एक युग की समाप्ति

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने अपने लंबे शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने इंग्लैंड की प्रतिष्ठा व वैश्विक साख में कमी नहीं आने दी। प्रिंस चार्ल्स वा लेडी डायना के अलगाव व डायना की मौत बाद महारानी को तीखे हमले भी झेलने पड़े।

Update: 2022-09-16 05:37 GMT

Written by जनसत्ता: ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने अपने लंबे शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने इंग्लैंड की प्रतिष्ठा व वैश्विक साख में कमी नहीं आने दी। प्रिंस चार्ल्स वा लेडी डायना के अलगाव व डायना की मौत बाद महारानी को तीखे हमले भी झेलने पड़े। कुशाग्र बुद्धि वाली महारानी को कई भाषाओं की जानकारी थी। उनको ब्रिटिश संवैधानिक विधान का अनूठा ज्ञान था। उन्होंने कामनवेल्थ या राष्ट्रमंडल के जरिए ब्रिटिश प्रतिष्ठा को कायम रखा। उन्होंने राजशाही तथा सरकारी तंत्र में संतुलन बनाकर रखा।

भले ही आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हों, लेकिन आजादी के बाद से कोई भी ऐसा आंदोलन नहीं रहा है जो शिक्षा के लिए समानता व बुनियादी परिवर्तन के मकसद के साथ हुआ हो' समय-समय पर सरकारों ने इसमे अपनी-अपनी तरफ से सुधार किया है, बदलाव किए हैं, लेकिन आमजन के बीच से कोई सुधारात्मक बहस या आंदोलन शायद ही कभी हुआ है। एक ओर बड़े-बड़े देश शिक्षा के दम पर दुनिया में राज करने मे लगे हैं, वहीं भारत जैसे देश में एक बड़ा वर्ग उच्च शिक्षा से वंचित है।

अफसोस यह है कि न तो इस वंचित वर्ग को अपने इस पिछड़ेपन का भान है और न ही उच्च वर्ग, प्रबुद्ध लोग इसके लिए कोई आवाज उठाते हैं 'शिक्षा के सुधार और समानता के विरुद्ध अंधी होती राज्य सरकारें और केंद्र का मनमानी और असावधान रवैया शोषित वर्ग, वंचित वर्ग को कभी भी मुख्य धारा में जोड़ने में सफल नहीं होगा' देश की कितनी बड़ी विडंबना है कि एक ओर देश में धार्मिक प्रथाओं और संस्कृति से जरा-सा छेड़छाड़ करने से लोग लाठी, डंडों, बंदूकों के साथ सड़कों पर उतर आते हैं, वहीं शिक्षा में इतनी विसंगति और गड़बड़ी पाते हुए भी जरा सा उफ्फ तक नहीं करते।'

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