अदालत में गैंगवार

अदालत में हुई इस गैंगवार ने कानून-व्यवस्था के इंतजाम को झकझोर कर रख दिया है

Update: 2021-09-24 17:23 GMT

न्याय के घर में न्यायाधीश न्याय करते हैं, लेकिन जब वहां भी पहुंचकर अपराधी कानून-व्यवस्था को धता बताने लगें, तो न केवल शर्मनाक, बल्कि दुखद स्थिति बन जाती है। राष्ट्रीय राजधानी में उच्च सुरक्षा वाली रोहिणी कोर्ट में सरेआम गोलियां चलीं और दो बदमाशों ने एक बदमाश को ढेर कर दिया। मजबूरन पुलिस को भी अदालत में ही दोनों हथियारबंद बदमाशों के खिलाफ अंतिम विकल्प का सहारा लेना पड़ा। शायद यह एक असहज सवाल होगा, लेकिन क्या पुलिस उन अपराधियों को पकड़ने की कोशिश नहीं कर सकती थी? आखिर ये अपराधी अदालत में घुसे कैसे? इनकी हिम्मत कैसे पड़ी कि वकीलों का चोला पहनकर उन्होंने वकील बिरादरी पर लोगों के विश्वास को हिलाया? क्या उच्च सुरक्षा वाले उस कोर्ट परिसर में वकीलों को प्रवेश से पहले रोकने-टोकने-जांचने की हिम्मत पुलिस में नहीं है? बेशक, यह जो कमी है, उसके लिए पुलिस के साथ-साथ वकीलों की भी एक जिम्मेदारी बनती है। सोचना चाहिए कि राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत में यह खिलवाड़ हुआ है, तो देश में बाकी अदालतों में जांच-प्रवेश की कैसी व्यवस्था होगी? अदालत परिसर में भी तो कम से कम ऐसी चौकसी होनी चाहिए कि कोई अपराधी किसी प्रकार के हथियार के साथ न घुस सके। क्या हमारे न्याय के घर अपराधियों के लिए तफरी या वारदात की जगह में बदलते जाएंगे?

अदालत में हुई इस गैंगवार ने कानून-व्यवस्था के इंतजाम को झकझोर कर रख दिया है। वकीलों और पुलिसकर्मियों से भरे रहने वाले परिसर में न्याय का यह बर्बर मजाक नहीं तो क्या है? क्या पिछले वर्षों में राष्ट्रीय राजधानी में अपराधियों का दुस्साहस बढ़ गया है? मारे गए बदमाश गोगी की गैंग हो या उसे मारने वाले ताजपुरिया की गैंग, इनके लिए भला राष्ट्रीय राजधानी में कैसे जगह निकल आई है? यहां अपराधियों को कौन पनपा रहा है या कौन पनपने दे रहा है? रोहिणी कोर्ट की इस वारदात की रोशनी में पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अपराध जगत पर नजर फेर लेनी चाहिए। स्थिति अच्छी नहीं है, विगत वर्षों में दिल्ली न सिर्फ दंगों की गवाह रही है, दिल्ली ने किसान आंदोलन के नाम पर भी दिल्ली सीमा से लाल किले तक अपराधियों का तांडव देखा है। अब भी अगर सचेत नहीं हुए, तो क्या राष्ट्रीय राजधानी अपना आकर्षण खोने नहीं लगेगी? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में लगातार दूसरे वर्ष दिल्ली में 20 लाख से अधिक आबादी वाले 19 महानगरीय शहरों में अधिकतम अपराध दर दर्ज हुए हैं। चेन्नई कुल 88,388 मामलों के साथ सूची में दूसरे स्थान पर रहा। दिल्ली में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत 150.6 प्रति दस लाख जनसंख्या की दर से 2,45,844 मामले दर्ज हुए। हां, हो सकता है, दिल्ली में लोग ज्यादा जागरूक हों, पुलिस भी रिपोर्ट दर्ज करने में आगे हो, लेकिन तब भी दिल्ली को ऐसी किसी भी स्याह सूची में नीचे ही आना चाहिए। साल 2011 के अनुसार, दिल्ली में एक करोड़ साठ लाख से ज्यादा लोग थे, अब आबादी दो करोड़ के आसपास होगी, इतने बड़े शहर की कानून-व्यवस्था संभालने वाली एजेंसियों को इतना ज्यादा मुस्तैद रहने की जरूरत है कि यहां किसी भी अपराधी को फन फैलाने का कोई मौका न मिले।
क्रेडिट बाय लाइव हिंदुस्तान 
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