हिमाचल में चुनावी जश्न थमा
हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों पर आज मतदान पूरा हो गया जिनका नतीजा अगले महीने 8 दिसम्बर को गुजरात चुनावों के साथ सुनाया जायेगा। गुजरात में मतदान 1 और 5 दिसम्बर को होगा।
आदित्य चोपड़ा: हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों पर आज मतदान पूरा हो गया जिनका नतीजा अगले महीने 8 दिसम्बर को गुजरात चुनावों के साथ सुनाया जायेगा। गुजरात में मतदान 1 और 5 दिसम्बर को होगा। हिमाचल में मतदान का प्रतिशत अच्छा रहा है जिसका प्रतिफल कांग्रेस व भाजपा अपने-अपने हिसाब से निकालेंगे, परन्तु चुनावी पंडित जो विश्लेषण कर रहे हैं उनके अनुसार राज्य में दोनों पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। यह देखा गया है कि हिमाचल प्रदेश में 1990 के बाद से सत्ता पर भाजपा व कांग्रेस पार्टी की सरकारें हर पांच साल बाद बनती- बिगड़ती रही हैं। इससे पहले कांग्रेस के स्व. डा. वाई. एस. परमार व स्व. वीरभद्र सिंह ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो लगातार दो बार या इससे अधिक के समय के लिए भी मुख्यमन्त्री रहे।बेशक भाजपा के नेता श्री शान्ता कुमार व प्रेम कुमार धूमल भी दो- दो बार मुख्यमंत्री रहे, मगर लगातार दो अवधि के लिए वह गद्दी पर नहीं जमे रह सके।चुनाव में हार -जीत का बहुत ही सरल आंकलन इस आधार पर किया जा सकता है कि किस पार्टी का एजेंडा चुनावी प्रचार में छाया रहा है और कौन सी पार्टी रक्षात्मक पाले में आकर उस एजेंडे का जवाब देती रही है मगर हिमाचल के मामले में यह फार्मूला इसलिए असफल लगता है क्योंकि इस राज्य में भाजपा ने पूरा चुनाव प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के मुद्दे पर लड़ा है। जहां तक गुटबाजी का सवाल है तो दोनों पार्टियों के बीच इस बार विद्रोही प्रत्याशियों की संख्या अच्छी-खासी रही है। अतः चुनावों में दोनों को ही एक समान रूप से अवरोधों का सामना करना पड़ा है फिर भी भाजपा को उम्मीद है कि श्री मोदी की लोकप्रियता आम मतदाताओं को इन अवरोधों से पार करा जायेगी। संपादकीय :कर्मचारी और मालिकों की ये कैसी मुश्किल!आरक्षण पर सोरेन का दांवमुलायम सिंह की विरासत !अमेरिका-चीन में घटेगा तनाव?बाइडेन की ताकत को ग्रहणमतदान को तैयार हिमाचलदूसरी तरफ कांग्रेस ने भी अपनी पुरानी क्षत्रीय विरासत को ही चुनावी मैदान में भुनाने का प्रयास किया है और स्व. वीरभद्र सिंह की मुख्यमंत्री के रूप में राज्य में की गई सेवाओं की तरफ मतदाताओं का ध्यान खींचने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि भी कहा जाता है और इसकी भौगोलिक स्थितियां इसके साथ ही काफी दुर्गम भी हैं। चुनाव आयोग के लिए इस राज्य में चुनाव कराना किसी चुनौती से कम भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सुदूर पहाडि़यों पर बसे छोटे-छोटे गांवों तक मतदान केन्द्र स्थापित करना अंगुली पर गिनती करने लायक मतदाताओं के लिए उनके संवैधानिक अधिकार के प्रयोग करने की सुविधाएं उपलब्ध कराना काफी कष्ट कर कार्य होता है। लाहौल स्पीति घाटी के केवल चार मतदाताओं वाले गांव 'का' में भी चुनाव आयोग पहुंचा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत कितनी विविधताओं से भरा हुआ देश है। जिस तरह आज हिमाचल के मतदाताओं का फैसला ईवीएम मशीनों में बन्द हुआ है, उन मशीनों की पुख्ता सुरक्षा करने की जिम्मेदारी करना भी चुनाव आयोग का ही काम है। यह भी काफी चुनौतीपूर्ण कार्य होता है क्योंकि देश के लोगों के गुप्त मतदान की सुरक्षा करना भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली का पहला धर्म होता है जिसे चुनाव आयोग को ही विभिन्न सरकारी मशीनरी का प्रयोग करके पूरा करना होता है, लेकिन इन सब बातों के साथ ही इस बार के हिमाचल के चुनाव कुछ मायनों में भी विशिष्ट रहे। इस राज्य से हालांकि पहले भी चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की घटनाएं कम ही मिलती रही हैं मगर इस बार तो ये नगण्य रही हैं। इससे इस पहाड़ी राज्य के सरल व मृदुभाषी मतदाताओं की विशेषता का पता चलता है। इसके अलावा चुनाव प्रचार में जिस तरह की शिष्ट व मर्यादित भाषा का इस्तेमाल राजनीतिज्ञों ने किया है वह भी उल्लेखनीय है। चुनाव प्रचार प्रमुख मुद्दों के ही चारों तरफ जिस तरह घूमा है उससे उत्तर भारत के बड़े राज्यों को सबक लेने की जरूरत है। यह राज्य देश की सुरक्षा करने वाला राज्य भी माना जाता है। भारतीय सेना में भर्ती होना इस राज्य के लोग गौरव की बात समझते हैं। हर गांव से एक दो व्यक्ति फौज में जरूर होता है। यहां की महिलाएं परिश्रमी व कार्यकुशल होने के साथ ही घरेलू कार्यों में दक्ष मानी जाती हैं। अतः मतदान में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। यहां की अर्थव्यवस्था में भी महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। धार्मिक रूप से यह राज्य भगवान शंकर की स्थली के रूप में प्रसिद्ध है ही परन्तु बौद्ध धर्म के लिए इसका खासा महत्व है, परन्तु मतदान करने में भी जिस तरह यह राज्य देश के अन्य बड़े राज्यों की अपेक्षा अग्रणी रहता है इसके राजनीतिक चातुर्य का भी पता चलता है, परन्तु अब इस राज्य का कायाकल्प हो चुका है और हिमाचल अब वैसा नहीं है जैसा सत्तर के दशक में हुआ करता था। विभिन्न राज्य सरकारों ने यहां के हर गांव को सड़कों से जोड़ने का प्रयास किया है और दुर्गम जल प्रपातों के रास्ते में पुल तक बनाने का बीड़ा उठाया हुआ है। चीन (तिब्बत) की सीमा को छूता यह राज्य दुर्लभ पर्वतीय जीव जन्तुओं का भी अभ्यारण्य है। एेसे राज्य में चुनावों का प्रतिशत बेहतर होना बताता है कि लोकतन्त्र की जड़ें भारत में कितनी गहरी हैं।