अपनी शर्तों पर कर्ज के लिए?
स्वस्थ पूंजीवाद में कोई स्थान नहीं हो सकता, जिससे सारी आर्थिक गतिविधियां कुछ हाथों में सीमित होती जाएं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अब तक यह साफ हो चुका है कि नरेंद्र मोदी सरकार के न्यूनतम शासन का मतलब बाजार की खुली प्रतिस्पर्धा के लिए अवसर बनाना नहीं, बल्कि (कुछ) कॉरपोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ाने के लिए अनुकूल स्थितियां बनाना है, इसलिए इस प्रस्ताव पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। वरना, ऐसे फैसले का स्वस्थ पूंजीवाद में कोई स्थान नहीं हो सकता, जिससे सारी आर्थिक गतिविधियां कुछ हाथों में सीमित होती जाएं।
अगर ये फैसला हुआ तो उसका असर यह होगा कि अब बैंकिंग और उद्यम (निवेश) का फर्क मिट जाएगा। खबर यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक समिति ने बड़े कॉरपोरेट और औद्योगिक घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है। समिति ने बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक में बदलने की अनुमति देने का भी प्रस्ताव किया है। केंद्रीय बैंक के इंटरनल वर्किंग ग्रुप (आईडब्ल्यूजी) के इन प्रस्तावों पर 15 जनवरी 2021 तक प्रतिक्रिया स्वीकार की जाएगी। उसके बाद आरबीआई अपना फैसला सुनाएगा।
फिलहाल कई जानकरों ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई हैं।
यहां ये याद दिलाया गया है कि बीते कुछ सालों में पीएमसी बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास जैसे बैंकों की वित्तीय हालत बेहद खराब हो गई और आरबीआई को उनका नियंत्रण अपने हाथों में ले लेना पड़ा। दूसरे कई बैंक ऐसे हाल तक तो नहीं पहुंचे, लेकिन बड़े ऋण के ना चुक पाने के कारण उनका वित्तीय स्वास्थ्य अच्छा नहीं है।
एसबीआई और एचडीएफसी जैसे बड़े बैंक भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है। उनके अनुसार आईडब्लूजी ने जितने विशेषज्ञों से सलाह ली थी, उनमें से एक को छोड़ सबने प्रस्ताव का विरोध किया था।
इसके बावजूद समूह ने प्रस्ताव की अनुशंसा कर दी। दोनों अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देने से 'कनेक्टेड लेंडिंग' शुरू हो जाएगी।
ऐसी व्यवस्था, जिसमें बैंक का मालिक अपनी ही कंपनी को आसान शर्तों पे लोन दे देता है। राजन और आचार्य के अनुसार इससे सिर्फ कुछ व्यापार घरानों में आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के केंद्रीकरण की समस्या और बढ़ जाएगी। इसीलए कई बड़े औद्योगिक घराने बैंक खोलने का लाइसेंस मिलने की राह देख रहे हैं। पिछले कुछ सालों में इन सभी ने एनबीएफसी भी खोल लिए हैं। क्या ये प्रस्ताव उनके ही हित में नहीं किया गया है?