सर्वशक्तिमान अमरीका की ऐन नाक के नीचे बैठकर उसकी खामियों पर उंगली रखने वाले तीसरी दुनिया के देश क्यूबा को आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंधों के रूप में उसका खामियाजा भुगतना पड़ा है, लेकिन क्यूबा ने इस आपदा को अवसर में तब्दील करने में कोई कोताही नहीं बरती। उसने महात्मा गांधी की शिक्षा को अपनाकर कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि बुनियादी मामलों में बढ़त हासिल की। इस आलेख के माध्यम से इसी विषय पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे। क्यूबा एक छोटा सा देश है, जनसंख्या केवल एक करोड़ से कुछ अधिक है, पर इस छोटे से देश का विश्व स्तर पर विशेष महत्त्व रहा है। अमरीका के इस पड़ोसी देश में लगभग छह दशक से समाजवादी व्यवस्था कायम है और उसने मानवीय विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। अमरीका ने आर्थिक व व्यापारिक प्रतिबंध लगाकर व अन्य तरह के विरोध से क्यूबा के लिए अनेक कठिनाइयां उत्पन्न की हैं, पर इसके बावजूद क्यूबा ने महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। अनेक देशों में कोई संकट आने पर डाक्टरों के दल व चिकित्सा सुविधा भेजने में भी क्यूबा का स्थान अग्रणी रहा है। आज यह देश व यहां की सरकार विशेष कठिनाइयों में है तो विश्व स्तर पर विभिन्न देशों व सरकारों का समर्थन आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली द्वारा अनेक वर्षों से निरंतरता से यह प्रस्ताव पास होता रहा है कि क्यूबा में अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया जाए। 90 प्रतिशत से अधिक देशों ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया है।
जाहिर है अब समय आ गया है कि अमरीका इन प्रतिबंधों को हटा ले। यदि प्रतिबंध तुरंत हटते हैं तो क्यूबा में रक्षा व चिकित्सा साजो-सामान व बिजली उपलब्धि की कमी दूर हो जाएगी व इस आधार पर यहां की सरकार व जनता को बड़ी राहत मिलेगी। जब से इस जरूरी साजो-सामान व बिजली की कमी बढ़ी है, तब से क्यूबा की सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। अमरीका से इन विरोधों को जो समर्थन मिला है, इस कारण यह अधिक तेजी से बढ़े हैं। मैक्सिको के राष्ट्रपति ने कहा है कि यदि अमरीका को क्यूबा के लोगों की वास्तव में चिंता है तो उसे प्रतिबंधों को वापस लेकर उनकी सहायता करनी चाहिए। बोलिविया के राष्ट्रपति ने भी अमरीकी नीति का विरोध किया है व क्यूबा के राष्ट्रपति ने अमरीका पर अपनी सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया है। दरअसल प्रतिबंध तो पहले से थे, पर ओबामा ने इनमें कुछ ढील कर राहत दी थी, जबकि ट्रंप ने उन्हें अचानक बहुत सख्त कर कोविड के दौर में ही क्यूबा की दिक्कतें बहुत बढ़ा दीं।
अब कई देश अमरीका से इस सख्ती की नीति को छोड़ने के लिए कह रहे हैं। यदि क्यूबा के वास्तविक रिकार्ड को देखा जाए तो उसने मानवीय विकास, विशेषकर स्वास्थ्य में बहुत महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। शिशु मृत्यु दर यहां 1957 में 32 थी, जबकि इसे अब 4 तक पहुंचा दिया गया है। यह उपलब्धि कुछ विकसित देशों व अमरीका से भी आगे की है। ब्लूमबर्ग के सबसे स्वस्थ देशों के सूचकांक में भी क्यूबा की स्थिति विकसित देशों के निकट है व विकासशील देशों में तो उसे सबसे आगे रखा गया है। क्यूबा में अनुमानित औसत आयु 79 वर्ष के आसपास है जो कि अमरीका से जरा सी अधिक है। क्यूबा जैसे छोटे से देश ने फेफड़ों के कैंसर के इलाज में इतनी उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त की कि जब ओबामा काल में प्रतिबंध कुछ ढीले हुए तो अमरीका के मरीज इलाज के लिए क्यूबा जाने लगे। इसी तरह एग्रो-इकॉलाजी यानी पर्यावरण रक्षा के अनुकूल कृषि में भी क्यूबा ने बहुत महत्त्वपूर्ण प्रगति अर्जित की है। विशेषकर सब्जियों का उत्पादन आर्गेनिक खेती से बढ़ाने में इसकी उपलब्धि उल्लेखनीय रही है। जहां अधिक सब्जियों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई, वहां रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग कम किया गया। इस तरह कृषि उत्पादन बढ़ाने, खर्च कम करने व पर्यावरण की रक्षा करने के लक्ष्य सभी एक साथ प्राप्त किए गए।
क्यूबा की एक सराहनीय नीति यह रही है कि जब कोई देश संकट में होता है तो वहां सहायता भेजने के लिए तत्पर रहता है। इसके लिए यहां डाक्टरों के विशेष दल तैयार किए गए हैं। ये डाक्टर कठिन स्थितियों में सेवा भाव से दूर-दूर जाने के लिए तैयार रहते हैं। अभी तक डाक्टरों के ये दल लगभग 40 देशों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वैसे क्यूबा के साधन सीमित हैं और वह डाक्टरों को अपेक्षाकृत कम वेतन ही दे पाता है, पर इसके बावजूद यहां के डाक्टरों ने सेवा कार्य की महान उपलब्धि प्राप्त की है। क्यूबा के अनुभव मूल्यवान हैं। इनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आज क्यूबा की सहायता के स्थान पर उस पर प्रतिबंध लगाकर गिराने का प्रयास किया जा रहा है। निश्चय ही यह बहुत अनुचित है। इस कठिन परिस्थिति में क्यूबा को विश्व के अधिकतम देशों का सहयोग और समर्थन प्राप्त होना चाहिए। इस तरह क्यूबा ने कृषि, शिक्षा व स्वास्थ्य में विशेष उपलब्धियां हासिल की हैं। महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर चलकर उसने ये उपलब्धियां हासिल की हैं।
महात्मा गांधी भारत के संदर्भ में मानते थे कि असली भारत गांवों में बसता है। इसलिए वे ग्रामीण विकास पर जोर देते थे। वे गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की बात करते थे। गांवों को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि का योगदान महत्त्वपूर्ण है। गांवों की समस्याओं को हल करने के लिए वे पंचायती राज की वकालत करते थे। पंचायतों को वह इस तरह विकसित करना चाहते थे कि वे स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होकर काम कर सकें। पंचायतों के अपने आर्थिक संसाधन जुटाने पर बल देते हुए उन्होंने कहा था कि पंचायतें राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। ग्रामीण आर्थिकी का यह पाठ पढ़कर क्यूबा ने कृषि में ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं कि बड़े-बड़े देशों से वह कहीं आगे निकलकर आत्मनिर्भर हो चुका है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उसकी उपलब्धियों पर महात्मा गांधी की शिक्षाओं की छाप देखी जा सकती है। हर व्यक्ति को इलाज और शिक्षा क्यूबा में सरकार का मुख्य लक्ष्य रहा है, इसीलिए आज वह अग्रिम पंक्ति का देश बन गया है।
भारत डोगरा
स्वतंत्र लेखक