टीकों में भी फर्जीवाड़ा!

टीकाकरण और कोरोना जांच में फर्जीवाड़े की बढ़ती घटनाएं चिंता पैदा करती हैं। अफसोस की बात इसलिए भी है

Update: 2021-06-26 03:13 GMT

टीकाकरण और कोरोना जांच में फर्जीवाड़े की बढ़ती घटनाएं चिंता पैदा करती हैं। अफसोस की बात इसलिए भी है कि सरकारों के तमाम चाकचौबंद बंदोबस्त के दावों के वाबजूद कुछ तत्व लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करने में कामयाब हो जा रहे हैं। ताजा घटना मुंबई की है जहां दो हजार से ज्यादा लोगों का फर्जी टीकाकरण कर दिया गया। वहां नौ फर्जी टीकाकरण शिविर चलते रहे और लोगों की जान पर बन आई।

हालांकि फर्जी टीकाकरण की घटनाएं देश के अन्य इलाकों से भी आई हैं। लेकिन चिंता और हैरानी की बात इसलिए है कि यह घटना उस महानगर की है जहां हर मामे में पूरी मुस्तैदी के दावे किए जाते रहे हैं। सवाल है कि आखिर फर्जी टीकाकरण शिविर चलते कैसे रहे? क्या बृहन मुंबई महानगर पालिका को इसकी जरा भनक नहीं लगी? टीकाकरण का जिम्मा संभालने वाले आखिर करते क्या रहे? टीकाकरण शिविर कोई छोटा कार्यक्रम तो है नहीं। इससे तो लगता है कि मुंबई जैसे महानगर में भी टीकाकरण कार्यक्रम लापरवाही का शिकार हो चुका है। जो पुलिस लोगों की शिकायतों के बाद हरकत में आई, अगर वह पहले ही से सतर्क रहती तो बड़ी संख्या में लोगों को खतरे में पड़ने से बचाया जा सकता था।
गौरतलब है कि टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार की ओर से बाकायदा एक निश्चित व्यवस्था निर्धारित की गई है। इसके तहत टीका लगवाने के लिए व्यक्ति को कोविन ऐप के जरिए पंजीकरण कराना पड़ता है। उसके बाद टीका लगाने का दिन और समय तय होता है। साथ ही एक ओटीपी नंबर मिलने की भी व्यवस्था है। इस ओटीपी नंबर को बताने के बाद ही टीकाकरण का प्रमाणपत्र मिल पाता है। पर फर्जीवाड़े ने इस पूरी प्रक्रिया को धता बता दी। जबकि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ही ओटीपी की व्यवस्था बनी थी।
ताज्जुब की बात यह कि मुंबई में जिन दो हजार से ज्यादा लोगों को टीका लगा, उनका कोविन ऐप पर कोई ब्योरा ही नहीं था। न ही इन लोगों को टीकाकरण के तत्काल बाद प्रमाणपत्र दिए गए। इस पूरे मामले का पर्दाफाश भी इसी वजह से हो पाया। अब पता चला है कि टीके भी नकली थे। ऐसा भी बहुत हुआ है कि जिन लोगों ने पंजीकरण नहीं करवाया, उनके नाम से पहले ही टीके लग चुके। इन घटनाओं से यह तो साफ हो गया कि टीकाकरण के गोरखधंधे में कई गिरोह पनप गए हैं। टीकों के चोरी होने और भारी रकम ऐंठ कर भी टीके लगाने की घटनाओं ने व्यवस्था की कलई खोल दी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि टीकाकरण में फर्जीवाड़े का बड़ा कारण टीकों का पर्याप्त रूप से उपलब्ध न होना है। अब अठारह साल से ऊपर के सभी लोगों का टीकाकरण हो रहा है। ऐसे में भीड़ से बचने के लिए हर कोई पहले टीका लगवाना चाहता है। इसके लिए कई बार लोग अनुचित रास्ते अपनाने से भी नहीं चूकते। जाहिर है ऐसे में ठगों की जमात क्यों चूकेगी! अगर इतना महत्त्वपूर्ण अभियान भी फर्जीवाड़े का शिकार होने लगेगा तो लोगों की जान ही खतरे में पड़ जाएगी।
महाराष्ट्र सरकार घर-घर जाकर टीका लगाने जैसे कदम की तैयारी में है, ताकि बुजुर्गों को शिविरों में धक्के न खाने पड़ें। लेकिन अगर इसी तरह फर्जी शिविर चलते रहे और समय रहते किसी को हवा भी न लगी हो तो मान कर चलना चाहिए कि इसके पीछे कोई बड़ा खेल है। महामारी से निपटने के लिए जब जांच और टीकाकरण जैसे कामों में ही बेईमानी होने लगेगी तो हम कोरोना से निपट कैसे पाएंगे?

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