अकेलेपन से जूझते बुजुर्ग: तेजी से बढ़ती बुजुर्गों की संख्या के बारे में सोचना होगा कि उनका जीवन सुचारु रूप से कैसे चले?

हाल में इंदौर में निराश्रित बुजुर्गों को शहर से जबरन बाहर निकालने की घटना ने लोगों को ध्यान फिर से बुजुर्गों की ओर खींचा।

Update: 2021-02-06 16:27 GMT

हाल में इंदौर में निराश्रित बुजुर्गों को शहर से जबरन बाहर निकालने की घटना ने लोगों को ध्यान फिर से बुजुर्गों की ओर खींचा। बुर्जुगों की इस कदर अनदेखी-उपेक्षा के बीच पिछले दिनों एक सुखद खबर भी आई। एक महिला के पति की मृत्यु हो गई थी। बच्चे अपने-अपने परिवारों में व्यस्त थे। महिला नितांत अकेली थी। क्या करे। कोई सुख-दुख बांटने वाला भी आसपास नहीं था। उसने संन्यास ले लिया और हरिद्वार चली आई। वहां वह साधु-संतों के बीच रहने लगी। वहीं उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। दोनों एक-दूसरे से सुख-दुख कहने लगे। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। दूसरे साधु-संतों ने यह देखा तो दोनों का विवाह करा दिया। इसी तरह कुछ दिन पहले एक वृद्धाश्रम में रहने वाले दो बुजुर्गों ने भी विवाह किया। इन दिनों होने वाले बहुत से ऐसे ही विवाह अपने देश में बदले हुए वक्त को बता रहे हैं। इन दिनों एक टूथपेस्ट के विज्ञापन में एक उम्रदराज महिला अपने बाल-बच्चों और नाती-पोतों को खाने पर बुलाती है। वह बार-बार बाहर की ओर देखती है। मानो किसी के आने का इंतजार हो। थोड़ी देर बाद एक बड़ी उम्र का आदमी उसका कंधा थामता है और वह महिला अपनी अनामिका में पहनी अंगूठी दिखाती है। यानी वह रिलेशनशिप में है और उसने मंगनी की अंगूठी पहन ली है। यह देखकर बच्चे पहले चकित होते हैं, फिर खुशी मनाते हैं। विज्ञापन की आखिरी लाइन है-नई आजादी का जश्न।

अकेलेपन से जूझते बुजुर्ग

दिलचस्प है कि एक ओर स्त्री विमर्श विवाह को एक गुलामी की तरह देखता है तो दूसरी तरफ बड़ी उम्र में दूसरा विवाह करने वाली महिला उसे दूसरी आजादी का जश्न कहती है। अगर ध्यान से देखें तो समाज में परिवर्तन तो आ रहा है, मगर वह बहुत धीमा है। वैसे भी अपने देश में बुजुर्गों की आबादी बढ़ती जा रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार पांच करोड़ दस लाख बुजुर्ग पुरुष और पांच करोड़ तीस लाख बुजुर्ग महिलाएं हैं। ऐसे बुजुर्ग भी बहुतायत में हैं, जो जीवन साथी की मृत्यु, उससे अलगाव या बच्चों के कहीं दूर चले जाने के कारण अकेले रह गए हैं। इनकी संख्या डेढ़ करोड़ के आसपास है। अकेलापन इनकी बड़ी समस्या है। इनकी बात सुनने, बात करने के लिए किसी के पास समय नहीं है। बहुत से बुजुर्ग आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं हैं, मगर सिर्फ पैसे से कुछ नहीं होता, जब तक कि जीवन में किसी इंसान का सहारा न हो।
बुढ़ापा काटना बहुत मुश्किल

अपने देश में इन दिनों बुढ़ापा काटना बहुत मुश्किल काम हो गया है। एक समय कहा जाता था कि महिलाएं चूंकि घर में रहती हैं और घर के तमाम कामों को निपटाने में ही उनकी उम्र बीत जाती है, इसलिए अगर वे अकेली रह भी जाएं तो भी अपना जीवन काट लेती हैं, लेकिन पुरुषों के लिए अकेलापन काटना एक भारी समस्या होती है। हालांकि सच्चाई यही है कि बदले वक्त में जब पुरुष और स्त्री विभिन्न कारणों से जीवन के चौथेपन में अकेले रह जाते हैं तो उनका समय काटे नहीं कटता। वे अकेले घर में रहें तो कब तक। आखिर कितनी देर किसी से फोन पर बातें करें, टीवी देखें, फेसबुक पर रहें। बीमार पड़ जाते हैं तो और मुश्किल हो जाती है। कोई देखभाल करने वाला और अस्पताल पहुंचाने वाला तो चाहिए। ऐसे में अकेलेपन और भविष्य में आने वाली विपत्तियों के डर से वे अवसाद के शिकार हो जाते हैं। बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्था एजवेल फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है कि हमारे यहां इन दिनों बुजुर्ग बेहद अकेले हैं। इसलिए यदि बहुत से बुजुर्ग अपने चौथेपन में भी साथी की तलाश कर रहे हैं तो इसमें आश्चर्य क्या, क्योंकि जब तक जीवन है उसे ठीक से और खुशी से जीने की चाह हर एक में हो सकती है। याद करें कि कुछ साल पहले मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक और मॉडल जैरी हाल ने विवाह की घोषणा की थी।

'बिना मूल्य अमूल्य सेवा' देती है बुजुर्गों को सहारा

गुजरात के अहमदाबाद का एक संगठन है-बिना मूल्य अमूल्य सेवा। यह अकेले रह गए बुजुर्गों को मिलवाने के लिए सम्मेलन आयोजित कराता है। उसमें आकर अकेले रह गए बुजुर्ग एक-दूसरे से परिचय प्राप्त करते हैं। फिर पसंद आने पर यदि एक-दूसरे से विवाह करना चाहते हैं तो उनका विवाह करा दिया जाता है। यदि वे विवाह न करके लिव इन में रहना चाहते हैं तो उसकी व्यवस्था भी की जाती है। अनेक बार इस सम्मेलन में बच्चे अपने माता-पिता को लेकर आते हैं। यहां आने वाले बहुत से बच्चे कहते हैं कि अपने माता-पिता का अकेलापन वे चाहकर भी दूर नहीं कर पाते। अपने-अपने काम-धंधों और गृहस्थी की जिम्मेदारियों में फंसकर वे माता-पिता की समस्याओं को नहीं समझ पाते। वैसे अगर चाहें भी तो साथी की कमी किसी तरह दूर नहीं कर सकते। इसलिए वे उनके लिए यहां साथी खोजने चले आते हैं।

हर साल बुजुर्गों की संख्या बढ़ती ही जा रही

इस संगठन को चलाने वाले नाथूभाई लाल पटेल कहते हैं कि हर साल बुजुर्गों की ओर से आने वाले प्रार्थनापत्रों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। पहले तीन हजार के करीब प्रार्थनापत्र आते थे। अब यह संख्या बढ़कर पांच हजार तक जा पहुंची है। नाथूभाई पूरे देश में घूम-घूमकर बुजुर्गों के लिए जीवन साथी खोजने के लिए ऐसे सम्मेलन आयोजित करते हैं। वह इस काम को सबसे बड़ी सेवा मानते हैं। साफ है जब देश में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है तो उनका जीवन भी सुचारु रूप से चले, इसकी व्यवस्था करने के बारे में सोचा जाना चाहिए। बूढ़ों के हिस्से में आया अकेलापन भी दूर होना चाहिए। औरों की तरह उन्हेंं भी सुख से जीने का पूरा अधिकार है।


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