गोर्बाचेव का जाना

मिखाइल गोर्बाचेव का निधन ऐसे समय में हुआ है, जब विश्व में कमोबेश शीत युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। 1917 में जार शासन को खत्म कर एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था की नींव पड़ी थी

Update: 2022-09-02 05:47 GMT

Written by जनसत्ता; मिखाइल गोर्बाचेव का निधन ऐसे समय में हुआ है, जब विश्व में कमोबेश शीत युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। 1917 में जार शासन को खत्म कर एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था की नींव पड़ी थी, जिसे दुनिया साम्यवाद के नाम से जानती है। प्रथम विश्व और द्वितीय विश्व युद्ध के कालखंड में 1929 के दशक के आसपास भयंकर विश्वव्यापी आर्थिक मंदी आई, लेकिन सोवियत संघ का डंका बजता रहा। इससे प्रभावित होकर विश्व के अनेक देशों ने साम्यवाद की राह पर चलना उचित समझा। मगर कहा जाता है कि भ्रष्टाचार साम्यवादी शासन-व्यवस्था के लिए कैंसर समान है।

जो साम्यवादी शासन व्यवस्था के स्वरूप को समझते हैं वे इसे भलीभांति समझ सकते हैं। नतीजतन सोवियत संघ की वह धमक नहीं रही। शीत युद्ध ने भी उसकी अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया। तब अस्सी के दशक के अंत में मिखाइल गोर्बाचेव के हाथ में शासन की बागडोर आई। उन्होंने नई आर्थिक नीतियां लागू करनी शुरू कर दीं। नतीजतन, साम्यवादी शासन का दौर खत्म हुआ। शीत युद्ध समाप्त हो गया।

लेकिन इसका नुकसान झेलना पड़ा देश को। मगर उनके इस कदम से विश्व में शांति आई। उन्हें 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। सवाल है कि क्या विश्व को आज ऐसे नेता की दरकार नहीं है, जो संकीर्ण राष्ट्रवाद से परे विश्व शांति के उपाय खोजे, क्योंकि पूर्व के अपेक्षाकृत आज हम अधिक नाजुक दौर में जी रहे हैं।

पाकिस्तान के आर्थिक हालात दिन-ब-दिन खराब होते जा रहे हैं। रही-सही कसर भयंकर बाढ़ ने पूरी कर दी। लगभग दस अरब डालर का नुकसान हुआ है। बाढ़ के चलते भविष्य में खाने-पीने के सामन की किल्लत पैदा होने वाली है। भारत के साथ अरसे से व्यापार बंद है। पाकिस्तान फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता।

हालांकि हमारे प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की बाढ़ विभीषिका पर संवेदना जताई है और मानवीय सहायता का आश्वासन दिया है। वही पाकिस्तान है, जिसने एक बार आए भयंकर भूकम्प के दौरान मानवीय सहायता लेने से इनकार कर दिया था। खैर, अब तो पाक के वित्तमंत्री खुद भारत से मदद लेने की आशा व्यक्त कर रहे हैं। अब पाकिस्तान को अपना रवैया बदलना होगा।


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