चुनावी रिश्वत

जनतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पहली शर्त है। हर चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग इसका बढ़-चढ़ कर दावा करता है। मतदान की तारीखों के एलान के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है

Update: 2022-02-28 03:48 GMT

Written by जनसत्ता: जनतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पहली शर्त है। हर चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग इसका बढ़-चढ़ कर दावा करता है। मतदान की तारीखों के एलान के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है, जिसमें किसी भी प्रकार से मतदाता को प्रलोभन देना, उसे भड़काना या उकसाना वर्जित होता है। मगर अब हकीकत प्राय: इसके उलट है। पिछले कुछ दशक से शायद ही कोई ऐसा चुनाव हो, जिसमें प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने के लिए उपहार स्वरूप कुछ न कुछ देने का प्रयास न करते देखे जाते हों।

चाहे वह पंचायत चुनाव हो या फिर लोकसभा का, सबमें अब यह परिपाटी-सी बन गई है कि प्रत्याशी अपनी क्षमता के अनुसार मतदाताओं को नकदी, वस्त्र, मूल्यवान वस्तुएं, शराब, नशीली चीजें आदि बांटते हैं। अभी पांच राज्यों में चल रहे चुनावों में निर्वाचन आयोग ने एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की नकदी, शराब, मूल्यवान वस्तुएं आदि जब्त की हैं। बताया जा रहा है कि यह जब्ती पिछले विधानसभा चुनावों से चार गुना अधिक है। 2014 में करीब तीन सौ करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुएं और नकदी जब्ती की गई थी। इस बार अभी तक एक हजार अठारह करोड़ रुपए मूल्य की जब्ती की जा चुकी है। अभी उत्तर प्रदेश में दो चरण के चुनाव बाकी हैं, इसलिए जब्ती का आंकड़ा और बढ़ने की संभावना है।

चुनाव में इस तरह मतदाताओं को नकदी और वस्तुएं बांटा जाना एक तरह से उन्हें रिश्वत देकर अपने पक्ष में मतदान करने को प्रलोभित करना ही है। हर चुनाव में बड़े पैमाने पर ऐसी शिकायतें निर्वाचन आयोग के पास पहुंचती हैं, वह सक्रिय होकर छापेमारी वगैरह भी करता है, मगर ऐसा करने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाता, जिसके चलते इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना कठिन बना हुआ है। इस तरह रिश्वत देकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिशें लगातार बढ़ी हैं।

करीब दस महीने पहले उत्तर प्रदेश में जिला पंचायतों के चुनाव हुए, जिनमें अनेक ग्राम प्रधानों ने शिकायत की कि उन्हें जबरन लाखों रुपए की नकदी बांटी गई। कुछ ने तो नोट की गड््िडयों के साथ चित्र साझा करते हुए बताया कि चुपके से उनके तकिया के नीचे पैसे रख दिए गए थे। मगर ऐसी शिकायतों पर किसी प्रत्याशी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई हुई हो, एक भी उदाहरण नहीं मिलता। यह ठीक है कि इस तरह की चीजें प्रत्याशी खुद नहीं, बल्कि उनके कार्यकर्ता बांटते हैं। पर जब नकदी और कीमती वस्तुएं जब्त होती हैं, तो यह तो स्पष्ट होता है कि वे किसके पास से मिली हैं।

दरअसल, चुनाव कराने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग को तो है, मगर किसी भी प्रकार से दोषी पाए जाने वाले प्रत्याशी या जीते हुए नेता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार उसके पास नहीं है। इसलिए वह महज प्रत्याशियों और पार्टियों को चेतावनी या नोटिस देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है।

ज्यादा से ज्यादा यह होता है कि अगर किसी नेता ने भड़काऊ या आपत्तिजनक भाषण दिया, तो उसे कुछ समय के लिए प्रचार से रोक देता है। राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी भी आयोग की इस सीमा को अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए आचार संहिता के उल्लंघन से बाज नहीं आते। जब तक निर्वाचन आयोग को प्रत्याशी को चुनाव से बाहर करने या जीते हुए उम्मीदवार का जनप्रतिनिधित्व समाप्त करने जैसे कड़े अधिकार नहीं मिलेंगे, इस तरह महज जब्ती से चुनाव प्रक्रिया में शुचिता का दावा नहीं किया जा सकता।


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