कोरोना के खिलाफ ग्लोबल वाॅर

देश में अब कोरोना रोधी वैक्सीन की कमी नहीं रहेगी। सरकार ने कोरोना की सभी विदेशी वैक्सीन के लिए दरवाजे खोल दिए गए हैं।

Update: 2021-04-15 04:37 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: देश में अब कोरोना रोधी वैक्सीन की कमी नहीं रहेगी। सरकार ने कोरोना की सभी विदेशी वैक्सीन के लिए दरवाजे खोल दिए गए हैं। विदेशी वैक्सीन के पहले ब्रीज ट्रायल की शर्त से भी छूट दे दी गई है। इस फैसले के बाद अमेरिकी कम्पनी मॉडर्ना, फाइजर और जानसन एंड जानसन जैसी कम्पनियां विदेश में विकसित वैक्सीन का भारत में निर्यात कर सकेंगी और साथ ही भारतीय कम्पनियों के साथ मिलकर यहीं उनका उत्पादन भी कर सकेंगी। इसके बाद भी वैक्सीन के प्रभाव और गुणवत्ता सुनिश्चित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी।

देश में विकसित और निर्मित किसी भी वैक्सीन के भारत में इमरजैंसी इस्तेमाल की इजाजत तभी दी जाएगी जब उसे अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय और जापानी नियामकाें में से किसी एक से इमरजैंसी इस्तेमाल की इजाजत मिल चुकी हो। इनके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन से जिस वैक्सीन के इमरजैंसी इस्तेमाल की इजाजत होगी उसका भी भारत में इस्तेमाल किया जा सकेगा। अब केवल कीमत और सप्लाई का ही मुद्दा होगा। यद्यपि भारत विश्व का सबसे बड़ा वौक्सीन निर्माता है लेकिन महामारी के दोबारा रफ्तार पकड़ने से उन्हें विदेशी टीकों को मंजूरी देनी पड़ रही है। ​ब्रिटेन एस्ट्रा जेनेका को 3 डालर प्रति डोज दे रहा है जबकि अमेरिका उसे 4 डालर प्रति डोज दे रहा है। फाइजर वैक्सीन के लिए यूरोपीय यूनियन ने वित्तीय सहयोग दिया और उसने 14.70 डालर प्रति डोज के हिसाब से इसे खरीदा है, जबकि अमेरिका इसे 19.50 डालर प्रति डोज के हिसाब से खरीद रहा है। दूसरी ओर मॉडर्ना वैक्सीन जिसे अमेरिकी सरकार ने अनुदान दिया है, उसके लिए यह वैक्सीन 15 डालर प्रति होज पड़ रही है, जबकि यूरोपीय यूनियन इसे 18 डालर में प्रति डोज ले रही है। विदेशी वैक्सीनों के भारत में आने से प्राइस वार तो शुरू होगी ही, देखना यह है कि कौन सी वैक्सीन भारत को कितने में मिलती है। रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-वी की कीमत और सप्लाई को लेकर समस्या आ सकती है। स्पुतनिक-वी की कीमत लगभग 700 रुपए प्रति डोज है, जबकि भारत सरकार को वैक्सीन और कोविशील्ड 150 रुपए प्रति डोज खरीद रही है। जब विदेशी वैक्सीन भारत में बननी शुरू हो जाएगी तो फिर कीमतों में कमी आना स्वाभाविक है।

हाल ही के दिनों में कई राज्यों में वैक्सीन की कमी की शिकायत की थी। इसके चलते कई केन्द्रों में टीकाकरण का कार्य बाधित हुआ था। इतना तो तय है कि सवा अरब के देश में जरूरतों के मुताबिक न तो टीकों का उत्पादन हो पाया और न ही उस गति से टीकाकरण हो सकता है। अब तक देश में दस करोड़ से अधिक लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है लेकिन भारत जैसी विशाल आबादी की जरूरतों को देखते हुए विदेशी वैक्सीन को मंजूरी देना भी जरूरी था क्योंकि भारत 1.35 करोड़ से अधिक लोगों के संक्रमित होने से दुनिया में संक्रमण की दृष्टि से दूसरे नम्बर पर पहुंच गया है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई सरकार का राष्ट्र धर्म है तो मानव के लिए भी यह राष्ट्र धर्म होना चाहिए। और ज्यादा वैक्सीन आने से कोरोना के खिलाफ लड़ाई को और मजबूती मिलेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि हर राष्ट्र की प्राथमिकता उसके नागरिक होते हैं लेकिन नागरिकों की आड़ में कोविड-19 वैक्सीन पर एकाधिकार जमाने का प्रयास कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। कोई भी देश और उसके नागरिक तब तक पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकते जब तक पूरी दुनिया कोरोना वायरस मुक्त नहीं होगी। भारत वसुधैव कुटुम्बकम की राह पर चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ जंग में संयुक्त वैश्विक प्रयासों पर बल देते हुए कहा कि जब तक सभी देश इसके खिलाफ एकजुट नहीं होंगे तब तक मानव इसे पराजित करने में समर्थ नहीं होगा। हमें भले ही प्लान ए और प्लान बी इस्तेमाल करने की आदत हो लेकिन कोई प्लेनेट बी नहीं है, केवल धरती ही ग्रह है। कोरोना के खिलाफ वैश्विक व्यवस्था में बदलाव करना चाहिए।

प्रधानमंत्री के कहने का अर्थ यही है कि कोरोना के खिलाफ ग्लोबल वॉर छेड़ने की जरूरत है। यदि हम अब भी यह सोचते रहे कि हमारे पासपोर्ट का रंग क्या है, इसका धर्म क्या है तो फिर हम जंग नहीं जीत सकते। बेहतर होगा कि लोग भी अपने जिम्मेदारियों को पहचाने आैर कोरोना नियमों के पालन करने में कोई कोताही ना बरतें। अगर कोरोना के विस्फोट ऐसे ही होते रहे तो देश बड़ी विपदा में फंस जाएगा।


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