Vijay Garg: 'अभी मुझे केवल सुनो, लिखना बाद में' हमारे एक टीचर अकसर यह कहते थे। उनका कहना था कि दिमाग एक समय में एक काम बेहतर करता है। जब आप सुनते हैं तो दिमाग उसे अपने ढंग से नोट करता है। लिखते हैं या किताब में से लिखा हुआ पढ़ते हैं, तो भी दिमाग उसे अपनी आवाज में नोट करता है। एक समय में कई काम करते समय दिमाग में बहुत सारी आवाजें होने लगती हैं और वह एक को भी ढंग से नहीं सुन पाता। हमारा दिमाग किस तरह चीजों को याद रख पाता है, इस संबंध में कुछ पढ़ते हुए टीचर की बात याद आ गई।
न्यूरोसाइंटिस्ट व एजुकेटर जेरेड कूने कहते हैं, 'स्वीडन समेत कई देश अब अपने यहां परंपरागत पढ़ाई के तौर-तरीकों को आगे बढ़ा रहे हैं। डिजिटल टूल्स और ई-बुक्स की तुलना में कागजी किताबें पढ़ना, पेज पर चीजों को लिखना, समय-समय पर बोल-बोलकर दोहराना, सीखने और चीजों को याद रखने के ज्यादा बेहतर विकल्प हैं। वे आगे कहते हैं, एआई के विभिन्न टूल्स को भले ही पर्सनल ट्यूटर या निजी गुरु कहा जा रहा है, पर मशीनें व्यक्ति को उस तरह प्रेरित नहीं कर सकतीं, जिस तरह प्यार व हमदर्दी के आधार पर बने रिश्ते करते हैं। तकनीक के जरिये बटन दबाते हुए हो रही बातचीत के दौरान शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन नहीं बनता। जब दो लोग बातचीत करते हुए ऑक्सीटॉसिन हार्मोन रिलीज करते हैं, तब वे एक-दूसरे से बेहतर सीखते-समझते हैं।
दिमाग को समझें
यह ठीक है कि उम्र के साथ हमारा दिमाग भी बूढ़ा होने लगता है। उसका संज्ञात्मक कौशल, पहचानने और याद रखने की क्षमता मंद पड़ने लगती है । पर ये भी सच है कि हमारे दिमाग में ये क्षमता भी है कि उम्र बढ़ने के साथ वह नया सीख भी सकता है और पुराने सीखे हुए पर अपनी पकड़ बनाए रख सकता है। मेडिकल भाषा में इस प्रक्रिया को ब्रेन प्लोस्टिसिटी या न्यूरोप्लास्टिसिटी कहते हैं। पर, ऐसा एक दिन में नहीं हो जाता। इसके लिए आपको नियमित अभ्यास करना पड़ता है। वैज्ञानिक कहते हैं, रचनात्मकता बहुत सारी सूचनाओं के होने से ही नहीं आती। हम तब कुछ रच पाते हैं, जब सूचनाओं को अपने स्तर पर एनकोड करते हैं, उन्हें अपने ढंग से समझते हैं, पहले से सीखे हुए ज्ञान से उसे जोड़ पाते हैं। तभी कोई बात हमारी डीप लर्निंग का हिस्सा बन पाती है, हम उसे लंबे समय तक याद कर पाते हैं। एक अन्य शोध के अनुसार, स्क्रीन पर पढ़ते हुए इसकी संभावना बहुत अधिक होती है कि हम छह मिनट के बाद सोशल मीडिया सर्च करने लगे, दूसरे लिंक्स पर चले जाएं या ऑनलाइन दोस्तों से बात करने लगें। ऐसे में ऑनलाइन ज्यादा समय बिताने के बाद भी हम कम ही पढ़ पाते हैं।
हमारे दिमाग का हिप्पोकैंपस हिस्सा चीजों को उनके लेआउट व जगह के तौर पर भी याद रखता है। स्क्रीन पर हम टेक्स्ट को स्क्रॉल करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। वही किताब का थ्रीडी लेआउट व उसमें लिखे शब्द स्थिर होते हैं। किताब पढ़ने के बाद हमें अकसर यह भी ध्यान रहता है कि हमने अमुक चीज दायीं या बायीं या फिर ऊपर या नीचे के हिस्से में कहां पढ़ी थी। अगर पढ़ते हुए आप चाहते हैं कि कोई चीज लंबे समय तक याद रहे, इसके लिए डिजिटल कॉपी की जगह किताब को पढ़ना अधिक बेहतर साबित होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब