जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यूं तो चुनावों और वायदों का पुराना रिश्ता रहा है। नेता खुलकर जनता के अहसासों से खेलते हैं और उम्मीदों का आसमान दिखाते हैं। बिहार के विधानसभा चुनाव में वायदों की बाढ़ का अंतहीन सिलसिला जारी है लेकिन केंद्र में सतारूढ़ भाजपा द्वारा जारी संकल्प पत्र में हर बिहारवासी को मुफ्त में कोरोना टीका उपलब्ध कराने के वायदे ने पूरे देश में एक विवाद खड़ा कर दिया है। विपक्षी दल इसे कोरोना महामारी का राजनीितकरण बता रहे हैं। निस्संदेह कोई राजनीतिक दल कोई भी वायदा कर सकता है लेकिन उसका नैतिक पक्ष भी देखना जरूरी है। इस समय पूरा देश इस महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में एक राज्य के लिये अलग से वोट के बदले वैक्सीन की घोषणा निश्चित रूप से नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है। दरअसल, इस महामारी में केंद्र और राज्यों में जैसा समन्वय महामारी से जूझने में देखने को मिला, वह प्रशंसनीय है। कई राज्यों से आवाजें उठने लगी हैं कि बिहार को वैक्सीन सिर्फ इसलिये मुफ्त देने की बात है कि वहां वोट लेना है। पूरा देश एक सदी बाद आयी महामारी से जूझ रहा है और वैक्सीन को लेकर हर कोई संवेदनशील है। हरेक की चिंता है कि उसे वैक्सीन मिल पायेगी या नहीं। तो ऐसे में किसी राजनीतिक घोषणा के जरिये वैक्सीन देने की बात करना एक भावनात्मक खिलवाड़ जैसा लगता है। यूं तो महामारी और अन्य संक्रामक रोगों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम केंद्र सरकार के नेतृत्व में ही चलायी जाती है। अखरने वाली बात यह भी है कि पूरी दुनिया इस समय कोरोना महामारी से जूझ रही है। इस दौरान कई देशों में चुनाव भी हुए हैं लेकिन किसी भी देश में वोट के लिये वैक्सीन देेने का वायदा नहीं किया गया। यहां तक कि दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र और कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका में अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी कोई ऐसा वायदा नहीं किया गया। वैक्सीन के अलावा बिहार में वायदों की भरमार है। ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आ रहा है, वायदों का शोर तेज होता जा रहा है। बिहार में साठ फीसदी आबादी 35 साल से कम की है। ऐसे में युवा और रोजगार वायदों के केंद्र में है। राजद ने जहां दस लाख युवाओं को नौकरी देने का वायदा किया है तो भाजपा ने 19 लाख युवाओं को नौकरी देने का वायदा किया है। एक नये दल ने तो अस्सी लाख लोगों को रोजगार देने का वायदा किया है। बिहार की 85 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है तो सभी राजनीतिक दलों ने ग्रामीण विकास को अपनी प्राथमिकता दी है। जद-यू और भाजपा ने गलियों में सोलर लाइट लगाने का वायदा किया है। साथ ही हर गरीब को पक्का मकान देने का वायदा हर राजनीतिक दल ने किया है। वहीं लोजपा ने हर प्रखंड में सुविधायुक्त बारात घर बनवाने और गरीबों को पक्का मकान देने का वायदा किया है। भाजपा व जद-यू ने शिक्षा पर फोकस करते हुए लड़कियों को प्रोत्साहन राशि देने और कांग्रेस ने नि:शुल्क शिक्षा का वायदा किया है। कांग्रेस ने मुफ्त बिजली और कर्ज माफी का वायदा किया है। लोजपा ने कृषि व सहकारिता को बढ़ावा देने की बात कही है। निस्संदेह यदि इन राजनीतिक दलों के वायदे सिरे चढ़ते हैं तो बिहार देश के अग्रणी राज्यों में शुमार हो जायेगा। यहां सवाल वायदों को पूरा करने की संभावना और राजनीतिक दल के पास उपलब्ध संसाधनों का उठता है। कुछ विपक्षी दल कोरोना वैक्सीन मुफ्त बांटने के मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग के पास जाने की बात कह रहे हैं लेकिन चुनाव घोषणा पत्र में किये गये वायदों को प्रतिनिधित्व कानून के तहत भ्रष्ट व्यवहार के तौर पर नहीं देखा जा सकता। चुनाव आयोग देखता है कि ऐसी घोषणाओं के लिये पार्टी के पास संसाधन हैं या बजट में इसका प्रावधान किया जा सकता है। लेकिन एक बात तो तय है कि मुफ्त की घोषणाओं से लोग चुनाव में प्रभाव में आते हैं जो कि लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं के अनुरूप तो कदापि नहीं है।