निष्पक्ष व्यवहार
पुरुषों और महिलाओं को खेल प्रतियोगिताओं में समान वेतन देने से महिलाएं अधिक संख्या में खेल को अपना व्यवसाय बनाएंगी। इस दिशा में न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया है
Written by जनसत्ता: पुरुषों और महिलाओं को खेल प्रतियोगिताओं में समान वेतन देने से महिलाएं अधिक संख्या में खेल को अपना व्यवसाय बनाएंगी। इस दिशा में न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया है कि पुरुष और महिला खिलाड़ियों को समान वेतन मिलेगा। यह पूरे विश्व में लैंगिक समानता का उदाहरण होगा।
इस व्यवस्था से विश्व खेल जगत में बड़े बदलाव की उम्मीद है, जिससे और अधिक लड़कियों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। लैंगिक आधार पर वेतन अंतर को पाटने में बाधाएं विभिन्न खेल क्षेत्रों से आती रही हैं। मसलन, टेनिस में, यह तर्क कि पुरुष पांच सेटों में सर्वश्रेष्ठ का मैच खेलते हैं, जबकि महिलाओं को तीन ही अवसर मिलता है। इस व्यवस्था की अक्सर आलोचना की जाती है, लेकिन यह अब भी व्यवहार में है।
क्रिकेट में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन अंतर को कम करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया जाता। तर्क दिया जाता है कि महिलाओं के खेल के लिए कम आयोजक और दर्शक होते हे इसलिए इनके आयोजन से कमाई नहीं होती है। मगर उन कारकों पर ध्यान नहीं दिया जाता, जो महिलाओं द्वारा खेले जाने वाले मैच को कम आयोजक और प्रशंसक होने के कारण है। सबसे महत्त्वपूर्ण है कि जो महिला खिलाड़ियों को नीचे खींच रहे हैं, जैसे असमान अवसर, अभ्यास का कम समय, साधन और संस्थागत निवेश की कमी।
ऐतिहासिक रूप से खेल का व्यावसायिक अनुसरण करने वाले पुरुष सामाजिक विचारों के कारण आगे बढ़ पाए, जबकि खेल को महिलाओं के लिए केवल टाइम पास और व्यायाम तक ही समाज ने सीमित रखा है। पर अब समय की मांग है कि ऐसी बाधाओं को दूर किया जाए और महिलाओं की खेल तक व्यवस्थित पहुंच में सुधार किया जाए। भारत में प्रमुख उदाहरण साइना नेहवाल और पीवी सिंधु की सफलता है, जिन्होंने अच्छी खेल संस्थागत प्रणाली से लाभ उठाया और सफलता पाई और विश्व में उच्च भुगतान पाने वाली खेल सितारा बनीं।
गंगा की सफाई को लेकर चिंतित सरकार ने अब उसके किनारे प्राकृतिक खेती करने का बीड़ा उठाया है, जो समयानुकूल है। गंगा को साफ करने के लिए अब तक चलाए गए अभियान अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाए हैं। यही वजह है कि आज गंगा का स्वरूप बदला नजर नहीं आता। गंगा के किनारे प्राकृतिक खेती के लिए सरकार ने जो योजना तैयार की है वह सफल हो सकती है। किनारों पर खेती से गंदगी फैलाने वालों को मौका नहीं मिलेगा और धीरे-धीरे गंगा की पवित्रता फिर बहाल हो सकेगी।
शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन ने गर्भपात संबंधी कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, सुप्रीम कोर्ट को 'नियंत्रण से बाहर' घोषित किया। लगता है, इस आदेश से सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश, जिसमें महिलाओं को पिछले पचास साल से मिले, अपने जनन अधिकार को एकदम से खत्म कर दिया था, को क्या उल्टा जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं होगा। यह हस्ताक्षर सिर्फ सांकेतिक है।
यह अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी की मांग पर, आगामी नवंबर महीने में होने वाले चुनावों के मद्देनजर लिया गया फैसला है। इससे सिर्फ यह होगा कि जितने भी डेमोक्रेटिक पार्टी शासित राज्य हैं, जैसे न्यू जर्सी, न्यूयार्क या वाशिंगटन, जहां के अस्पतालों और गर्भपात केंद्रों पर आने वाले डाक्टरों, कर्मचारियों और महिलाओं को सुरक्षा प्रदान किया जाएगा।
इतना ही नहीं, रिपब्लिकन पार्टी वाले राज्यों, जिनकी संख्या अट्ठाईस है, वहां की महिलाओं को भी सुरक्षित इन राज्यों में लाकर गर्भपात का अधिकार दिलाना ही शायद इस कार्यकारी आदेश का उद्देश्य हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नवंबर के चुनाव के बाद बदला जा सकता है, अगर महिलाएं एकजुट होकर रिपब्लिकनों को तमाम राज्यों से बाहर का रास्ता दिखा दें।