भूखे को मिले भोजन

देश में भूख से जूझती आबादी तक खाना पहुंचाने की स्कीम को लेकर मंगलवार को दिखा सुप्रीम कोर्ट का सख्त रवैया समझा जा सकता है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में ही केंद्र सरकार से कहा था

Update: 2021-11-18 01:43 GMT

देश में भूख से जूझती आबादी तक खाना पहुंचाने की स्कीम को लेकर मंगलवार को दिखा सुप्रीम कोर्ट का सख्त रवैया समझा जा सकता है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में ही केंद्र सरकार से कहा था कि राज्यों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर कम्युनिटी किचेन स्कीम की रूपरेखा तैयार की जाए। मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश किए हलफनामे में प्रस्तावित स्कीम को लेकर ऐसी कोई नई सूचना नहीं थी, जिससे पता चलता कि उस दिशा में कितनी प्रगति हुई है। दूसरी बात यह कि हलफनामा भी अंडरसेक्रेटरी लेवल के अधिकारी ने दायर किया था, जबकि सुप्रीम कोर्ट का पहले से ही निर्देश है कि सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी से ही हलफनामा दायर करवाया जाए।

स्वाभाविक ही इससे कोर्ट को ऐसा लगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को पर्याप्त तवज्जो नहीं दे रही है। सवाल कोर्ट के सम्मान का भी था। बहरहाल, इन तकनीकी सवालों से हटकर देखें तो किसी भी सभ्य समाज में यह स्थिति बर्दाश्त नहीं की जा सकती कि वहां किसी नागरिक के भूख से मरने की नौबत आ जाए। सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल ठीक कहा कि कोई भी संवैधानिक व्यवस्था, नियम, कानून या संस्था इसके आड़े नहीं आ सकती। बावजूद इसके, अपने देश में आज भी आबादी के एक हिस्से के सामने दो वक्त भरपेट भोजन पाने की चुनौती बनी हुई है। कोरोना महामारी से उपजी स्थितियों ने हालात को और बदतर बनाया है।
बड़े पैमाने पर आजीविका के संकट से वंचित हुए लोगों में बहुत से ऐसे हैं, जिनका पुराना काम फिर से शुरू नहीं हो पाया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की हालिया रिपोर्ट भी इस स्थिति की पुष्टि करती है, जिसके मुताबिक दुनिया के 116 देशों की सूची में भारत का स्थान 101वां है। पिछले साल भारत 94वें नंबर पर था। पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश भी उससे अच्छी स्थिति में पाए गए। पाकिस्तान इस बार जहां 92वें स्थान पर है, वहीं बांग्लादेश और नेपाल 76वें नंबर पर। हालांकि भारत सरकार ने इस रिपोर्ट की मेथडॉलजी को लेकर कई सवाल उठाए हैं, जिन पर विचार होना चाहिए।
फिर भी यह तथ्य अपनी जगह है कि देश की आबादी के एक हिस्से की हालत वाकई खराब है और उस तक समय पर भोजन पहुंचाने की व्यवस्था जल्द से जल्द होनी चाहिए। पर यह सवाल अब भी बचा रहता है कि इसका सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई है कि कई राज्यों में मिलती-जुलती सी स्कीमें पहले से चल रही हैं। फिर यह भी है कि हर राज्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भिन्न है। ऐसे में पूरे देश के हर जरूरतमंद के पास समय पर भोजन पहुंचाने का संकल्प पूरा करने का बेहतर तरीका शायद यही होगा कि केंद्र इसके लिए जरूरी फंड उपलब्ध कराने में जरूर सहयोग करे, लेकिन स्कीम का स्वरूप तय करने का काम आखिरकार राज्यों पर ही छोड़ दिया जाए।

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