भारत में हर साल लाखों टन अनाज भंडारण सुविधा के अभाव के कारण खराब हो जाता है। भारत की मौजूदा भंडारण व्यवस्था वैज्ञानिक युग में अवैज्ञानिक है, जिसके कारण अनाज की गुणवत्ता तो प्रभावित होती ही है साथ में बहुमूल्य खाद्य सामग्री भी बर्बाद होती है। भारत मे वार्षिक भंडारण हानि 14 मिलियन टन खाद्यान्न है। हरित क्रांति के कारण जो अनाज के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई उसका बहुत बड़ा हिस्सा अवैज्ञानिक भंडारण व्यवस्था के कारण बर्बाद हो रहा है। भारत को अनाज के भंडारण के वैज्ञानिक तरीकों की सख्त जरूरत है। आज भी लाखों टन अनाज हर वर्ष सड़ जाता, जो मनुष्यों के उपभोग में तो क्या जानवरों के उपभोग के योग्य भी नहीं रहता। भारत को खाद्य समस्या के वो दिन नहीं भूलने चाहिए जब हमें पी एल 480 के अंतर्गत कई शर्तों सहित गेहूं का आयात करना पड़ता था ताकि भारत में गेहूं की कीमतें स्थिर हो सकें। भारत में अनाज की पैदावार बहुत है, परंतु भंडारण के लिए आधुनिक संरचनाओं की कमी है।
भारत में इस समय अनाज का भंडारण कैप या कवर तथा पलिंथ विधि द्वारा किया जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक भारतीय खाद्य निगम के गोदामों और किराए वाली जगहों पर इस तरह के ढांचे में 30.52 मिलियन टन चावल, गेहूं, मक्का, चना और ज्वार का भंडारण किया जाता है। भारत में खाद्य पदार्थों के भंडारण की खराब स्थिति से उत्पन्न समस्याओं पर नीति निर्माताओं द्वारा कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। जहां भारत में सीमेंट और अन्य भवन सामग्री, धन तथा तकनीकी जानकारियां बहुतायात में उपलब्ध हैं, परंतु सरकार उचित तरीके से अनाज भंडारण के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास क्यों नहीं कर रही है। संसद में इस संदर्भ में प्रश्न पूछने की आवश्यकता है। जो अनाज, यह नीति निर्धारक और जनता खाती है उसको तिरपॉलिन के नीचे खुले में रखा जाता है। यह अनाज नमी के साथ कवक तथा फफंूद युक्त होता है, जो विभिन्न बीमारियों का कारण बनता है। अनाज को सही तरीके से भंडारण करना हो तो वह साइलो में ही होता है, इसमें अनाज को नमी, फफूंद और कीट के हमले से बचाया जा सकता है। बहुत से देश स्टील के साइलो में ही अनाज का भंडारण करते हैं। भारत में केवल चार ही साइलो हैं पांचवां साइलो पंजाब में सार्वजनिक तथा निजी सांझेदारी में 50000 टन सटोरेज क्षमता का एक आधुनिक साइलो, तापमान नियंत्रित चावल के निर्यात के लिए बनाया है। ये साइलो भारत के लिए बहुत ही कम हैं। भारत में शेष अनाज को खराब स्थिति में संग्रहित किया जाता है। भारत में अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया है। बहुत से कृषि वैज्ञानिक इस क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहे हैं, परंतु यह प्रयास नहीं किया जाता कि सलाना खरीदे जाने वाले अनाज को अच्छी तरह से संग्रहित या भंडारित कैसे किया जाए।
कुछ वर्ष पहले पंजाब तथा हरियाणा में भंडारण सही ढंग से न करने के कारण हजारों टन गेहूं सड़ गया उधर कई राज्यों में लोग अनाज की कमी से जूझ रहे हैं। भारत भले ही विकासशील देश से विकसित देश की तरफ काफी तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन भूख के मामलों में आज भी स्थिति बदतर है। भारत में 38 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, 2021 में भारत 116 देशों की सूची में भूख के इंडेक्स में 101 स्थान पर रहा और 2020 में 94 स्थान पर था। भारत में कुछ लोग जूठन खा कर गुजारा कर रहे हैं उधर अनाज का सही ढंग से भंडारण तथा रखरखाव न करके भारत में हजारों टन अनाज खुले में या भंडारों में सड़ रहा है। अन्न को ब्रह्मा माना गया है, अन्न को साक्षात देवता मानकर इसका आदर करना चाहिए क्योंकि अन्न से ही प्राणों की रक्षा होती है। भारत को पाकिस्तान और श्रीलंका की मौजूदा स्थिति से सीखना चाहिए। अन्नदाता की फसल अगर प्राकृतिक आपदा जैसे बेमौसमी बारिश, बाढ़, सूखा, कीटों के हमले से खेतों में ही नष्ट हो जाती, उसका उसे दु:ख तो होता पर कुछ नहीं कर सकता क्योंकि यह प्राकृतिक कारण हैं। परंतु अगर फसल को खरीद केंद्र में पहुंचा दिया जाए और वहां खरीद से पहले ही भीग जाए क्योंकि वहां पर भंडारण या रखरखाव की सुविधा नहीं होती,जिसका नुकसान किसान को भुगतना पड़ता और आम जनता को भी घटिया और नमी युक्त अनाज को खाना पड़ता और वह भी उस युग में जिसमें विज्ञान ने अभूतपूर्व तरक्की कर ली है, परंतु इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जो कि खेद का विषय है।
इस वर्ष भी गेहूं खरीद केंद्रों में गेहूं को रखने के लिए मंडियों में सही व्यवस्था नहीं थी नतीजन किसान अपने अनाज को श्मशानघाट या साथ लगते स्कूलों में रखने के लिए मजबूर हो गए और जो अनाज खरीद के लिए मंडी में खुले में रखा गया उसको खरीद करने के बाद भी उठाया नहीं गया, जिस कारण वह भी बेमौसमी बारिश के कारण बुरी तरह भीग गया जिसका नुकसान आखिरकार देश को होता है। फसल कटाई के बाद अनाज के सही प्रबंधन से अनाज को सुरक्षित और संरक्षित कर मात्रात्मक एवं गुणात्मक नुकसान को रोकने के लिए मजबूत भंडारण व्यवस्था की आवश्यकता है, जिसके लिए वर्तमान भंडारण व्यवस्था जो पलिंथ/कवर विधि है उसे तापमान नियंत्रित स्टील के बड़े-बड़े साइलो से बदलना चाहिए। भंडारण ढांचे को बनाने के लिए सरकारी क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र को भी इसमें सम्मिलित करना, पुराने भंडारण स्थलों को साइलो में बदलना, जहां-जहां अनाज मंडियां हैं उनके इर्द-गिर्द या उन्हीं के नीचे भूमिगत भंडारण व्यवस्था करना ताकि यातायात का खर्चा कम किया जा सके और खरीद के लिए जगह को जल्दी खाली किया जा सके। सभी राज्यों को अपनी अनाज भंडारण के लिए ढांचागत सुविधाएं बनानी चाहिए। प्रशिक्षित मानव संसाधनों को अनाज के वैज्ञानिक तरीके से सुरक्षित तथा भंडारण के लिए नियुक्त करना ताकि अनाज की बर्बादी को बचाया जा सके।
सत्यापाल वशिष्ठ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal