विख्यात जर्मन दार्शनिक हेगेल ने कहा था कि मध्यम वर्ग पर नियंत्रण के लिए ऊपर से शासन और नीचे से जनता के दबाव, दोनों की जरूरत होती है। सरकार केवल ऊपर से सफाई कर रही है और नीचे से जनता का सहयोग नहीं ले रही है। इसी कारण नौकरशाही बेलगाम है। हमारे उद्यमियों के पास विश्व की अद्यतन तकनीक है। देश में श्रम भी सस्ता है। ऐसे में हमारा निर्यात तेजी से बढ़ना चाहिए, लेकिन हो इसका उलटा रहा है, क्योंकि नौकरशाही के अवरोध हमारे निर्यात पर ग्र्रहण लगा रहे हैं। नौकरशाही को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक सरकारी दफ्तर से संबंधित उपभोक्ताओं की एक सक्षम निगरानी समिति बनाई जानी चाहिए। नीति परिवर्तन के अभाव में निर्यात आधारित आर्थिक विकास कठिन दिखता है.
सेवा क्षेत्र के निर्यात की स्थिति भी अच्छी नहीं है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की रपट के अनुसार सेवा क्षेत्र के मैनेजरों का खरीद सूचकांक (जो बाजार से खरीद करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है) फरवरी 2021 में 55.3 से घटकर मार्च 2021 में 54.6 रह गया। यानी सेवा क्षेत्र का भी संकुचन हो रहा है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि विश्व बाजार में सेवा का हिस्सा बढ़ता जा रहा है। भारत के पास बड़ी संख्या में इंजीनियर और अंग्र्रेजी बोलने वाले युवा हैं। इनके द्वारा सॉफ्टवेयर इत्यादि उत्पादों को बनाकर निर्यात किया जा सकता है। इन संभावनाओं को भी हम पर्याप्त रूप से नहीं भुना पा रहे। इसका मूल कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था है, जिसका लक्ष्य सिर्फ नौकरियां हासिल करने के लिए छात्रों को प्रमाण पत्र बांटना रह गया है। इस समस्या का भी हल निकालना होगा।
दूसरा विषय घरेलू मांग का है। हमारी आर्थिक विकास दर वर्ष पिछले कुछ समय से लगातार घटने पर है। अत: समस्या कोविड की नहीं, बल्कि कुछ समय से लागू आर्थिक नीतियों की है। विशेष यह है कि 2014 से हमारा सेंसेक्स उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष इसमें लगभग 15 प्रतिशत की और वृद्धि होगी और सेंसेक्स 58000 के स्तर को छू सकता है। कौतूहल का विषय है कि आर्थिक विकास दर गिर रही है और सेंसेक्स उछल रहा है। बताते चलें कि सेंसेक्स में मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों की भागीदारी होती है। इसलिए हम ऐसा कह सकते हैं कि समग्र अर्थव्यवस्था संकुचित हो रही है और इस संकुचन के बावजूद बड़े उद्यमी बढ़ रहे हैं। इसका कारण यह दिखता है कि जीएसटी लागू करने से बड़े उद्यमियों के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य को माल भेजना आसान हो गया है, लेकिन यह छोटे उद्योगों पर भारी पड़ा। जीएसटी से बड़े उद्यमी बढ़े और छोटे उद्यमी संकुचित हुए।
नोटबंदी का भी ऐसा ही प्रभाव रहा, क्योंकि छोटे उद्यमी ही नकद में ज्यादा काम करते थे। सरकार ने हाईवे इत्यादि बुनियादी संरचना में भारी निवेश किए। ऐसे निवेश से भी बड़े उद्यमियों को लंबी दूरी तक माल ले जाने में सुविधा हुई। छोटे उद्यमियों का बाजार आसपास के क्षेत्रों में ही सीमित रहता है। हाईवे आदि बनाने में जो मशीनें और माल उपयोग किए गए जैसे जेसीबी, सीमेंट, स्टील, तारकोल इत्यादि, ये भी बड़े उद्यमियों के द्वारा ही बनाए और सप्लाई किए जाते हैं। विकास के इस मॉडल का परिणाम यह हुआ है कि छोटे उद्यमी समाप्तप्राय हो गए हैं। छोटे उद्यमियों के समाप्तप्राय होने से देश के आम आदमी की क्रय शक्ति घटी है, क्योंकि छोटे उद्यमों में ही अधिक संख्या में आम आदमी को रोजगार मिलते हैं। अत: घरेलू बाजार का संकुचन एक तरह से सरकारी नीतियों के कारण है।
मेरा तर्क जीएसटी, नोटबंदी और हाईवे के विरोध में नहीं है, परंतु इनसे जुड़ी समस्याओं पर विचार तो करना ही होगा। इसका एक उपाय है कि श्रम सघन उत्पादों और आम जन की खपत के उत्पादों पर जीएसटी की दर घटाई जाए। बुनियादी संरचना में निवेश की दिशा को झुग्गी-झोपड़ियों और गांव में बिजली और सड़क की तरफ मोड़ा जाए, जिससे हमारे छोटे उद्योग पुन: बढ़ें, रोजगार के अवसर सृजित हों, घरेलू बाजार में मांग बने और अर्थव्यवस्था का विस्तार हो। इन कठिन परिस्थितियों के मेरे आकलन के विपरीत मई के प्रथम सप्ताह में देश के निर्यात में वृद्धि हुई है और बिजली की खपत भी बढ़ी। मेरा मानना है ये अकस्मात घटनाएं हैं, जिन पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि 2014 से आज तक का रिकॉर्ड इसके विपरीत है। सरकार को चाहिए कि मौजूदा मुश्किल हालात को नीतिगत उपायों से दुरुस्त करे। अन्यथा हम फिसलते ही जाएंगे।