उन दिनों कांग्रेस पार्टी में सही तरीके से चुनाव होता था, आज की तरह चुनाव के नाम पर चुनाव का मखौल नहीं उड़ाया जाता था. बोस एक उभरते हुए युवा नेता थे जिन्हें गांधी इसलिए पसंद नहीं करते थे क्योंकि उनका स्वतंत्र विचार था. 1938 में बोस पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए. महात्मा को यह रास नहीं आया, पर चुप रहे. अगले साल बोस ने दुबारा अध्यक्ष पद चुनाव के लिए अपना नामांकन भरा. गांधी की तरफ से सितारमैया बोस के खिलाफ मैदान में उतरे. कांग्रेस का अधिवेशन 10 से 12 मार्च 1939 में त्रिपुरा में हुआ. बोस और सितारमैया में कांटे की टक्कर हुयी और बोस दुबारा अध्यक्ष चुन लिए गए. गांधी ने इसे अपनी पराजय समझी और अपने चिर-परिचित अंजाद में नाराज़ हो गए. उन्हें मानाने के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी के चुने हुए सदस्यों पर दबाव डाला गया जिसमें नेहरु की अहम् भूमिका रही. कार्यकारिणी ने त्यागपत्र दे दिया जिसके बाद बोस ने भी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और जल्द ही वह अपने रास्ते चल पड़े.
राहुल गांधी का कद ना छोटा हो इसलिए दूसरे युवाओं को मौका नहीं मिलता?
जैसे सोनिया गांधी पर आरोप लगता रहा है कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी में किसी अन्य युवा नेता को इसलिए आगे बढ़ने का अवसर नहीं दिया जाता ताकि वह राहुल गांधी पर भारी ना पड़ जाए. ठीक उसी तरह 1939 में ही इस परंपरा की शुरुआत हो गयी थी कि युवा नेता या तो नेहरु परिवार (जिसे अब गांधी परिवार के नाम से जाना जाता है) से होगा या उसे गांधी-नेहरु परिवार का आशीर्वाद प्राप्त हो.
पहले भी कई युवा नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस
सुभाष चन्द्र बोस पहले युवा नेता थे जिन्हें हताश हो कर कांग्रेस पार्टी छोड़ना पड़ा था, पर वह आखिरी नेता नहीं थे. इंदिरा गांधी के ज़माने में Young Turk (युवा तुर्क) के नाम से कुछ नेताओं को जाना जाता था जिसके नेता चंद्रशेखर होते थे. जब तक वह इंदिरा गांधी के लिए आवाज़ उठाते रहे तो सब ठीक था, पर जैसे ही चंद्रशेखर, मोहन धरिया, कृष्णकांत सरीखे युवाओं ने इंदिरा गांधी का विरोध करना शुरू कर दिया इमरजेंसी के दौरान उन सब को जेल में बंद कर दिया गया था. स्वाभाविक है कि Young Turk को जेल से बाहर निकलते ही कांग्रेस छोड़ना पड़ा.
ऐसे ही हताशा की स्थिति में प्रणब मुख़र्जी को भी कांग्रेस पार्टी छोड़ने की नौबात आ गयी थी. इंदिरा गांधी के आखिरी दिनों में प्रणब मुख़र्जी को अघोषित उपप्रधानमंत्री के रूप में देखा जाता था. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी के एक बड़े वर्ग को उम्मीद थी कि प्रणब मुख़र्जी प्रधानमंत्री बनेगे, पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने संविधान और परंपरा को ताखे पर रख कर राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी. राजीव गांधी को यह बात अच्छी नहीं लगी कि गांधी परिवार के रहते कोई और कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगा था. प्रणब मुखजी को मंत्रीमंडल से हटा दिया गया और स्थिति ऐसी बना दी गयी कि उन्हें मजबूरन पार्टी छोड़नी पड़ी. उस समय प्रणब मुख़र्जी मात्र 49 वर्ष के थे, यानि युवा थे. हलाकि बाद में उनकी वापसी फिर से कांग्रेस पार्टी में हो गई.
राजीव गांधी के समय भी युवा नेताओं को छोड़नी पड़ी थी कांग्रेस
राजीव गांधी के समय ही एक और युवा नेता को कांग्रेस पार्टी छोड़नी पड़ी थी, वह थे आरिफ मोहम्मद खान. शाहबानो केस में राजीव गांधी ने उन्हें आगे बढ़ाया और बाद में खुद पीछे हट गए. पर आरिफ मोहम्मद खान इतने आगे बढ़ चुके थे कि उनके लिए वापस लौटना संभव नहीं था. 35 वर्ष के उम्र में एक युवा, कर्मठ और ओजश्वी नेता को कांग्रेस पार्टी से अलग होना पड़ा.
जैसे मौजूदा दौर में जो नेता कांग्रेस पार्टी से अलग हो रहे हैं उनका कहना है कि पार्टी में उनकी सुनने वाला कोई है ही नहीं, ठीक इन्हीं परिस्थितियों में 1997 में ममता बनर्जी को भी कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहना पड़ा था. वह बंगाल में वाम दलों से लड़ना चाहती थीं पर कांग्रेस आलाकमान इसके लिए तैयार नहीं था. 42 वर्ष की उम्र में ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी क्योंकि पार्टी उनके आगे बढ़ने के मार्ग में अवरोध पैदा कर रही थी. 2004 के बाद कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला बन गया
2004 के बाद एक के बाद एक युवा नेता पार्टी छोड़ते चले गए. 2004 में राहुल गांधी सांसद बन चुके थे और सोनिया गांधी को विपक्ष ने 'सुपर पीएम' का ख़िताब दे दिया गया था. पिछले 17 वर्षों से सोनिया गांधी इसी प्रयास में लगी हैं कि किसी तरह कांग्रेस के युवराज को देश का राजा बना दिया जाए. कई युवा नेताओं को पार्टी इस लिए छोड़ना पड़ा क्योंकि पार्टी में उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जा रहा था, ताकि राहुल गांधी से बड़ा किसी और युवा नेता का कद ना हो जाए. जगनमोहन रेड्डी, हिमंता बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद उनमे से कुछ ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए.
ऐसे युवा नेताओं की सूची जिनका कांग्रेस पार्टी में दम घुट रहा है, उनके मार्ग में अवरोध पैदा किया जाता है ताकि वह ज्यादा लोकप्रिय नेता ना बन जाए, काफी लम्बी है. इसमें से कुछ प्रमुख नाम हैं नवजोत सिंह सिद्धू, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा और नवीन जिंदल. कांग्रेस पार्टी छोड़ने की तैयारी में लगे युवा नेताओं की सूची काफी लम्बी है और कुछ-कुछ अंतराल पर अगले कुछ समय में धमाका होता ही रहेगा. बस इसलिए कि उनके नाम के साथ नेहरु या गांधी उपनाम नहीं जुड़ा है.