बदहाली बीतने के उभरते संकेत

कोरोना के झंझावात के बाद किसे उम्मीद थी कि भारत की अर्थव्यवस्था साल खत्म होने से पहले ही पटरी पर लौटती दिखने लगेगी।

Update: 2021-02-22 05:19 GMT

कोरोना के झंझावात के बाद किसे उम्मीद थी कि भारत की अर्थव्यवस्था साल खत्म होने से पहले ही पटरी पर लौटती दिखने लगेगी। रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (एसऐंडपी) का कहना है कि अगले वित्त वर्ष में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। चालू साल के लिए उसने जीडीपी में गिरावट का आंकड़ा (-)9 फीसदी की जगह (-)7.9 प्रतिशत कर दिया है। जापान की मशहूर ब्रोकरेज नोमुरा का तो अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी में गिरावट सिर्फ 6.7 प्रतिशत रहेगी और अगले वर्ष अर्थव्यवस्था में 13.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज होगी।

यह आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान से भी बेहतर है, जिसे इस साल जीडीपी में 7.7 प्रतिशत की गिरावट और अगले साल 10.5 प्रतिशत बढ़त की उम्मीद है। इसी हफ्ते सरकार की तरफ से जीडीपी ग्रोथ का तिमाही आंकड़ा जारी होने की उम्मीद है। ज्यादातर अर्थशास्त्री यही मानते हैं कि दो तिमाही की तेज गिरावट के बाद यह तिमाही मामूली गिरावट दिखा सकती है।

लेकिन यह उम्मीद जताने वालों की गिनती भी बढ़ रही है कि इसी तिमाही का आंकड़ा भारत में मंदी के खत्म होने की खबर लेकर आ सकता है। नोमुरा ने तो इससे पहले ही अपने एशिया पोर्टफोलियो (इसमें जापान शामिल नहीं है) में भारत की रेटिंग बदलकर न्यूट्रल से ओवरवेट कर दी है। इसका सीधा अर्थ है कि अब वह भारत के शेयर बाजार में ज्यादा पैसे लगाने की सलाह दे रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ और एशियाई विकास बैंक भी भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अपना अनुमान बदलकर बढ़ा चुके हैं।

आर्थिक क्षेत्र में भविष्यवाणी करने वाले ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स नामक समूह की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में भारत की बढ़त की रफ्तार 10.2 फीसदी रहेगी, जो पहले 8.8 फीसदी जताई गई है। देश के सबसे बडे़ आर्थिक शोध संस्थान नेशनल कौंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च यानी एनसीएईआर का कहना है कि दिसंबर में अर्थव्यवस्था मंदी की गिरफ्त से बाहर आ जाएगी और 0.1 फीसदी की बढ़त दिखा देगी।

इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में 7.3 फीसदी की ही गिरावट रहेगी। कौंसिल ने पूर्व के अनुमान में 12.6 प्रतिशत की गिरावट की आशंका जताई थी। उधर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई का भी कहना है कि रोजगार के बाजार में जबरदस्त सुधार दिख रहा है। जनवरी में बेरोजगारों की गिनती तेजी से घटी है और रोजगार में लगे लोगों की गिनती में सुधार आया है। दिसंबर में बेरोजगारी की दर 9.1 प्रतिशत थी, जो जनवरी में गिरकर 6.5 प्रतिशत रह गई, और इसके सामने रोजगार में लगे लोगों का आंकड़ा 36.9 प्रतिशत से बढ़कर 37.9 प्रतिशत हो गया है।

