By: divyahimachal
दिसंबर, 1524 में पुर्तगाली यात्री वास्को डी गामा समंदर के रास्ते भारत में कोचीन पहुंचे थे। भारत तक समुद्री रास्ते की यूरोपीय खोज का एक अध्याय समाप्त हुआ। इसी शहर में वास्को का निधन हुआ था। वहीं एक चर्च में उनका पार्थिव शरीर कई सालों तक दफना कर रखा गया। बाद में पुर्तगाल सरकार को सौंप दिया गया। उसके करीब 500 सालों के बाद भारत के समंदरी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा है। देश के प्रथम, स्वदेशी विमानवाहक पोत 'आईएनएस विक्रांत' को नौसेना में शामिल कर दिया गया है। अमरीका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस के बाद भारत के पास इतनी विराट, विहंगम, विशाल और विशेष समुद्री ताकत है। देश को सौंपते हुए प्रधानमंत्री मोदी के ये शब्द सटीक और सुखद लगते हैं। समंदर अनंत है, तो विक्रांत 'समंदर का सिकंदर' है। यह उपमा भी अधूरी लगती है, क्योंकि सिकंदर भारत को कभी जीत नहीं पाया। भारत का स्वदेशी युद्धपोत अपराजेय, अतुलनीय और अद्भुत है, मानो एक पूरा शहर पानी पर तैर रहा हो! यह हमारी आत्मनिर्भर प्रौद्योगिकी, स्वदेशी प्रतिभा, परिश्रम और प्रतिबद्धता का ही साकार उदाहरण है कि विक्रांत आज समंदर की छाती पर भारतीय नौसेना का सशक्त मोर्चा है।
मेहनत और लगातार निर्माण के लंबे 17 सालों के बाद यह सपना साकार हुआ है कि भारत 20,000 करोड़ रुपए की लागत वाला विमानवाहक युद्धपोत बनाने में सफल रहा है। यह भी अभूतपूर्व और अकल्पनीय उपलब्धि है। 'आईएनएस विक्रांत' का आकार, वजन, क्षमता, मिसाइल की विविधता, प्रहार करने की चपलता और इंजीनियरिंग के बेजोड़ नमूने आदि के ब्यौरे देश के सामने हैं। देश आश्चर्यचकित भी होगा! यहीं विराम नहीं है। इसी दौर में कैबिनेट की सुरक्षा समिति ने फैसला लिया है कि 'तेजस' स्वदेशी लड़ाकू विमान के मार्क-1 और 2, अंतत:, मिग-21, मिग-29, मिराज-2000 और जगुआर आदि स्थापित, पुराने लड़ाकू विमानों के विकल्प बनेंगे। यानी 'तेजस' के दोनों मार्क धीरे-धीरे लड़ाकू विमानों की जगह लेंगे। इसके बाद 15,000 करोड़ रुपए की एक परियोजना देश के सामने आने वाली है, जिसके तहत पांचवीं पीढ़ी के उन्नत, विकसित मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमानों का निर्माण किया जाएगा। तब भारत भी अमरीका, चीन, रूस के 'इलीट क्लब' का सदस्य होगा। यह समग्र ताकत स्वदेशी प्रौद्योगिकी, उपकरणों, कल-पुर्जों की बदौलत ही हमें मिलेगी।
विक्रांत में भी 75 फीसदी से ज्यादा अवयवों का उत्पादन और निर्माण भारत में ही हुआ है। लोहा, इस्पात, केबल, पाइप, बिजली उपकरण आदि स्वदेशी ही इस्तेमाल किए गए हैं। हम स्वदेशी होने पर गर्व महसूस कर सकते हैं। यह 'मेक इन इंडिया' की सफलता को भी बयान कर रहा है। विक्रांत हो, तेजस हो अथवा अन्य लड़ाकू विमान, मिसाइल, अस्त्र-शस्त्र हों या भारत की सामरिक रणनीति हो, वे पूरी तरह 'भारतीय' हैं। भारत में निर्मित हैं और भारत की सुरक्षा जरूरतों के लिए हैं। उन्हें कांग्रेस, भाजपा या कोई भी सियासी ताकत न तो 'सिर्फ अपना श्रेय' मान सकती है और न ही ऐसी उपलब्धियों को खारिज कर सकती है। देश ओवैसी सरीखे नेताओं के बयानों पर गौर न करे, क्योंकि उनके पीछे राजनीतिक नफरत काम कर रही है। भारत को कितने युद्धपोतों की दरकार है, नौसेना कैसे सशक्त हो सकती है, राजकोष में कितना धन है, ऐसी आलोचनाएं कुंठा भर हैं। यह दायित्व भारत सरकार, सेना प्रमुखों और वैज्ञानिक इंजीनियरों का है, लिहाजा उन्हीं पर भरोसा किया जाना चाहिए।
विक्रांत स्वदेशी की प्रतिमूर्ति ही नहीं है, बल्कि भारत को अंग्रेजों की गुलामी और औपनिवेशिक प्रतीक-चिह्नों से भी मुक्ति दिलाई गई है। नौसेना के ध्वज पर ब्रिटिश हुकूमत के 'क्रॉस' चिह्न को मिटा कर छत्रपति शिवाजी महाराज की अष्टाकार मुहर को अंकित किया गया है। छत्रपति शिवाजी को ही नौसेना का प्रथम सृजनकार माना जाता है। प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने गुलामी के प्रतीक-चिह्न को हटवा दिया था, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार ने फिर 'क्रॉस' चिह्न को ध्वज पर अंकित करा दिया था। क्या कांग्रेस आज के दौर में भी ब्रिटिश हुकूमत की अनुयायी है? स्वदेशीकरण आज एक चयन नहीं है, बल्कि जरूरत है। यदि भारत को सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है, तो स्वदेशी प्रौद्योगिकी और ज्ञान को विकसित करना होगा। हम अपने लिए हथियार भी बनाने में सक्षम होंगे और रक्षा-खर्च में भी बचत होगी। स्वदेशी देशहित में ही है।