यूरोपीय यूनियन डिजिटल कोविड प्रमाणपत्र को 'ग्रीन पास' के रूप में जाना जाता है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की कोकोविड वैक्सीन को भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड के नाम से बना रहा है। एस्ट्राजेनेका की इसी वैक्सीन को ब्रिटेन और यूरोप में वैक्सजेवरिया के नाम से बनाया जाता है। इसे यूरोपीय मेडिकल एजैंसी मान्यता दे चुकी है तो फिर भारतीय वर्जन को मान्यता नहीं दिए जाने का कोई औचितिये ही नहीं था। यूरोपीय मेडिकल एजैंसी ने पहले चार वैक्सीन को मान्यता दी थी जिसमें वैक्स जेवरिया भी शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ग्लोबल यूज के लिए कोविशील्ड को मान्यता पहले ही दे चुका है। ईयू के देशों ने कोविशील्ड को मान्यता देकर सही फैसला किया है।
ग्रीन पास न मिलने से भारतीयों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। यूरोपीय यूनियन की मनमानी की भारत के साथ-साथ अफ्रीकी संघ के 54 देशों ने भी आलोचना की थी। कोविशील्ड अफ्रीकी देशों के नागरिकों ने भी लगवाई है। पूर्व निर्धारित समझौते के तहत कोविशील्ड अफ्रीकी देशों में भेजी गई है। अफ्रीका में कोविशील्ड लगा चुके लोगों को यूरोप जाने में परेशानी हो रही थी। अब भारतीय और अफ्रीकी स्विट्जरलैंड सहित 9 देशों की यात्रा कर सकेंगे। अब इन्हें जगह-जगह आरटीपीसीआर टैस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाने और एक निश्चित समय क्वारंटीन में बिताने जैसी असुविधाएं नहीं झेलनी पड़ेगी।
भारत ने जिन टीकों की जांच-पड़ताल के बाद मान्यता दी है, अगर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों की सरकारें मान्यता नहीं दें इससे भारतीय संस्थाओं की प्रमाणिकता पर सवाल उठ सकते थे। भारत सरकार ने तकनीकी सवालों पर उलझने की बजाय इसे सीधे कूटनीतिक स्तर पर उठाया और साफ कर दिया कि भारत ईयू का दोहरा व्यवहार स्वीकार नहीं करेगा। अंततः भारत की कूटनीतिक विजय हुई। अब धीरे-धीरे ईयू के अन्य देशों से भी कोविशील्ड को मान्यता मिलने की उम्मीद है।
यद्यपि अभी कोरोना वायरस पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और तीसरी लहर की आशंकाएं भी जोर पकड़ रही हैं। हालांकि यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए और महामारी से बचने के लिए हर देश को अपने-अपने हिसाब से नियम बनाने का अधिकार है। लेकिन सवाल यह है कि दुनिया को कब तक बांधकर रखा जा सकता है। आर्थिक गतिविधियों और यात्राओं पर कितनी देर तक पाबंदियां लगाए रखी जा सकती हैं। कोरोना वायरस लम्बे समय तक रहने वाला है, इसलिए दुनिया को वायरस की मौजूदगी में सुरक्षित ढंग से जीवन को सामान्य बनाने के लिए रास्ते अपनाने होंगे। ईयू की ग्रीन पास योजना ऐसा ही एक रास्ता है लेकिन बेमतलब की दीवारें खड़ी करना अच्छा नहीं है।
दूसरी तरफ भारत एक के बाद एक विदेशी वैक्सीन को मान्यता दे रहा है। इतनी बड़ी विशाल आबादी का टीकाकरण करने के लिए भारत ने माडर्ना वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। जायडस कैडिला ने अपनी कोरोना रोधी वैक्सीन जायकोव डी के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी है। जायकोव डी दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन है, इसे 12 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों को लगाया जा सकता है। उम्मीद है कि यह टीका अगस्त से दिसम्बर के बीच उपलब्ध हो जाएगा। बच्चे सुरक्षित होंगे तो ही भविष्य सुरक्षित होगा। परीक्षणों के मुताबिक कोविड-19 के खिलाफ इस वैक्सीन को 66.6 फीसदी तक प्रभावी पाया गया। इस वैक्सीन की तीन खुराक लेनी होंगी और इस वैक्सीन को देने के लिए सुई की भी आवश्यकता नहीं होगी। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार आपातकालीन इस्तेमाल के लिए किसी वैक्सीन को तभी मंजूरी दी जाती है, जब उसे बीमारी के खिलाफ 50 फीसदी से ज्यादा प्रभावी पाया जाए।