स्वावलंबन की जमीन से

Update: 2023-06-16 14:24 GMT
By: divyahimachal 
कम से कम इन छह महीनों में सुक्खू सरकार यह कहने में सफल मानी जा सकती है कि हिमाचल के अस्तित्व, स्वाभिमान और स्वावलंबन की जिरह क्या है। मुख्यत: पानी, जंगल, पंजाब के पुनर्गठन में प्रदत्त भावना और राष्ट्र की अवधारणा में वर्तमान सरकार ने कुछ तो ऐसा किया कि पड़ोसी राज्यों से केंद्र तक मरोड़ आ रहे हैं, जबकि इसके केंद्र में भाजपा को भी स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है। देखना यह होगा कि अस्तित्व के ये सवाल जनता जनार्दन तक कैसे जुड़ते हैं और क्या स्वावलंबन के ये तर्क सरकारी कार्य संस्कृति के कान और हाथ साफ कर पाते हैं। पंजाब की तकलीफ समझी जा सकती है और यह पानी की उन धाराओं से वावस्ता है जो आज तक बेहिसाब, बिना पैमाने और आपसी बराबरी के बंटवारे के सिद्धांत के बिना ही एकतरफा बह रही थी। जिस पानी से पड़ोसी राज्य अपनी खिचड़ी पकाते रहे, उसके भीतर हिमाचली नमक को पहली बार छाना जा रहा है, तो यह वर्तमान सरकार के बदले हुए अंदाज का नजराना है। कम से कम इन छह महीनों में हिमाचल ने अपने तर्कों की बिसात पर पड़ोसी राज्यों को यह सोचने पर विवश तो किया कि आज तक मैदानी आंधियों को जो पहाड़ अपने सीने पर रोकता था, आज उसके भीतर का उबाल सामने है।
इसे पड़ोसी टकराव समझें, तो यह गलत होगा, लेकिन इसी पानी पर अपना-अपना भविष्य चिन्हित कर लें, तो क्षेत्रीय सहयोग की कई नदियां बहने लगेंगी। बीबीएमबी का अस्तित्व भले ही पंजाब पुनर्गठन की भावना का स्रोत है, लेकिन इसके भीतर सहअस्तित्व की परिपाटी को समझना होगा। केंद्र ने भले ही किसी कारणवश अनापत्ति प्रदान करते हुए हिमाचल के भाग से बहते पानी के भरपूर इस्तेमाल को आजाद किया है, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में पंजाब का संशय या आपत्ति पुनर्गठन की भावना से छेड़छाड़ सरीखा है। दरअसल पंजाब पुनर्गठन की फाइल सही से हिमाचल ने पहले खोली होती, तो ये चिंगारियां अब तक पूरी तरह शांत हो जातीं। बहरहाल मसला पानी से शुरू होकर वाटर सेस और तमाम बिजली परियोजनाओं से बिजली की रॉयलटी पाने की भी है। शानन विद्युत परियोजना की लीज समाप्ति के बाद अधिकार पाकर हिमाचल के खजाने को सीधा लाभ होगा। ऐसे में अगर कल हिमाचल अपने अधिकार क्षेत्र से पानी की एक नहर हरियाणा तक पहुंचा देता है, तो यह क्षेत्रीय भूमिकाओं में प्रदेश का सिक्का जमा देगी। यानी हरियाणा के जन्म से जो पानी पंजाब की गिरफ्त में रहा है, उसके नए विकल्प में हिमाचल बड़ी भूमिका में आ जाएगा और इसके बदले दोनों राज्यों की कनेक्टिविटी के भी नए मार्ग प्रशस्त होंगे।
कल पंजाब भी ऐसी भागीदारी से धार्मिक व सिख पर्यटन के जरिए हिमाचल की संभावना से जुड़ कर, एक नए स्तर तक पहुंच सकता है। आनंदपुर साहिब से नैना देवी तक रज्जु मार्ग या अमृतसर से देवी दर्शन की परिपाटी में कई ऐसी संभावनाएं है जिन्हें पूरा किया जा सकता है। हिमाचल की कई खड्डों के वैज्ञानिक ढंग से चैनेलाइजेशन में पंजाब आगे आता है, तो बदले में रेत-बजरी की आवश्यकताएं खुद ब खुद पूरी होंगी। हिमाचल उपभोक्ता मामलों में अपनी आपूर्तियों के जरिए पंजाब-हरियाणा की डेयरी और अंडा उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है, तो व्यापार की साझेदारी में उद्योग-धंधों के लक्ष्य भी पूरे कर रहा है। हिमाचल की पहल पर पड़ोसी राज्य अगर सहयोग की यात्रा पर निकलें, तो वर्तमान ट्रांसपोर्ट नेटवर्क, पर्यटन मानचित्र और विमान सेवाओं का हुलिया भी बदल जाएगा। यह दीगर है कि हिमाचल पड़ोसी राज्यों की संगत में ही आगे बढ़ा है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि हमने पंजाब पुनर्गठन का एहसास नहीं किया और न ही इसके थैले से अपने हक की चि_ियां कभी बाहर निकालीं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू से पहले भी ये फाइलें कभी खुली जरूर होंगी, मगर शांता कुमार के फार्मूले से कहीं आगे निकल कर अगर वर्तमान सरकार सफल होती है तो राज्य अपने खजाने में हर साल पांच हजार करोड़ से भी अधिक आय भर सकता है। इसी आर्थिक क्षमता के चश्मे वहां दबे हैं, जहां वर्तमान में अनावश्यक रूप से हिमाचल की बेशकमीती सत्तर फीसदी भूमि पर जंगल खड़े हैं।

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