शिक्षा और संस्कार
हाल ही में यूक्रेन से लाए गए छात्रों का एक वीडियो प्रसारित हुआ, जिसमें हवाई अड््डे से बाहर निकलते समय एक मंत्री द्वारा उनका स्वागत किया जा रहा है, पर छात्र उन मंत्री महोदय को बिल्कुल नजरअंदाज कर निकल जा रहे हैं।
Written by जनसत्ता: हाल ही में यूक्रेन से लाए गए छात्रों का एक वीडियो प्रसारित हुआ, जिसमें हवाई अड््डे से बाहर निकलते समय एक मंत्री द्वारा उनका स्वागत किया जा रहा है, पर छात्र उन मंत्री महोदय को बिल्कुल नजरअंदाज कर निकल जा रहे हैं। यही छात्र यूक्रेन में भारत के झंडे की प्रशंसा कर रहे थे कि इस झंडे की वजह से उन्हें वहां सैनिकों ने आसानी से निकलने दिया। पर अपने देश के जिन संस्कारों का दुनिया में इतना सम्मान है, उन्हें इन छात्रों ने भारत आकर तार-तार कर दिया।
स्वागत के लिए उपस्थित मंत्री बेशक आपकी पसंद की पार्टी के न रहे हों या हो सकता है आपके विचार भिन्न हों, पर उम्र में अपने से बड़े व्यक्ति का सम्मान करना, उनका आदर करना हमें हमारी संस्कृति सिखाती है। उन छात्रों में से एक का भी व्यवहार सराहनीय नहीं था। छात्रों का इस तरह का व्यवहार चिंतित करने वाला है कि संवेदना के स्तर पर हम कहां खड़े हैं। हमें शिक्षा व्यवस्था पर चिंतन करने की आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा का गिरता स्तर भविष्य में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करेगा।
हर साल बहुत से कार्यक्रम फर्ज अदा करने के लिए किए जाते हैं, उनमें से एक है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस। युगों-युगों से स्त्री के सम्मान को शब्दजाल मे उलझा कर रखा गया है। अनगिनत अलंकारों से अलंकृत किया गया, मगर वह सम्मान उसे कभी प्राप्त हुआ ही नहीं, जिसकी वह अधिकारी है। कुछ समय से वह सशक्त होने का प्रयास कर रही है, किंतु उसे पुरुष ही नहीं, स्त्री भी पनपने नहीं देती।
प्रकृति ने स्त्री को वे सब गुण दिए हैं, जो उसे पुरुष से अलग बनाते हैं, लेकिन यह स्त्री का दुर्भाग्य रहा कि कभी उसने अपनी शक्ति को जाना ही नहीं। पर अब वे शिक्षा प्राप्त करके उन बंधनों को काटने का प्रयास कर रही हैं। असल मायनों में इस दिवस की सार्थकता तभी साबित होगी, जब हम महिलाओंं को वह सम्मान देंगे, जिसकी वे हकदार हैं।
आजकल वेब सीरीज और मूवी युवा की जान बनती जा रही हैं। युवा टीवी देखना कम पसंद करते हैं, आनलाइन कार्यक्रम देखने के प्रति उनका रुझान ज्यादा है। किसी को क्राइम सीरीज ज्यादा पसंद है, तो किसी को रोमांटिक या कामेडी देखना अच्छा लगता है। कुछ ऐसे सीरीज और मूवी की बात करें तो उसकी भाषा और दृश्य बहुत बेकार होते हैं, जिसे काफी लोग देखना भी पसंद नहीं करते। सवाल है कि आखिर क्यों बनते हैं इस तरह के कार्यक्रम? जो लोग इस तरह के कार्यक्रम बनाते हैं, उन्हे पैसे कमाने के साथ-साथ यह भी देखना चहिए कि लोगों और उनके सोच पर इसका क्या असर पड़ेगा।