रोजगार के कारोबार में लगी देश की सबसे बड़ी कंपनी टीमलीज के एक सर्वे में नतीजा आया है कि कंपनियां नए लोगों को नौकरियां देने में ज्यादा रुचि दिखा रही हैं। दूसरी तरफ, आईटी और फाइनेंशियल सर्विसेज में बड़ी संख्या में नए रोजगार आने की खबरें मिल रही हैं। शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के शानदार तिमाही नतीजे और सेंसेक्स की तगड़ी छलांग भी यही दिखाती है कि अर्थव्यवस्था का हाल बेहतर है और आगे भी सुधार होते रहने की उम्मीद है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तो पहले ही कह चुका है कि इस साल भारत में तरक्की की रफ्तार चीन से भी तेज होगी। लेकिन यहां पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि कोरोना के बावजूद चालू वित्त वर्ष में चीन ने 2.1 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर ली है, जबकि भारत लगभग सात प्रतिशत की गिरावट झेल रहा है। उधर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी दावा किया है कि उनकी अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण दिख रहे हैं।

आईएमएफ का भी मानना है कि इस साल पाकिस्तान में 1.5 फीसदी और अगले साल चार प्रतिशत के आसपास की विकास दर रह सकती है। हालांकि, उसकी अर्थव्यवस्था का आकार भारत के दसवें हिस्से के बराबर भी नहीं है। वैसे, यह आशंका भी खत्म नहीं हुई है कि भारत की राह में अब भी कुछ रोडे़ अटक सकते हैं।

सबसे बड़ी चिंता तो यह है कि कहीं कोरोना की एक और बड़ी लहर तो नहीं आ रही है? जिस रफ्तार से महाराष्ट्र, केरल व कर्नाटक में नए मामले बढ़ रहे हैं, उससे यह डर भी बढ़ रहा है। मुंबई में सरकार के बार-बार इनकार के बाद भी लॉकडाउन की आशंका से पूरी तरह इनकार करना मुश्किल है। इस खतरे को यदि किनारे भी रख दें, तब भी गांवों से तकलीफ की खबर आ रही है।

खेती ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह डूबने से बचाया था, लेकिन अब किसान भी परेशानी में हैं और मजदूर भी। महंगाई का आंकड़ा काबू में जरूर दिख रहा है, लेकिन सीएमआईई के अनुसार, जहां खाने-पीने की चीजों की महंगाई की रफ्तार घटी है, वहीं बाकी चीजों की महंगाई बढ़ने की रफ्तार बरकरार है। और खाने-पीने की चीजों में भी सब्जी के दाम में तेज गिरावट है, वहीं अनाज के भाव बहुत कम बढे़ या नहीं बढ़े हैं। लेकिन दाल, खाने के तेल और मांस-मछली के भावों में तेजी जारी है।

किसानों की नजर से देखें, तो खेती से होने वाली कमाई का 56 फीसदी से ज्यादा हिस्सा फल, सब्जी और अनाज की बिक्री से ही आता है। मतलब साफ है, महंगाई बढ़ने से भी किसानों को ज्यादा फायदा नहीं होगा।

गांवों में मजदूरी की दर भी पिछले चार महीने से लगातार गिर रही है, और शहरों में मजदूरों की मांग कमजोर पड़ने से संकट गहरा सकता है। रिजर्व बैंक का मोरेटोरियम खत्म होने के साथ ही वहां भी तकलीफ दिखने वाली है। जब तक तस्वीर साफ न हो, कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो दिख ही रहा है कि कर्ज न चुकाने या न चुका पाने वालों की गिनती अभी तक खतरे के निशान से ऊपर ही है। और सबसे बड़ी चिंता यह है कि निजी क्षेत्र की तरफ से निवेश आने की उम्मीद अभी तक पूरी होती नहीं दिख रही।

नए निवेश की रफ्तार बढ़ना तो दूर, उसके गिरने की रफ्तार तेज हो रही है। ये बड़ी चिंताएं हैं, जो सिर्फ यही याद दिलाती हैं कि अभी आराम से बैठने का वक्त नहीं आया है। सरकार को इन सबका एक साथ मुकाबला करना होगा और हौसला जगाने का काम जारी रखना पड़ेगा, तभी जिस सुधार की उम्मीद जताई जा रही है, वह साकार हो पाएगा।


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