भोजन का अपमान

यह सूचना किसी दुख से कम नहीं कि हमारी दुनिया में 17 प्रतिशत भोजन घरों, रेस्तरां और दुकानों में बर्बाद चला जाता है।

Update: 2021-03-06 00:41 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | यह सूचना किसी दुख से कम नहीं कि हमारी दुनिया में 17 प्रतिशत भोजन घरों, रेस्तरां और दुकानों में बर्बाद चला जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 से पता चलता है कि कुछ भोजन खेतों पर ही, तो कुछ आपूर्ति के दौरान और एक बड़ा हिस्सा तैयार होने के बाद बर्बाद हो जाता है। कुल मिलाकर, एक तिहाई भोजन खाए जाने से रह जाता है। भोजन बर्बादी के ये आंकड़े बहुत मेहनत से जुटाए गए हैं, जिनका विश्लेषण हमें चौंकाता है और रुलाता भी है। संयुक्त राष्ट्र की एक कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन कहती हैं कि 'अगर हम जलवायु परिवर्तन, प्रकृति, जैव विविधता के नुकसान और प्रदूषण, कचरे से निपटने के बारे में गंभीर होना चाहते हैं, तो दुनिया भर के व्यवसायों, सरकारों और नागरिकों को भोजन की बर्बादी को कम करने के लिए काम करना पड़ेगा।' अन्न-भोजन की बर्बादी ज्यादातर देशों में समस्याओं को जन्म दे रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी देशों में इस बर्बादी का स्तर आश्चर्यजनक रूप से समान है। न विकसित देशों के लोग आदर्श हैं और न गरीब देशों के लोग। भोजन की बर्बादी कोई ऐसा विषय नहीं है, जिसके बारे में किसी देश में लोग जानते न हों। परंपरागत रूप से दुनिया की ज्यादातर संस्कृतियों और समाजों में भोजन की बर्बादी रोकने के लिए लोगों को पाबंद किया गया है, लेकिन तब भी लोग सुधर नहीं रहे, कम से कम यह रिपोर्ट तो यही गवाही दे रही है।

रिपोर्ट के विस्तार में जाएं, तो खुदरा दुकानों पर दो प्रतिशत, खाद्य सेवाओं के स्तर पर पांच प्रतिशत और रसोईघर में पहुंचने के बाद 11 प्रतिशत भोजन बेकार जाता है। मतलब सबसे ज्यादा सुधार की जरूरत हमारे रसोईघरों और थालियों में है। रिपोर्ट यह भी इशारा करती है कि भोजन की ऐसी बर्बादी से जलवायु परिवर्तन को भी बल मिलता है। वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का आठ से दस प्रतिशत भोजन की बर्बादी से जुड़ा है। बेशक, भोजन की बर्बादी कम करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती होगी। भूमि रूपांतरण और प्रदूषण के माध्यम से होने वाला प्रकृति का विनाश धीमा होगा। भोजन की उपलब्धता बढ़ेगी और इस तरह वैश्विक मंदी के समय भूख की समस्या घटेगी, साथ ही, पैसों की भी बचत होगी। दुनिया का सचेत होना इसलिए बहुत जरूरी है,क्योंकि 2019 में करीब 69 करोड़ लोग भूख से प्रभावित थे और तीन अरब लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में अक्षम थे। यह स्वागतयोग्य है कि संयुक्त राष्ट्र के एक लक्ष्य में भोजन की बर्बादी को आधा करना भी शामिल है। इस मोर्चे पर भारत जैसे विशाल देश में तो विशेष पहल की जरूरत है। आम भारतीय घरों में एक-एक सदस्य साल भर में 50 किलो खाना बर्बाद कर देता है, जबकि भारत में एक बड़ी आबादी भूखे रहने को मजबूर है। यह देखना ज्यादा जरूरी है कि बर्बादी रोकने के लिए क्या और कितना किया जा रहा है? सामाजिक स्तर पर अपील के अलावा भोजन की बर्बादी रोकने के लिए कोई पुख्ता प्रबंध नहीं है। हां, भारत यह संतोष व्यक्त कर सकता है कि भोजन बर्बाद करने में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और बांग्लादेश की तुलना में वह बेहतर है। लेकिन जिस देश में अन्न-भोजन की पूजा होती हो, उसे देश में यथोचित सुधार के लिए नए संकल्प की जरूरत पड़ेगी।


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