गांधीजी चाहते थे कि अंग्रेजों ने जो क़ौम को, देवी- देवताओं को, संस्कृति को बांटने का काम किया था, हम हिंदुस्तानी ऐसा कभी नहीं करेंगे
हम हिंदुस्तानी ऐसा कभी नहीं करेंगे
नवनीत गुर्जर का कॉलम:
क़ौम को बांटना, साहित्य को टुकड़े-टुकड़े करना, अंग्रेजों का पहला काम रहा। गुलाम बनाने की उनकी मानसिकता का पहला और सहज उपाय यही रहा। उन्होंने हमारी संस्कृति, देवी- देवता, जात- पात सबको हथियार बनाकर उनसे हमें ही काटा और काटते चले गए। लेकिन यह सिलसिला अब भी जारी है। जाने क्यों? इसका जवाब महात्मा गांधी के एक जवाब में मिल सकता है -
14 अगस्त 1947 की रात जब दिल्ली आजादी की रोशनी में नहा रही थी, तब महात्मा गांधी दिल्ली से 11 सौ किलोमीटर दूर कोलकाता के पास लाशों के बीच सुबक रहे थे। (सच रो रहा था और झूठ का राजतिलक हो रहा था। इधर हिंदुस्तान में, उधर पाकिस्तान में)।
लाशों के बीच सुबकते गांधी जी से जब एक बीबीसी संवाददाता ने पूछा- वाई आर यू क्राइंग मिस्टर गांधी? जवाब में गांधी जी ने कहा- भूल जाओ कि गांधी अंग्रेजी जानता है! अफसोस! कि गांधी जी के इस जवाब को हम अब तक नहीं समझ पाए। यानी गांधीजी चाहते थे कि अंग्रेजों ने जो क़ौम को, देवी- देवताओं को, संस्कृति को बांटने का काम किया था, हम हिंदुस्तानी ऐसा कभी नहीं करेंगे। लेकिन ऐसा हो न सका।
ख़ैर हम अपनी पीढ़ी को जो दे सके, दे चुके लेकिन हैरत की बात यह है कि आज अंग्रेजों की पीढ़ी भी वैसी ही है, जैसी वह 1947 के पहले थी। पहले वे भारत को गुलाम बनाने या बनाए रखने के लिए आंदोलित थे और अब शायद व्यापारिक मानसिकता के अधीन होकर भारत के खिलाफ अन्याय करने पर आमादा हैं।
दरअसल ऑक्सफोर्ड ने दो वैक्सीन बनाईं। एक कोविशील्ड और दूसरी एस्ट्राजेनेका। कोविशील्ड को बनाने में पुणे का एक संस्थान यानी भारतीय संस्थान भी सहयोगी रहा है। केवल इसलिए ब्रिटेन एस्ट्राजेनेका को तो अनुमति देता है लेकिन कोविशील्ड लगवाने वालों को नहीं। यानी ब्रिटेन ने कहा है कि कोविशील्ड लगवाने वाले अगर ब्रिटेन आते हैं तो उन्हें क्वारंटाइन रहना पड़ेगा। ऐसा क्यों? इसका जवाब खुद ब्रिटेन के पास भी नहीं है। हालांकि भारत और भारतीय सरकार ने ब्रिटेन के इस दुर्व्यवहार का करारा जवाब दिया है और कहा है कि अगर आप हमें ब्रिटेन नहीं आने देंगे तो खुद यहां आकर दिखाओ!
बहरहाल, लगता ऐसा है कि भारत को मेडिकल क्षेत्र में आगे बढ़ता देखने में ब्रिटेन को दिक्कत है। वह 1947 के पहले की अंग्रेज मानसिकता से उबरने को तैयार नहीं है। लेकिन उसे यह पता नहीं है शायद, कि भारत अब बहुत आगे बढ़ चुका है। वह हर हाल में दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। ...और उसकी इस राह में अब कोई आड़े नहीं आ सकता। कम से कम ब्रिटेन जैसा छोटा सा देश तो बिल्कुल नहीं।