कम निजी निवेश हुआ। बाजारवादी अर्थव्यवस्था में सरकारी संरक्षण से खेती-किसानी का भला नहीं होगा। किसानों को बाजार में अपनी ताकत बढ़ानी होगी। यह तभी संभव होगा जब बाजार में किसानों के शोषण को रोकने के पुख्ता इंतजाम किए जाएं, ताकि किसान बाजार अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल करें।
कृषि कानून विरोधी आंदोलन की विडंबना यह रही कि इस आंदोलन को बड़े सुनियोजित तरीके से मोदी सरकार विरोधी मुहिम के रूप में चलाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले सात वर्षो में खेती-किसानी के लिए मोदी सरकार द्वारा किए गए दूरगामी उपाय दब से गए। सच्चाई यह है कि 2014 से ही मोदी सरकार बीज, सिंचाई, उर्वरक और कीटनाशक के क्षेत्र में सुधार कर रही है, ताकि किसान फसल विविधीकरण को अपनाएं। उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति के अगुआ राज्यों में गेहूं-धान-गन्ना की एकफसली खेती ने धरती को बंजर बनाकर रख दिया है। मिट्टी, पानी, हवा सब कुछ प्रदूषित हो चुके हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि खेती को बदलते परिवेश के साथ ढालने में चुनिंदा फसलों का समर्थन मूल्य और कुछेक इलाकों में सरकारी खरीद का व्यवस्थित नेटवर्क एक बड़ी बाधा बन चुका है। कृषि विशेषज्ञ भी लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि पारिस्थितिकी दशाओं के अनुरूप फसल चक्र अपनाया जाए। इससे जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिम अपने आप कम हो जाएंगे। इसी को देखते हुए मोदी सरकार दलहनी, तिलहनी और मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है।
सरकार गेहूं और धान की तुलना में इन फसलों के समर्थन मूल्य में भरपूर बढ़ोतरी करने के साथ-साथ इनकी सरकारी खरीद का दायरा बढ़ा रही है। दलहनी फसलों के अधिक उपज देने वाले बीजों के मुफ्त वितरण के साथ-साथ तिलहनी फसलों के बीजों के मिनी किट्स वितरित किए जा रहे हैं। सरकार बीमारी और कीट प्रबंधन वाले ऐसे फसल चक्र को बढ़ावा दे रही है जिसमें बीमारियों को लेकर कुदरती प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो।
देश में 55 प्रतिशत इलाकों में अभी भी खेती-किसानी बारिश के भरोसे है।
इन इलाकों में रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों का बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। स्पष्ट है कि यहां प्राकृतिक खेती की व्यापक संभावनाएं हैं। इसी को देखते हुए सरकार वर्षा जल संरक्षण और 'पर ड्राप मोर क्राप' पर जोर दे रही है। छोटे किसानों को संगठित करने के लिए केंद्र सरकार ने 2023-24 तक देशभर में 10,000 कृषि उत्पादक संगठन यानी एफपीओ स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। 2021-22 के लिए 2,500 एफपीओ बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
किसानों को सशक्त बनाने में सहकारी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दुर्भाग्यवश सहकारी संस्थाएं भ्रष्ट नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गईं। मोदी सरकार सहकारिता को पुन: आम किसानों से जोड़ने की मुहिम पर काम कर रही है। इसके लिए सहकारिता का अलग मंत्रलय बनाकर प्राथमिक सहकारी समितियों को 'वन स्टाप शाप' के रूप में विकसित किया जा रहा है। इससे गांव के छोटे और मझोले किसानों को उनकी जरूरत का सामान स्थानीय स्तर पर मिल जाएगा। सहकारी समितियां पारदर्शी तरीके से काम करें और उनके फायदे आम किसानों तक पहुंचें, इसके लिए सरकार प्राथमिक सहकारी समितियों का कंप्यूटरीकरण कर रही है।
पूरी दुनिया में कृषि बाजार का स्वरूप बदल रहा है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार कृषि बाजार का व्यवस्थित नेटवर्क बना रही है, ताकि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिल सके। कृषि उपज के कारोबार पर हर स्तर पर व्याप्त बाधाओं को दूर करने के लिए मोदी सरकार सूचना प्रौद्योगिकी आधारित कृषि उत्पादों का राष्ट्रीय बाजार बना रही है, ताकि किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकें। इसके लिए 2016 में राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) नामक पोर्टल शुरू किया। पिछले पांच वर्षो में 21 राज्यों की 1,000 कृषि उपज मंडियां इससे जुड़ चुकी हैं। सरकार ने 1,000 और मंडियों को ई-नाम से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
कृषि निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार अब तक 13 देशों में स्थित भारतीय दूतावासों में कृषि सेल की स्थापना कर चुकी है। ये सेल उन देशों में खाद्य वस्तुओं की मांग की रियल टाइम जानकारी देंगे, जिसके अनुसार कृषि उपज निर्यात होगा। इसके अलावा मोदी सरकार हर साल 11 करोड़ किसानों के बैंक खाते में डेढ़ लाख करोड़ रुपये भेज रही है। साफ है पिछले सात वर्षो में मोदी सरकार ने खेती-किसानी को फायदे का सौदा बनाने के लिए दूरगामी महत्व के उपाय किए हैं, ताकि किसान स्वावलंबी बनें। दुर्भाग्यवश ये उपाय किसान आंदोलन के दुष्प्रचार में दब से गए।
(लेखक कृषि मामलों के जानकार एवं केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)