उत्तर प्रदेश में चुनावी आगाज

उत्तर प्रदेश के चुनावों के प्रथम चरण में 60.17 फीसदी का होना बताता है कि राज्य की जनता अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति पूरी तरह सचेत है और वोट डालना अपना नैतिक दायित्व मानती है।

Update: 2022-02-11 02:51 GMT

आदित्य चोपड़ा: उत्तर प्रदेश के चुनावों के प्रथम चरण में 60.17 फीसदी का होना बताता है कि राज्य की जनता अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति पूरी तरह सचेत है और वोट डालना अपना नैतिक दायित्व मानती है। हालांकि राज्य में आज कुल 403 सीटों में से केवल 58 सीटों के लिए ही मतदान हुआ है परन्तु इन क्षेत्रों की जनता के उत्साह को देख कर कहा जा सकता है कि भारत में लोकतन्त्र का भविष्य बहुत उज्ज्वल है क्योंकि जीवन्त लोकतन्त्र की यह प्राथमिक शर्त होती है कि इसमें आम जनता की भागीदारी अधिकाधिक हो जिससे सत्ता में भी उनकी भागीदारी अधिकाधिक हो सके। भारत में राजनीतिक दल मूलक शासन व्यवस्था है अतः लोग मतदान के माध्यम से किसी राजनीतिक दल को ही सत्ता सौंपते हैं परन्तु यह प्रणाली होने के बावजूद किसी भी राज्य या केन्द्र में शासन केवल संविधान का ही होता है और प्रत्येक राजनीतिक दल की सरकार को इसी संविधान के भीतर शासन चलाना पड़ता है। चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दल विभिन्न विचारधाराएं रखते हैं और उनके माध्यम से लोगों के विकास का वचन देते हैं अतः राजनीतिक चुनाव प्रणाली में विचारधाराएं भी अपना विशेष महत्व रखती हैं जिनसे आम मतदाता प्रभावित होकर अपना वोट डालते हैं। अतः एक मायने में चुनाव आम जनता के लिए राजनीतिक शिक्षालयों का काम भी करते हैं। इसी व्यवस्था को बेहतर व कारगर बनाने की गरज से चुनाव आयोग मतदान से पहले आचार संहिता जारी करता है जिससे चुनावी प्रचार के दौरान विभिन्न राजनीतिक संयम से काम लेते हुए केवल राजनीतिक विचारों का ही प्रचार संविधान में नियत दायरे के भीतर कर सकें और प्रत्येक मतदाता को अपनी मनपसन्द सरकार बनाने के लिए गंभीर वैचारिक मंथन करने के लिए प्रेरित कर सकें। मगर एेसा करने का मार्ग तभी प्रशस्त होगा जब मतदाता बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लेंगे और अपनी पसन्द व्यक्त करेंगे लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि मतदान प्रतिशत के आधार पर राजनीतिक पंडित या चुनाव विश्लेषक नतीजे निकालने लगते हैं। इसमें सबसे साधारण फार्मूला यह होता था कि यदि मतदान प्रतिशत अधिक होता है तो वह सत्ता विरोधी होगा और कम होने पर उसका लाभ सत्ताधारी दल को मिलेगा परन्तु पिछले कुछ दशकों से इस फार्मूले में कई खामियां देखने को मिल रही हैं। अधिक मतदान को सत्ता विरोध का नाम दे देना इन दशकों में गलत साबित होने लगा और कई मामलों में अधिक मतदान सत्ता समर्थन में गिना जाने लगा। जिसे अंग्रेजी 'एंटी इन्कम्बेसी या प्रो- इन्कम्बेसी' कहा जाता है। इसका मतलब गहराई से अगर हम सोचें तो यही निकलता है कि इन दशकों के दौरान चुनी हुई सरकारों ने अपने कामकाज करने के तरीकों में बदलाव किया जिससे प्रो- इकम्बेसी के प्रभाव में लोगों ने उन्ही सत्तारूढ़ दलों को पुनः चुना। अधिक मतदान को अब दुतरफा प्रयोग करने में आसानी हो गई मगर इससे चुनाव विश्लेषकों की असंजस बढ़ गई और वे किसी सुनिश्चित नतीजे पर पहुंचने से कतराने लगे लेकिन अगर हम इस बदलाव का और गहराई से वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेगे कि भारत का मतदाता लगातार और ज्यादा जिम्मेदार हो रहा है और वह लोकतन्त्र का इस्तेमाल दुतरफा कर रहा है। वह तब तक अपनी वरीयता नहीं बदलता जब तक कि उसके पास सत्तारूढ़ दल से बेहतर कोई दूसरा ठोस विकल्प न हो। यह निश्चित रूप से राजनीतिक परिपक्वता ही कही जायेगी। इसके साथ हमें ताजा इतिहास में यह देखने को भी मिल रहा है कि लोग किसी भी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता से बचना चाहते हैं और चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देना पसन्द करते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया को हम कोई नियम नहीं मान सकते हैं क्योंकि पिछले एक दशक में कई उत्तर भारतीय राज्यों में किनारे पर बहुमत वाली सरकारें भी गठित हुई और कई राज्यों में त्रिशंकु विधानसभाएं भी बनीं (जैसे कर्नाटक)। एेसा लोकतन्त्र में प्रायः तभी होता है जब लोगों को किसी एक विशिष्ट विचारधारा या राजनीतिक दल में पूर्ण विश्वास नहीं होता। चुनाव में खड़े सभी राजनीतिक दलों का बेशक यह प्रयास रहता है कि बहुमत उन पर विश्वास करे मगर यह तब निश्चित रूप से नहीं होता जब मतदान प्रतिशत बहुत कम रहता है। इसका उदाहरण भी हमें 80 के दशक के पूर्व तक जम्मू-कश्मीर राज्य में देखने को मिलता रहा है जो अब दो राज्यों में विभक्त हो चुका है। दरअसल अधिक मतदान का होना राजनीतिक प्रणाली में निष्ठा का ही प्रतीक होता है चाहे इसका प्रतिफल राजनीतिक स्थिरता में निकले अथवा अस्थिरता में । उत्तर प्रदेश के 58 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं ने जिस उत्साह के साथ चुनाव प्रणाली में भागीदारी की है उसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। राज्य में अभी मतदान के छह चरण और होने हैं और इन चरणों में मतदाता यदि पहले चरण के मुकाबले और अधिक मतदान करते हैं तो इसे लोकतन्त्र को मजबूती देने वाला कदम ही माना जायेगा परन्तु बड़े राज्यों के मुकाबले पूर्वोत्तर के राज्यों में जिस तरह 80 प्रतिशत से ऊपर तक मतदान होने की परंपरा रही है वह और भी अधिक उत्सावर्धक है। एेसे ही एक राज्य मणिपुर में अभी चुनाव होना है। देखना होगा कि इस बार यहां कितने प्रतिशत मतदान होता है। 

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